यह कहना जल्दबाजी होगी कि ठाकरे की विरासत लुप्त हो रही: राजनीतिक पर्यवेक्षक

मुंबई. शिवसेना में टूट से दिखता है कि उद्धव ठाकरे का अपने विधायकों और सांसदों पर नियंत्रण कम हो रहा है लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार यह कहना जल्दबाजी होगी कि पार्टी के संस्थापक बाल ठाकरे की विरासत लुप्त हो रही है. राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि शिवसेना में ‘‘ऊपर से नीचे तक विभाजन’’ अपरिहार्य है और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (61) अपने पिता और पार्टी के संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे की विरासत को भुना नहीं पाए हैं. बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना वर्ष 1966 में की थी.

पिछले महीने शिवसेना विधायक दल में विभाजन हो गया था. उसके बाद उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना को मंगलवार को एक और झटका लगा, जब लोकसभा में उसके 19 सदस्यों में से 12 ने मुख्यमंत्री एकनाथ ंिशदे के प्रति निष्ठा जताई. शिवसेना का गढ़ माने जाने वाले ठाणे जिले के कुछ स्थानीय कार्यकर्ता भी ंिशदे खेमे में शामिल हो गए हैं. बाल ठाकरे ने 56 साल पहले शिवसेना की स्थापना मराठी गर्व के मुद्दे पर की थी और 1990 के दशक में उन्होंने ंिहदुत्व के मुद्दे को अंगीकार कर लिया था.

राजनीतिक टिप्पणीकार सुजाता आनंदन जिन्होंने बाल ठाकरे पर किताब लिखी है, ने ‘‘ पीटीआई-भाषा’ से कहा कि विधायक दल, राजनीतिक दल नहीं होता. विधायक और सांसद आते-जाते रहते हैं और उनका दोबारा निर्वाचन होता है. उन्होंने कहा, ‘‘यह कहना जल्दबाजी होगी कि एक महीने में ठाकरे की विरासत मद्धिम पड़ी है. हमें देखना होगा कि अगले चुनाव में शिवसैनिक किसके साथ जाते हैं.’’ आनंदन ने कहा कि सांसदों और विधायकों के अलग होने के कोई मायने नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘ठाकरे शिवसेना है और शिवसेना ठाकरे है.’’ उन्होंने याद किया कि इससे पहले भी कुछ विधायकों के साथ छगन भुजबल और नारायण राणे अलग हुए थे, लेकिन इन दो नेताओं को छोड़ कर बाकी विधायक या तो पार्टी में वापस आ गए या उनकी चमक फीकी पड़ गई.

उन्होंने कहा की उद्धव ठाकरे ने ंिहदुत्व को ‘‘अंिहसक लेकिन धर्मनिष्ठ ंिहदू’’ के रूप में पुन: परिभाषित किया है, जो उदारवादी ंिहदुओं को आर्किषत करता है. आनंदन ने कहा, ‘‘ मराठी और ंिहदू, मतों का अच्छा समायोजन है.’’ राजनीतिक विश्लेषक और शिवसेना पर आधारित ‘जय महाराष्ट्र’ किताब के लेखक प्रकाश अकोलकर ने कहा कि अगामी चुनावों में जब शिवसेना के दोनों धड़े आमने-सामने होंगे, तब पता चलेगा कि ठाकरे का करिश्मा फीका पड़ रहा है या नहीं. उन्होंने रेखांकित किया कि महाराष्ट्र के विभिन्न स्थानीय निकाय और नगर निकायों के चुनाव लंबित हैं.

उन्होंने कहा कि यह सच है कि शिवसेना के अधिकतर सांसद और विधायक टूट कर अलग हो गए हैं, लेकिन ‘‘इसका अभिप्राय यह नहीं है कि ठाकरे की विरासत फीकी पड़ गई है और पार्टी के भविष्य के बारे में पूर्वानुमान लगाना जल्दबाजी होगी.’’ उन्होंने कहा, ‘‘अंतत: फैसला शिवसैनिकों और मतदाताओं द्वारा लिया जाना है. वास्तविक तस्वीर चुनावों के बाद स्पष्ट होगी.’’ अकोलकर ने कहा कि उद्धव ठाकरे के समक्ष बचे हुए हिस्से को समेटने की बड़ी चुनौती है क्योंकि ‘‘अहम नेता (शिवसेना के) बगावत कर चुके हैं.

