हिंद महासागर क्षेत्र की क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए काम करता रहेगा भारत : राजनाथ

गांधीनगर. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को कहा कि भारत हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में अपनी भागीदारी को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक है, ताकि यह सुनिश्चित हो कि आईओआर वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति देने वाले इंजन के रूप में अपना सही स्थान हासिल कर सके. राजनाथ ने कहा कि भारत एक जिम्मेदार भूमिका निभाने और आईओआर की क्षेत्रीय एवं वैश्विक सुरक्षा की दिशा में काम करते रहने के लिए प्रतिबद्ध है.

गांधीनगर में डिफेंस एक्सपो-2022 के इतर हुई आईओआर बैठक में 44 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. बैठक में राजनाथ ने कहा कि भारत इस क्षेत्र में सभी के लाभ के लिए नियम-आधारित समुद्री सीमा सुनिश्चित करने के वास्ते प्रत्येक हितधारकों के साथ मिलकर काम करने को तैयार है. उन्होंने यह भी कहा कि प्रभुत्व के बजाय परस्पर निर्भरता का भाव ही इस अहम व्यापार एवं ऊर्जा जलमार्ग को स्थिर रखने का एकमात्र तरीका है.

रक्षा मंत्री ने आईओआर देशों का क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने की दिशा में मौजूद वर्तमान और भावी खतरों से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि भारत क्षेत्र में शांति और स्थिरता के इच्छुक देशों के बीच सहयोग और संपर्क को बढ़ावा देने के लिए सहयोगी देशों की सरकारों, उद्योगों और शिक्षाविदों के प्रतिनिधियों के साथ काम करने को तत्पर है.

आईओआर और रक्षा मंत्रियों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए राजनाथ ने कहा, ‘‘भारत ‘वैश्विक व्यवस्था की किसी भी पदानुक्रमित अवधारणा को स्पष्ट रूप से खारिज करता है.’ वह आपसी सम्मान और हर देश की भलाई पर आधारित अवधारणा में विश्वास करता है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारत एक जिम्मेदार भूमिका निभाने और क्षेत्रीय एवं वैश्विक सुरक्षा की दिशा में काम करते रहने के लिए प्रतिबद्ध है.

हमने हिंद महासागर क्षेत्र के विभिन्न द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर संगठनात्मक और परिचालन पहलुओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है. हम यह सुनिश्चित करने के लिए अपनी भागीदारी को आगे बढ़ाने को तत्पर हैं कि आईओआर निकट भविष्य में वैश्विक अर्थव्यवस्था को गति देने वाले इंजन के रूप में अपनी सही जगह हासिल कर ले.’’ राजनाथ ने कहा कि 21वीं सदी में आईओआर क्षेत्र के देशों के सतत विकास के लिए समुद्री संसाधनों का दोहन महत्वपूर्ण स्रोत होगा.

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सहयोगात्मक प्रयास पर जोर देना चाहिए कि हिंद महासागर क्षेत्र का समुद्री विस्तार शांतिपूर्ण ढंग से हो और इसका क्षेत्रीय एवं वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बेहतर इस्तेमाल किया जा सके.’’ रक्षा मंत्री ने कहा कि ‘समुद्री मार्गों से निर्यातित, सर्मिथत या समन्वित’ आतंकवाद ंिचता का मुख्य विषय बना हुआ है और ‘भारत समुद्री मार्गों से आतंकवाद के प्रसार के खिलाफ अपने सुरक्षा ढांचे को मजबूत बनाना जारी रखता है.’ उन्होंने समुद्री मार्गों से मादक पदार्थों की बढ़ती तस्करी और मछली पकड़ने की अवैध एवं अनियंत्रित गतिविधियों को उन प्रमुख चुनौतियों के रूप में रेखांकित किया, जिनसे निपटने के लिए हिंद महासागर क्षेत्र के देशों को मिलकर काम करने की जरूरत है.

राजनाथ ने कहा, ‘‘हमने आईओआर में एक व्यापक समुद्री डोमेन जागरूकता विकसित करने की पहल की है, जिसके परिणामस्वरूप कई देशों के साथ जानकारी साझा करने के लिए तकनीकी समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं. आने वाले दिनों में इस पहल में और देशों को शामिल करने की योजना है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘प्रतिकूल घटनाओं से बेहतर ढंग से निपटने के लिए आईओआर देशों के बीच व्यापक और गहन आपदा प्रबंधन सहयोग की जरूरत है.’’ राजनाथ ने कहा कि भारत में एयरोस्पेस और रक्षा क्षेत्र ने एक लंबा सफर तय किया है.

उन्होंने देश में निर्मित पहले विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत और स्वदेशी रूप से विकसित लड़ाकू हेलीकॉप्टर प्रचंड आदि को सैन्य बलों में शामिल करने की उपलब्धि का जिक्र ‘स्वदेशी रक्षा निर्माण क्षमताओं को विकसित करने की दिशा में मील के पत्थर’ के रूप में किया.

रक्षा मंत्री ने कहा कि जब किसी क्षेत्र की शांति और सुरक्षा खतरे में होती है, तब पूरी दुनिया कई रूपों में इसका असर महसूस करती है.
उन्होंने कहा, ‘‘यूक्रेन का हालिया संघर्ष दिखाता है कि कैसे इसके दुष्प्रभाव सबसे संवेदनशील देशों की खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल असर डाल सकते हैं. इसी तरह, असफल होती या गिरती सरकारें न केवल अपने क्षेत्र के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए भी एक चुनौती हैं, क्योंकि उनके देश आतंकवाद, समुद्री डकैती और तस्करी की नर्सरी के रूप में उभर सकते हैं.’’

राजनाथ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का समुद्री वातावरण पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. उन्होंने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव राष्ट्रीय और क्षेत्री महत्वाकांक्षाओं को आगे ले जाने की दिशा में चुनौती साबित हो सकते हैं. प्राकृतिक आपदाएं और चरम मौसम घटनाएं क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई हैं.’’

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