छत्तीसगढ़: आदिवासी पर्यावरण संरक्षक ने 400 एकड़ जमीन पर जंगल लगाने को प्रेरित किया

जगदलपुर: वन संरक्षण के लिए सामुदायिक पहल करते हुए छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के 74 वर्षीय आदिवासी किसान ने अपने गांव में 400 एकड़ जमीन को घने जंगल में बदल दिया है। वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आदिवासी किसान दामोदर कश्यप के इस प्रयास की सराहना की है और कहा कि उनके प्रयास से न सिर्फ संघ करमारी गांव पर बल्कि आसपास के गांवों पर भी सकारात्मक प्रभाव हुआ है।

कश्यप के लिए बकावंड प्रखंड के संघ करमारी गांव का यह जंगल पवित्र स्थल की तरह है जिसे उन्होंने पूरे समुदाय की मदद से विकसित किया है। ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कश्यप ने कहा, ‘‘जगदलपुर में 12वीं की पढ़ाई पूरी करके 1970 में जब मैं गांव लौटा तो, अपने घर के पास करीब 300 एकड़ जमीन में फैले जंगल को बर्बाद हुआ देखकर दंग रह गया था।’’ उन्होंने कहा कि एक वक्त पर घने जंगल वाली जगह पर कुछ ही पेड़ खड़े थे। उन्होंने बताया कि जंगल की दयनीय हालत देखकर उन्होंने फिर से वहां घना जंगल बसाने का फैसला लिया।

कश्यप ने कहा, ‘‘शुरुआत में गांव के लोगों को पेड़ नहीं काटने के लिए मनाना मुश्किल था, क्योंकि वह उनके रोजाना के जीवन का हिस्सा था। लेकिन धीरे-धीरे लोग जंगल का महत्व समझने लगे।’’ वहीं 1977 में गांव का सरपंच चुने जाने के बाद कश्यप ने जंगल को फिर से जीवित करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी।

उनके पुत्र तिलकराम ने बताया कि अपने कार्यकाल में कश्यप ने कड़े नियम बनाए और जंगल बर्बाद करने वालों पर जुर्माना भी लगाया।
उन्होंने बताया, ‘‘पंचायत ने ‘ठेंगा पली’ व्यवस्था शुरू की जिसके तहत गांव के तीन लोगों को रोजाना गश्त पर भेजा जाता था और वे जंगलों में अवैध तरीके से पेड़ काटे जाने आदि को रोकते थे।’’ तिलकराम ने कहा, इसके अलावा कश्यप ने जंगलों के संरक्षण के लिए स्थानीय मान्यताओं आदि का भी उपयोग किया।

उसने बताया, ग्राम देवता को ‘लाट’ (दंड) को गांव और जंगल के आसपास घुमाया गया ताकि लोगों के मन में यह बात बैठे कि यह पवत्रि जगह है और इसका संरक्षण होना है। उन्होंने बताया, ‘‘हमारे घर के पास के 300 एकड़ जमीन के अलावा पिताजी ने ग्रामीणों के सहयोग से माओलीकोट में भी 100 एकड़ जमीन पर जंगल उगाया।’’

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