सरकार सुनिश्चित करेगी कि कर्ज का बोझ भावी पीढ़ी पर न पड़े: सीतारमण

नयी दिल्ली. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कहा कि सरकार राजकोषीय घाटे के प्रबंधन के प्रति सचेत है और यह सुनिश्चित करेगी कि कर्ज चुकाने का बोझ अगली पीढ़ी पर न पड़े. सीतारमण ने ‘कौटिल्य आर्थिक सम्मेलन’ 2023 को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार समग्र कर्ज कम करने के तरीकों पर विचार कर रही है.

उन्होंने कहा, ” हम देश की वृहत आर्थिक स्थिरता से जुड़े मामलों के प्रति सचेत हैं, जिसका सामना हम राजकोषीय तथा राजकोषीय प्रबंधन में करते हैं…इसलिए आज हम हर फैसला इस बात के प्रति सतर्क रह कर करते हैं कि इसका अगली पीढ़ी पर क्या बोझ आएगा.” वित्त मंत्री ने कहा कि फिजूलखर्ची करना और आने वाली पीढि.यों पर उस कर्ज का बोझ डालना बहुत आसान है, जिसे लेकर आप बैठे रहेंगे.

सीतारमण ने कहा, ” हम भारत सरकार के कर्ज के प्रति सचेत हैं. कई अन्य की तुलना में यह उतना अधिक नहीं है लेकिन फिर भी हम सतर्क रहकर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में किए जा रहे कामों पर गौर कर रहे हैं.” उन्होंने कहा कि सरकार कुछ उभरते बाजार वाले देशों के कर्ज से संबंधित आंकड़ों पर सक्रिय रूप से नजर रख रही है. साथ ही उनके इससे निपटने के तरीके पर भी गौर कर रही है.

सीतारमण ने कहा कि सरकार कर्ज के बोझ को प्रबंधित करने में सफल है क्योंकि भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रयास बहुत अच्छी तरह से सुव्यवस्थित हैं. हालांकि इससे जिम्मेदारी से निपटने की जरूरत है ताकि इसका बोझ आने वाली पीढ़ी पर न पड़े.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार कर्ज की स्थिति को लेकर सचेत है और उसने यह सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय प्रबंधन किया है कि आने वाली पीढ़ी पर बोझ न पड़े.

सीतारमण ने कहा कि डिजिटल अर्थव्यवस्था के जरिए अधिक पारर्दिशता लायी गयी है. नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए डिजिटलीकरण से अधिक शक्तिशाली कोई उपकरण नहीं है. ऐसा नहीं होता तो नागरिक अपनी विकासात्मक आकांक्षाओं को पूरा करने से बहुत दूर रह जाते.

साथ ही उन्होंने कहा, ” जन-धन खाते देश में वित्तीय समावेश लाने का सबसे बड़ा साधन रहे हैं. जब इसे 2014 में शुरू किया गया तो लोगों ने सवाल उठाए थे और कहा था कि ये ‘जीरो बैलेंस’ खाते होंगे जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) पर बोझ होंगे.” मंत्री ने कहा कि आज इन जन-धन खातों में कुल दो लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि है. उन्होंने कहा कि कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान इन जन-धन खातों के कारण ही गरीब लोगों को उनकी आवश्यक जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार से उनके खातों में पैसे मिले.

सीतारमण ने कहा कि मौजूदा वैश्विक स्थिति में बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) सहित बहुपक्षीय संस्थान कम प्रभावी हो गए हैं.
सीतारमण ने वैश्विक आतंकवाद से उत्पन्न चुनौतियों को भी रेखांकित किया और जोर दिया कि निवेशकों तथा कंपनियों को निवेश संबंधी फैसले करते समय ऐसे कारकों को ध्यान में रखना होगा.

कंपनियों को निवेश संबंधी फैसले करते समय आतंक के असर को ध्यान में रखना होगा: सीतारमण

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कहा कि कंपनियों को निवेश संबंधी फैसले करते समय वैश्विक आतंक के असर को ध्यान में रखना होगा. उन्होंने ‘कौटिल्य आर्थिक सम्मेलन, 2023’ को संबोधित करते हुए कहा कि आतंकवाद पूरे विश्व को प्रभावित कर रहा है और कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं है. सीतारमण ने कहा कि व्यावसायिक फैसले करते समय इस स्तर के जोखिम या अनिश्चितता से निवेश को भारी अनिश्चितता और उच्च जोखिम का सामना करना पड़ेगा.

वित्त मंत्री ने कहा, ”कंपनियों को अब केवल नीतियों या अर्थव्यवस्था के खुलेपन से आर्किषत नहीं किया जा सकता है. निवेशकों और कंपनियों का जोखिम अब वैश्विक आतंक से काफी प्रभावित होगा.” उन्होंने वैश्वीकरण पर कहा कि इसके बारे में निराशा है और इसे फिर से आकार देने की बात हो रही है.

उन्होंने कहा, ”कौन किसके साथ समूह बना रहा है, किसने समूह छोड़ दिया है और कौन इन सभी समूहों से बाहर है या नए समूह बना रहा है….” जलवायु वित्त पर सीतारमण ने कहा कि भारत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पेरिस समझौते में घोषित अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं (एनडीसी) को पूरा करने के लिए अपने संसाधनों का उपयोग किया.

उन्होंने कहा कि जो कोई यह सुझाव दे रहा है कि कार्रवाई का एक स्पष्ट तरीका होना चाहिए, उसे यह भी विचार करना चाहिए कि विकासशील देशों के पास इस तरह के महत्वपूर्ण जलवायु वित्तपोषण के लिए वित्तीय क्षमता नहीं हो सकती है. सीतारमण ने सवाल किया, ”भारत जैसे देश पर विचार कीजिए, जहां विकास के लक्ष्य अभूतपूर्व गति से हासिल किए जा रहे हैं और जहां आबादी के एक महत्वपूर्ण हिस्से को अभी भी समर्थन की जरूरत है. सवाल उठता है: जरूरी धन कहां से आएगा?”

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