कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में रवींद्रन की पुर्निनयुक्ति का फैसला रद्द

नयी दिल्ली: केरल सरकार को बड़ा झटका देते हुए उच्चतम न्यायालय ने गोपीनाथ रवींद्रन को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद कन्नूर विश्वविद्यालय का दोबारा कुलपति नियुक्त करने के केरल सरकार के फैसले को बृहस्पतिवार को रद्द कर दिया और मामले में राज्य सरकार के ‘‘अनुचित हस्तक्षेप’’ की आलोचना की।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने रवींद्रन को पद पर दोबारा नियुक्त करने के कुलाधिपति और राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के आदेश को गलत पाया। पीठ ने पुर्निनयुक्ति को बरकरार रखने वाले केरल उच्च न्यायालय की एकल और खंडपीठ के फैसले को रद्द कर दिया।

राज्यपाल किसी राज्य में विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति होते हैं और कुलाधिपति के रूप में सभी विश्वविद्यालय मामलों पर निर्णय लेने में मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं। पीठ में न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने कहा, ‘‘हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि भले ही प्रतिवादी संख्या 4 (रवींद्रन) को कुलपति के पद पर फिर से नियुक्त करने की अधिसूचना कुलाधिपति (राज्यपाल) द्वारा जारी की गई थी, लेकिन पुर्निनयुक्ति का निर्णय बाहरी विचारों से प्रभावित था या दूसरे शब्दों में कहें तो राज्य सरकार के अनुचित हस्तक्षेप से ऐसा किया गया।’’

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘‘उच्च न्यायालय द्वारा 23 फरवरी, 2022 को दिए गए निर्णय और पारित आदेश को रद्द किया जाता है और इसके परिणामस्वरूप प्रतिवादी संख्या 4 (रवींद्रन) को कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में फिर से नियुक्त करने से संबंधित 23 नवंबर, 2021 की अधिसूचना को रद्द किया जाता है।’’ फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि शीर्ष अदालत ने कई सवालों पर गौर किया, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या कार्यकाल तय होने पर पुर्निनयुक्ति की अनुमति है।

फैसले में कहा गया, ‘‘हमारा अंतिम निष्कर्ष यह है कि अब यह अच्छी तरह से तय हो गया है कि अगर किसी सार्वजनिक कार्यालय में कोई नियुक्ति कानून या नियमों के उल्लंघन में की जाती है तो ‘को वारंटो’ (अधिकार पृच्छा) (किस प्राधिकारी द्वारा) की रिट मान्य होगी।’’

यह रिट किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जारी की जाती है, जो किसी सार्वजनिक कार्यालय में किसी पद पर अवैध तरीके से आसीन होता है। ऐसे में अदालत उसके खिलाफ उस विभाग को एक पत्र भेजती है जिसे अधिकार पृच्छा या ‘को वारंटो’ कहा जाता है।

इस विशेष मामले में पीठ ने रवींद्रन की उपयुक्तता के विषय में कुछ नहीं कहा। फैसले में कहा गया, ‘‘किसी पद पर नियुक्ति के लिए उम्मीदवार की उपयुक्तता का फैसला नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा किया जाना चाहिए, न कि अदालत द्वारा जब तक कि नियुक्ति वैधानिक नियमों/प्रावधानों के विपरीत न हो।’’

पीठ ने कहा कि कानून के तहत कुलाधिपति को ही कुलपति की नियुक्ति या पुर्निनयुक्ति करने का अधिकार प्रदान किया गया है। पीठ ने कहा, ‘‘कोई अन्य व्यक्ति यहां तक कि प्रति-कुलाधिपति या कोई भी वरिष्ठ अधिकारी वैधानिक प्राधिकरण के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।’’

केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने पिछले साल 23 फरवरी को विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में रवींद्रन की पुर्निनयुक्ति को बरकरार रखने के एकल-न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ अपील को यह कहकर खारिज कर दिया था कि ऐसा कानून के अनुसार किया गया था और यह ‘‘पद पर कब्जा करने के इरादे से’’ नहीं है।

याचिका में इस आधार पर पुर्निनयुक्ति को रद्द करने का अनुरोध किया गया था कि कोई व्यक्ति केवल 60 वर्ष की आयु तक ही कुलपति का पद संभाल सकता है और 19 दिसंबर, 1960 को जन्मे रवींद्रन अपनी दूसरी नियुक्ति के समय 60 साल से अधिक उम्र के थे।

रवींद्रन की पुर्निनयुक्ति केरल में सुर्खियों में है क्योंकि राज्य के इतिहास में पहली बार किसी कुलपति को दोबारा नियुक्त किया गया है।

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