
आज देशभर में लोक आस्था का महापर्व छठ का त्योहार मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व होता है। यह चार दिनों तक चलता है, जिसमें तीसरे दिन का विशेष महत्व होता है। जहां पर संध्या अर्घ्य देकर सूर्य उपासना और छठी मईया की पूजा होती है। इस दिन व्रती घाट पर एकत्रित होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। पंचांग के अनुसार आज सूर्यास्त शाम 05 बजकर 40 मिनट पर होगा।
जानिए क्या है छठ पूजा की कथा ?
आज देशभर में छठ पूजा का उत्सव मनाया जा रहा है। छठ पूजा सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित होता है। षष्ठी तिथि के दिन जब सूर्य अस्त होता है, तब डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर व्रत पूर्ण किया जाता है। इस अवसर पर विधि-विधान से पूजा कर छठी मैया की कथा का पाठ करना शुभ माना जाता है।
छठ पूजा का पर्व भगवान सूर्य देव और छठी मईया को समर्पित होता है। यह त्योहार चार दिनों का होता है। छठ पूजा मुख्य रूप से महिलाएं अपनी संतान और परिवार की लंबी आयु और सुख -समृद्धि के लिए करती हैँ। छठ पूजा का तीसरा दिन मुख्य रूप से निर्जला व्रत रखते हुए अस्त होते सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है। यह एकमात्र त्योहार है जिसमें अस्त होते हुए सूर्यदेव की पूजा और उनको अर्घ्य देने की परंपरा होती है। फिर अगले दिन सूर्योदय पर अर्घ्य देकर व्रत का पारण होता है।
छठ पूजा के लिए पूजन सामग्री
आज छठ पूजा का पर्व है। शाम को जैसे ही सूर्यदेव अस्त होंगे उनको दूध और जल से अर्घ्य अर्पित करते हुए उनकी पूजा उपासना और छठी मैया की गीत और कथा सुना जाएगा। लेकिन उसके पहले छठ पूजा के लिए सभी तरह के पूजन की सामग्रियों को एक जगह एकत्रित कर लेना चाहिए। आइए जानते हैं छठ पूजा में किन-किन चीजों की जररूत होगी।
व्रती और परिवार के लिए नए कपड़े
दो बड़ी बांस की टोकरियां (डावरी) -प्रसाद रखने के लिए
सूप
सूर्य देव को अर्घ्य देने हेतु बांस या पीतल का बर्तन
अर्घ्य के लिए दूध और गंगाजल रखने वाला गिलास, लोटा और थाली
पानी से भरा नारियल
पांच पत्तेदार गन्ने के तने
चावल, गेहूं और गुड़
12 दीपक, अगरबत्ती, बत्तियां, कुमकुम और सिंदूर
केले का पत्ता (पूजन स्थल सजाने के लिए)
फलों में केला, सेब, सिंघाड़ा, शकरकंद, सुथनी (रतालू), अदरक का पौधा
हल्दी की गांठें और सुपारी
शहद और मिठाइयां
गंगाजल और दूध (अर्घ्य व स्नान हेतु)
प्रसाद में बनाने के लिए ठेकवा, गुड़ और गेहूं के आटे की सामग्री
छठ पूजा पर आज संध्या अर्घ्य का समय
छठ पूजा के तीसरे दिन का विशेष महत्व होता है। इस दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य और छठी मईया की पूजा करने का विधान होता है। पंचांग के अनुसार छठ पूजा का संध्या अर्घ्य का समय 27 अक्तूबर सोमवार को शाम 5 बजकर 10 मिनट लेकर शाम 05 बजकर 48
छठ पूजा के नियम
छठ पूजा कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। यह चार दिनों तक चलते है जो दिवाली के बाद छठे दिन मनाया जाता है। इस व्रत में व्रती 36 घंटों तक निर्जला व्रत करते हुए विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। छठ पूजा के दौरान शुद्धता, स्वच्छता का खास ध्यान रखा जाता है। छठ पर्व के दौरान प्याज, लहसुन और मांस का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रती को मिट्टी या फिर कांसे के बर्तनों में ही प्रसाद तैयार करना चाहिए। छठ पूजा की सामग्री में फल और बांस की टोकरी को जरूर शामिल करना चाहिए।
पुराणों में सूर्य पूजा का महत्व
सूर्योपासना का लोकपर्व छठ, छइठ या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। छठी मैया के इस त्योहार को साल में दो बार मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले इस त्योहार को चैती छठ कहा जाता है और कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ त्योहार को कार्तिकी छठ कहा जाता है।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय के साथ छठ पर्व का आरंभ होता है और अगले चार दिनों तक यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत कर के संतान प्राप्ति और उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। छठ पर्व पर सूर्य को अर्घ्य देकर और छठ मईया की पूजा और आरती करके आभार व्यक्त किया है।
छठ पूजा पर सूर्य उपासना का महत्व
आज बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में लोक आस्था का महापर्व छठ मनाया जा रहा है। सूर्यउपासना का सबसे बड़ा दिन छठ का त्योहार होता है। भविष्य पुराण के अनुसार श्री कृष्ण ने सूर्य को संसार के प्रत्यक्ष देवता बताते हुए कहा है कि इनसे बढ़कर दूसरा कोई देवता नहीं है। सम्पूर्ण जगत इन्हीं से उत्पन्न हुआ है और अंत में इन्हीं में विलीन हो जाएगा। जिनके उदय होने से ही सारा संसार चेष्टावान होता है एवं जिनके हाथों से लोकपूजित ब्रह्मा और विष्णु तथा ललाट से शंकर उत्पन्न हुए हैं।
सूर्योपनिषद के अनुसार सूर्य की किरणों में समस्त देव, गंधर्व और ऋषिगण निवास करते हैं। सूर्य की उपासना के बिना किसी का कल्याण संभव नहीं है,भले ही अमरत्व प्राप्त करने वाले देवता ही क्यों न हों।
स्कंद पुराण में सूर्य को अर्घ्य देने के महत्व पर कहा गया है कि सूर्य को बिना जल अर्घ्य दिए भोजन करना भी पाप खाने के समान है और सूर्योपासना किए बिना कोई भी मानव किसी भी शुभकर्म का अधिकारी नहीं बन सकता है।
 
				


