संदेशखाली में यदि एक प्रतिशत आरोप भी सही पाये गये तो ‘बेहद शर्मनाक’ स्थिति होगी: उच्च न्यायालय

कोलकाता. कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि संदेशखाली में यदि यौन उत्पीड़न के एक प्रतिशत आरोप भी सही पाये गये तो यह ”बेहद शर्मनाक” स्थिति होगी और महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित राज्य के रूप में पश्चिम बंगाल की छवि खराब हो जायेगी. याचिकाकर्ता एवं वकील प्रियंका टिबरेवाल ने अदालत के समक्ष एक व्यापक संकलन रिपोर्ट सौंपी और उन्होंने कहा कि इसमें जमीन पर कब्जा करने और हिंसा के अलावा, यौन उत्पीड़न के कथित पीड़ितों के लगभग 100 हलफनामे शामिल हैं.

मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवज्ञानम की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने कहा, ”यदि (आरोपों में से) कम से कम एक प्रतिशत भी सच पाये जाते है, तो यह बेहद शर्मनाक बात होगी.” खंडपीठ उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखाली में कथित यौन उत्पीड़न और जमीन हड़पने संबंधी मामलों की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित करने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

पश्चिम बंगाल के महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने जांच को स्थानांतरित करने संबंधी याचिकाओं का विरोध करते हुए दावा किया कि केंद्रीय एजेंसियों ने भरोसा खो दिया है. उन्होंने राज्य में केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जांच किये जा रहे मामलों में दोषसिद्धि की दर को लेकर सवाल उठाया, जबकि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के वकील ने राज्य सरकार पर जांच आगे बढ़ाने में सहयोग न करने का आरोप लगाया.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि इनमें से एक भी हलफनामा सही है तो यह शर्मनाक बात होगी. उन्होंने कहा, ”पूरे जिला प्रशासन और सत्तारूढ़ शासन को नैतिक जिम्मेदारी निभानी होगी, 100 प्रतिशत जिम्मेदारी निभानी होगी.” उन्होंने कहा कि एक सांख्यिकीय रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित राज्य है.

उन्होंने कहा, ”एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल महिलाओं की सुरक्षा के मामले में नंबर एक पर है; और अगर टिबरेवाल द्वारा दायर एक हलफनामा सही साबित होता है, तो राय बदल जायेगी और राज्य की छवि खराब हो जायेगी.” अदालत ने कहा कि आंखें बंद कर लेने से दुनिया में अंधेरा नहीं छा जाता. खंडपीठ में न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य भी शामिल थे.

टिबरेवाल ने जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया है. उन्होंने खंडपीठ के समक्ष संदेशखाली में यौन उत्पीड़न, जमीन पर कब्जा और हिंसा के कथित पीड़ितों की कई शिकायतें रखीं. उन्होंने दावा किया कि भारी-भरकम फाइल में महिलाओं द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप वाली 100 से अधिक शिकायतें हैं, इसके अलावा कथित तौर पर जमीन हड़पने और हिंसा के कई अन्य मामले भी शामिल हैं.

टिबरेवाल ने अदालत से शिकायतों की जांच करने और पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए एक समिति के गठन का भी अनुरोध किया.
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सात मार्च को टिबरेवाल को आवेदन/हलफनामा के जरिये संदेशखाली की महिलाओं को अपनी शिकायतें अदालत के संज्ञान में लाने की अनुमति दे दी थी.

बृहस्पतिवार को विभिन्न अनुरोधों पर अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद खंडपीठ ने याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया.
इस मामले में ईडी की ओर से पैरवी कर रहे केंद्र सरकार के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल धीरज त्रिवेदी ने राज्य सरकार पर सहयोग न करने का आरोप लगाते हुए पूछा कि ऐसी स्थिति में केंद्रीय एजेंसियां ??जांच को कैसे आगे बढ़ा सकती हैं.

उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने राज्य में कई मामलों में केंद्रीय एजेंसियों की जांच के आदेश दिये हैं, जिनमें 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद हुई हिंसा का मामला भी शामिल है. राज्य के महाधिवक्ता दत्ता ने राज्य में सीबीआई या ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जांच किये जा रहे मामलों में दोषसिद्धि की दर को लेकर हैरानी जताई.

महाधिवक्ता ने कहा कि संदेशखाली में कहीं भी सीआरपीसी की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू नहीं है और चीजें नियंत्रण में हैं.
उन्होंने अनुरोध किया कि राज्य पुलिस को सामने आई शिकायतों की जांच करने की अनुमति दी जाए. एक अन्य याचिकाकर्ता एवं वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने अदालत से गुहार लगाई थी कि संदेशखाली में यौन उत्पीड़न और जमीन कब्जे के मामले की जांच सीबीआई को स्थानांतरित की जाए. न्याय मित्र जयंत नारायण चटर्जी ने ग्रामीणों की जमीन हड़पने और महिलाओं के यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर अदालत के समक्ष रिपोर्ट सौंपी है.

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