भारत में 1950-2015 के बीच हिंदू आबादी 7.8% घटी, मुसलमानों की आबादी 43.15% बढ़ी

नयी दिल्ली. भारत में 1950 से 2015 के बीच हिंदुओं की आबादी में 7.82 प्रतिशत की कमी आई है जबकि मुसलमानों की आबादी में 43.15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जिससे पता चलता है कि देश में विविधता को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल माहौल है. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के हालिया कार्य दस्तावेज में यह बात कही गई है. हालाँकि, इसमें पूर्ण ब्योरा नहीं दिया गया. देश में पिछली बार जनगणना 2011 में हुई थी और 2021 में होने वाली जनगणना नहीं हो पाई है. यह भी स्पष्ट नहीं है कि ईएसी-पीएम संबंधित आंकड़ों पर कैसे पहुंची.

‘धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी: एक राष्ट्रव्यापी विश्लेषण (1950-2015)’ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की आबादी में जैन समुदाय के लोगों की हिस्सेदारी 1950 में 0.45 प्रतिशत थी जो 2015 में घटकर 0.36 प्रतिशत रह गई. ईएसी-पीएम की सदस्य शमिका रवि के नेतृत्व वाली एक टीम द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया कि 1950 से 2015 के बीच बहुसंख्यक हिंदू आबादी की हिस्सेदारी में 7.82 प्रतिशत की कमी आई है जो संबंधित अवधि में 84.68 प्रतिशत से घटकर 78.06 प्रतिशत रह गई.

इसमें कहा गया कि 1950 में देश में मुसलमानों की आबादी 9.84 प्रतिशत थी और 2015 में बढ़कर यह 14.09 प्रतिशत हो गई जो संबंधित अवधि में 43.15 प्रतिशत बढ़ी है. रिपोर्ट के अनुसार, 1950 और 2015 के बीच ईसाइयों की आबादी 2.24 प्रतिशत से बढ़कर 2.36 प्रतिशत हो गई और संबंधित अवधि में इसमें 5.38 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. इसमें कहा गया कि 1950 में सिखों की आबादी 1.24 प्रतिशत थी जो बढ़कर 2015 में 1.85 प्रतिशत हो गई तथा संबंधित अवधि में यह 6.58 प्रतिशत की वृद्धि है.

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पारसी आबादी में 85 प्रतिशत की भारी कमी आई है. इस समुदाय की आबादी 1950 में कुल जनसंख्या का 0.03 प्रतिशत थी लेकिन 2015 में यह केवल 0.004 प्रतिशत रह गई. इसमें कहा गया कि संबंधित आंकड़ों से संकेत मिलता है कि “समाज में विविधता को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल वातावरण है.” इसमें कहा गया कि अनुकूल दृष्टिकोण के माध्यम से उचित माहौल और सामाजिक समर्थन प्रदान किए बिना समाज के वंचित वर्गों के लिए बेहतर जीवन परिणामों को बढ़ावा देना संभव नहीं है.

रिपोर्ट में कहा गया कि बहुसंख्यक आबादी की हिस्सेदारी में कमी और इसके परिणामस्वरूप अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी में वृद्धि से पता चलता है कि सभी नीतिगत कार्यों, राजनीतिक निर्णयों और सामाजिक प्रक्रियाओं का शुद्ध परिणाम समाज में विविधता बढ़ाने के लिए अनुकूल माहौल प्रदान करना है. इसमें कहा गया कि बहुसंख्यकों की आबादी में वैश्विक स्तर पर गिरावट के साथ ही भारत में भी बहुसंख्यकों की आबादी में 7.82 प्रतिशत की कमी आई है.

रिपोर्ट में कहा गया, “दक्षिण एशियाई पड़ोस के व्यापक संदर्भ में यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जहां बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की आबादी बढ़ी है, और बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, भूटान तथा अफगानिस्तान जैसे देशों में अल्पसंख्यक आबादी में चिंताजनक रूप से कमी आई है.” इसमें कहा गया कि यह आश्चर्य की बात नहीं है, इसीलिए, पड़ोस से अल्पसंख्यक आबादी दबाव के समय भारत आती है.

रिपोर्ट में कहा गया कि सभी मुस्लिम बहुल देशों में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की आबादी में वृद्धि देखी गई. हालांकि, मालदीव ऐसा मुस्लिम बहुल देश है जहां बहुसंख्यक समूह (शाफी सुन्नियों) की हिस्सेदारी में 1.47 प्रतिशत की गिरावट आई है. बांग्लादेश में, बहुसंख्यक धार्मिक समूह की हिस्सेदारी में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो भारतीय उपमहाद्वीप में इस तरह की सबसे बड़ी वृद्धि है. 1971 में बांग्लादेश के निर्माण के बावजूद पाकिस्तान में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय (हनफ.ी मुस्लिम) की हिस्सेदारी में 3.75 प्रतिशत की वृद्धि और कुल मुस्लिम आबादी की हिस्सेदारी में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट के अनुसार, गैर-मुस्लिम बहुसंख्यक देशों में म्यांमा, भारत और नेपाल में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी में गिरावट आई है. इसमें रेखांकित किया गया कि वर्ष 1950 दो प्रमुख कारणों से आधारभूत वर्ष के रूप में महत्वपूर्ण है. रिपोर्ट के अनुसार, यह साल उस समय के आसपास था जब नवनिर्मित संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार ढांचे ने अल्पसंख्यक अधिकारों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए सरकारों की जिम्मेदारी को अंतरराष्ट्रीय कानून में मुख्यधारा में लाने के साथ आकार लेना शुरू किया था.

यह अध्ययन रिपोर्ट दुनिया भर में अल्पसंख्यकों की स्थिति का एक विस्तृत राष्ट्रव्यापी वर्णनात्मक विश्लेषण है जिसमें 1950 और 2015 के बीच 65 वर्षों में किसी देश की जनसंख्या में उनकी बदलती हिस्सेदारी को मापा गया है. विश्लेषण में शामिल 167 देशों के लिए, 1950 के आधारभूत वर्ष में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी का औसत आंकड़ा 75 प्रतिशत है, जबकि 1950 और 2015 के बीच बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की आबादी में परिवर्तन का औसत (माइनस)21.9 है.

रिपोर्ट में कहा गया कि जनसंख्या आंकड़ों में अत्यधिक परिवर्तन का सामना करने वाले 40 देशों में से 21 अफ्रीका से हैं. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) से जुड़े उच्च आय वाले 35 देशों में बहुसंख्यकों की आबादी में औसतन 29 प्रतिशत की कमी आई है जो वैश्विक औसत से महत्वपूर्ण रूप से अधिक है. रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया, “इसका मतलब है कि विश्व स्तर पर, बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी लगभग 22 प्रतिशत कम हो गई है.”

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