शिवसेना की मजदूर इकाई भारतीय कामगार सेना के सचिव और पूर्व विधायक कृष्ण हेगड़े ने कहा कि पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता उद्धव ठाकरे के साथ हैं. उन्होंने कहा,‘‘पार्टी के निर्वाचित सदस्यों ने बगावत की है, लेकिन पार्टी के 60 लाख सदस्यों ने मुंह नहीं मोड़ा है. यह अस्थायी झटका है. इस संकट से उबर जाएंगे.’’ महाराष्ट्र की कांग्रेस इकाई के उपाध्यक्ष रत्नाकर महाजन ने पीटीआई-भाषा को बताया कि 1966 में शिवसेना की स्थापना करने वाले बाल ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच एक बुनियादी अंतर है. बाल ठाकरे का नवंबर 2012 में निधन हो गया था.

उन्होंने दावा किया, ‘‘पुत्र को पिता की विरासत स्वत: मिली क्योंकि पिता ने उन्हें (पुत्र को) नेतृत्व की भूमिका सौंपी. उद्धव ठाकरे ने अपना नेतृत्व स्थापित करने के लिए बहुत प्रयास नहीं किया. उन्होंने हर चीज को हल्के में लिया.’’ उद्धव ठाकरे ने 2003 में शिवसेना का नेतृत्व संभाला और उन्हें तब से नारायण राणे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख तथा अपने चचेरे भाई राज ठाकरे जैसे नेताओं के असंतोष का सामना करना पड़ा. उस समय बाल ठाकरे जीवित थे.

महाजन ने कहा, ‘‘अपनी विरासत और पार्टी पर पकड़ खोने की परिणति पिछले महीने एकनाथ ंिशदे के विद्रोह के रूप में दिखी जब बाल ठाकरे मौजूद नहीं थे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘उद्धव ठाकरे से बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती है क्योंकि वह अपनी भविष्य की भूमिका को लेकर भ्रमित हैं. वह उन लोगों पर दोषारोपण करते रहे हैं जो उनसे अलग हो गए. लेकिन साथ ही वह उनकी वापसी का स्वागत भी करना चाहते हैं. वह सुलह या अलग होने के संबंध में अपना मन नहीं बना रहे.’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या शिवसेना सिर्फ कागजों पर ही रह जाएगी या उसे जनता का समर्थन हासिल होगा.’’ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)की महाराष्ट्र इकाई के उपाध्यक्ष माधव भंडारी ने कहा कि ठाकरे की विरासत के संबंध में अभी फैसला करना जल्दबाजी होगी क्योंकि शिवसेना के घटनाक्रम को अभी करीब एक महीना ही हुआ है. उन्होंने कहा, ‘‘पार्टी की संरचना और कामकाज को देखते हुए, यह घटनाक्रम अप्रत्याशित था. यह पता लगाना होगा कि बड़े पैमाने पर विद्रोह के बाद भी आम शिव सैनिक क्यों चुप हैं.’’

राजनीतिक टिप्पणीकार अभय देशपांडे ने दावा किया कि शिवसेना में ‘ऊपर से नीचे तक विभाजन’ अपरिहार्य है. उन्होंने कहा, ‘‘विद्रोही शिवसेना से बाहर नहीं जाना चाहते. वे पार्टी चाहते हैं, और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) चाहती है कि शिवसेना मातोश्री (मुंबई में ठाकरे परिवार का घर) से बाहर निकले.’’ उन्होंने कहा, ‘‘उद्धव ठाकरे ने ऐसे समय पर पहली बार बड़े विद्रोह का सामना किया है, जब उनके पिता मौजूद नहीं हैं. ठाकरे की विरासत उनके गुट में बनी रहेगी, लेकिन एकमात्र स्वामित्व नहीं रहेगा.’’ उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री को शिवसेना के चुनाव चिह्न और पार्टी पर नियंत्रण के लिए लंबी लड़ाई लड़नी होगी.

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