जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए पिछले पांच सालों में बड़ी कुर्बानी दी गई : सिन्हा

श्रीनगर. जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने बुधवार को कहा कि इस केंद्र शासित प्रदेश को शांतिपूर्ण, प्रगतिशील और समृद्ध बनाने के लिए पिछले पांच वर्षों में बहुत बड़ी कुर्बानी दी गई है. उन्होंने इसी के साथ समाज के सभी वर्गों से शांति भंग करने का प्रयास करने वाले तत्वों के खिलाफ एकजुट होकर काम करने का आह्वान किया.

सिन्हा गैर-लाभकारी संगठन विश्वग्राम द्वारा ‘जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में शांति, लोग और संभावनाएं’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे. उपराज्यपाल ने अपने संबोधन में जम्मू-कश्मीर के एक नए दृष्टिकोण के बारे में बात की, जो शांतिपूर्ण, भयमुक्त, समृद्ध, एकजुट हो और जिसमें प्रत्येक नागरिक सशक्त हो तथा भारत की प्रगति से प्रभावित हो. उन्होंने रेखांकित किया कि जम्मू-कश्मीर आज जहां है, वहां तक ??लाने के लिए पिछले पांच वर्षों में बड़ी कुर्बानी दी गई है.

उप राज्यपाल ने कहा, ”आज जम्मू-कश्मीर में जो शांति दिखाई दे रही है, उससे सभी लोग परस्पर सम्मान के साथ फल-फूल रहे हैं और सभी को सम्मानजनक जीवन जीने का समान अवसर मिल रहा है. शांति का प्रभाव, बेहतर कल के लिए लोगों के प्रयास और बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए अपार संभावनाओं के रूप में देखी जा सकती हैं.” सिन्हा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जनता-प्रथम, सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों का पालन किया गया है, जिससे लोगों और जम्मू-कश्मीर दोनों के जीवन में बदलाव आया है.

उपराज्यपाल ने आतंकवादी पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करने के अपने संकल्प को दोहराते हुए शांति, न्याय और समानता बनाए रखने की प्रतिबद्धता दोहराई. उन्होंने कहा, ”हम सामाजिक-आर्थिक विकास को मजबूत करने और अपने युवाओं के सपनों को हकीकत में बदलने के लिए प्रतिबद्ध हैं.” सिन्हा ने कहा कि गत पांच वर्षों के भीतर सुरक्षा बलों और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक ऐसा जम्मू-कश्मीर बनाया है, जिसमें गोलियों और ग्रेनेड की आवाज की जगह शांति की आवाज गूंज रही है.

उप राज्यपाल ने कहा, ”हमने एक ऐसा जम्मू कश्मीर बनाया है, जहां विद्यालयों की दीवारें पत्थरों की टक्कर से नहीं, बल्कि बच्चों की हंसी, नवाचार और शिक्षा से गूंज रही हैं. हमने एक ऐसा जम्मू कश्मीर बनाया है, जिसमें पुलवामा, शोपियां और कुलगाम जैसे शहर, जो कभी सन्नाटे में डूबे रहते थे, युवाओं के लिए सांस्कृतिक और साहित्यिक केंद्रों में तब्दील हो गए हैं.”

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