सेंगोल को लेकर गलत दावों से तकलीफ हो रही है : मठ प्रमुख

राजदंड संबंधी विवाद पर शाह ने पूछा : कांग्रेस को भारतीय संस्कृति से इतनी नफरत क्यों

चेन्नई/नयी दिल्ली. तमिलनाडु में एक मठ के प्रमुख ने शुक्रवार को कहा कि सेंगोल लॉर्ड माउंटबेटन को सौंपा गया था और फिर इसे 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू को अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में भेंट किया गया था तथा कुछ लोगों द्वारा इस संबंध में किए जा रहे गलत दावों से उन्हें बहुत तकलीफ हो रही है.

चेन्नई में संवाददाताओं से बातचीत में तिरुवदुथुरै आदिनाम के अंबालावन देसिका परमाचार्य स्वामी ने कहा कि सेंगोल जो लंबे समय तक लोगों की निगाहों से दूर था, अब संसद में प्रमुखता से प्रर्दिशत किया जाएगा, ताकि दुनिया उसे देख सके. यह सेंगोल पर उपजे राजनीतिक विवाद के बीच मठ प्रमुख की इस मामले में पहली प्रतिक्रिया थी.

सेंगोल को सौंपे जाने के प्रमाण से जुड़े एक सवाल पर आदिनाम ने कहा कि 1947 में अखबारों और पत्रिकाओं में छपी तस्वीरें व खबरों सहित इसके कई प्रमाण हैं. परमाचार्य स्वामी ने कहा, ह्लयह दावा करना कि सेंगोल भेंट नहीं किया गया था, गलत है. सेंगोल के संबंध में ‘गलत सूचना’ के प्रसार से तकलीफ हुई है.ह्व परमाचार्य स्वामी ने मठ का एक प्रकाशन भी प्रर्दिशत किया, जिसमें 1947 में सेंगोल के हस्तांतरण से जुड़ी तस्वीरें प्रकाशित की गई थीं.

परमाचार्य स्वामी ने कहा, ह्लयह तमिलनाडु के लिए गर्व का विषय है कि सेंगोल चोल देश (चोल वंश द्वारा शासित क्षेत्र) में स्थित तिरुववदुथुराई आदिनाम से ले जाया गया है.ह्व मठ प्रमुख ने रेखांकित किया कि राजदंड एक न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन की आवश्यकता को दर्शाता है और तमिल साहित्य में तिरुक्कुरल सहित कई पुस्तकों में सेंगोल का जिक्र है.

सेंगोल के धार्मिक महत्व पर परमाचार्य स्वामी ने कहा, ह्लसेंगोल चोल साम्राज्य के शासनकाल में अपनाई जाने वाली परंपराओं को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था और इस पर ऋषभ (नंदी) का प्रतीक स्थापित किया गया था.ह्व उन्होंने कहा, ह्लसेंगोल धर्म का प्रतीक है, नंदी धर्म का प्रतीक है; यह आने वाले हर काल के लिए धर्म की रक्षा का प्रतीक है.ह्व मठ प्रमुख ने धर्म के प्रतीक नंदी के महत्व को रेखांकित करने के लिए एक तमिल शैव भजन का भी हवाला दिया.

उन्होंने कहा, ह्लहमें खुशी है कि सेंगोल, जो एक संग्राहलय तक सीमित था, अब नये संसद भवन में रखा जाएगा. हमें दिल्ली आमंत्रित किया गया है. हम वहां जाएंगे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सेंगोल भेंट करेंगे.ह्व 1947 में मठ का संचालन अंबालावन देसिका परमाचार्य स्वामी के हाथों में था और यह निर्णय लिया गया था आजादी और सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में एक सेंगोल का निर्माण किया जाए.

मठ का एक प्रतिनिधिमंडल दिल्ली पहुंचा था, जिसमें सदाई स्वामी उर्फ कुमारस्वामी थम्बीरन, मनिका ओडुवर और नादस्वरम वादक टी एन राजारथिनम पिल्लई शामिल थे. थम्बीरन स्वामी ने लॉर्ड माउंटबैटन को सेंगोल सौंपा था, जिन्होंने इसे वापस उन्हें (थम्बीरन स्वामी को) भेंट कर दिया था. इसके बाद, पारंपरिक संगीत की धुनों के बीच एक शोभायात्रा निकालकर सेंगोल पंडित जवाहरलाल नेहरू के आ­वास पर ले जाया गया था. यहां थम्बीरन स्वामी ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सेंगोल नेहरू को भेंट किया था.

राजदंड संबंधी विवाद पर शाह ने पूछा : कांग्रेस को भारतीय संस्कृति से इतनी नफरत क्यों
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कांग्रेस पर नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट स्थापित किए जाने वाले रस्मी ‘राजदंड’ (सेंगोल) के महत्व को कमतर करके ”चलते समय सहारा देने के काम आने वाली छड़ी” बना देने का आरोप लगाया तथा सवाल किया कि उसे भारतीय संस्कृति से इतनी नफरत क्यों है ? नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर सत्तारूढ. एवं विपक्षी दलों के बीच जारी वाकयुद्ध के बीच शाह ने कहा कि कांग्रेस को अपने व्यवहार पर ”मनन” करने की आवश्यकता है. उन्होंने पार्टी के इस दावे की निंदा की कि ‘राजदंड’ के 1947 में ब्रिटेन द्वारा भारत को सत्ता सौंपे जाने का प्रतीक होने का कोई उदाहरण नहीं है.

शाह ने कहा, ”कांग्रेस पार्टी भारतीय परंपराओं और संस्कृति से इतनी नफरत क्यों करती है? उन्होंने कहा, ”अब कांग्रेस ने एक और शर्मनाक अपमान किया है. पवित्र शैव मठ थिरुवदुथुराई आदिनम ने भारत की स्वतंत्रता के समय राजदंड के महत्व के बारे में स्वयं बताया था.” शाह ने कहा, ”कांग्रेस अब आदिनम के इतिहास को फर्जी बता रही है. कांग्रेस को अपने व्यवहार पर मनन करने की आवश्यकता है.”

इसका कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं कि ‘सेंगोल’ को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बताया गया हो : कांग्रेस

कांग्रेस ने शुक्रवार को दावा किया कि इस बात का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है जिससे यह साबित होता हो कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालाचारी और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ‘राजदंड’ (सेंगोल) को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरित किये जाने का प्रतीक बताया हो.

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी वाह-वाह करने वाले लोग इस रस्मी ‘राजदण्ड’ को तमिलनाडु में राजनीतिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया था कि कांग्रेस ने पवित्र ‘राजदंड’ को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को उपहार में दी गई ‘सोने की छड़ी’ कहकर उसे संग्रहालय में रख दिया और हिंदू परंपराओं की अवहेलना की.

रमेश ने ट्वीट किया, “क्या यह कोई हैरानी की बात है कि नए संसद भवन को व्हाट्सऐप यूनिर्विसटी के फर्जी विमर्श से सुशोभित किया जा रहा है? भाजपा /आरएसएस का इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने का रुख एक बार फिर ‘अधिकतम दावा, न्यूनतम साक्ष्य’ के साथ बेनकाब हो गया है.”

उन्होंने कहा, “राजदंड की परिकल्पना तत्कालीन मद्रास में एक धार्मिक प्रतिष्ठान ने की थी और इसे मद्रास शहर में तैयार किया गया था. इसे अगस्त 1945 में जवाहर लाल नेहरू को प्रस्तुत किया गया था. ” उन्होंने दावा किया कि इस बात का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालाचारी और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ‘राजदंड’ को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत को सत्ता हस्तांतरित किये जाने का प्रतीक बताया हो.

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