अदाणी मुद्दे पर जेपीसी की मांग को लेकर राज्यसभा में विपक्ष का हंगामा, कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित
नयी दिल्ली. कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने अदाणी समूह के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के गठन की मांग को लेकर बुधवार को राज्यसभा में हंगामा किया, जिसके कारण उच्च सदन की कार्यवाही एक बार के स्थगन के बाद दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई.
सुबह सदन की कार्यवाही आरंभ होते ही सभापति जगदीप धनखड़ ने बताया कि उन्हें अदाणी मुद्दे, मणिपुर हिंसा, संभल हिंसा और दिल्ली में अपराध के बढ़ते मामलों पर चर्चा के लिए नियम 267 के तहत कुल 18 नोटिस मिले हैं. उन्होंने सभी नोटिस अस्वीकार कर दिए.
जी सी चंद्रशेखर, रणदीप सिंह सुरजेवाला, सैयद नासिर हुसैन, नीरज डांगी और राजीव शुक्ला सहित कांग्रेस के कुछ अन्य सदस्यों ने अन्य प्राधिकरणों के साथ मिलीभगत से अदाणी समूह के कथित भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और वित्तीय अनियमितताओं सहित अन्य कदाचारों की जांच के लिए जेपीसी के गठन के लिए नोटिस दिए थे.
तृणमूल कांग्रेस की सुष्मिता देव, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के तिरूचि शिवा, आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के पी संदोष कुमार ने मणिुपर में जारी हिंसा के मुद्दे पर जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के जॉन ब्रिटास, माकपा के ए ए रहीम, समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के अब्दुल वहाब ने उत्तर प्रदेश के संभल में हुई हिंसा पर चर्चा के लिए नोटिस दिए थे. आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने राजधानी दिल्ली में अपराध के बढ़ते मामलों पर चर्चा के लिए नोटिस दिया था. सभापति धनखड़ ने सभी नोटिस अस्वीकार करते हुए कहा कि सदस्य इन मुद्दों को अन्य प्रावधानों के तहत उठा सकते हैं.
उन्होंने कहा, ”मैं इस बात पर जोर देता हूं कि यह सदन, जो वरिष्ठ जनों का सदन है, उच्च सदन है, राज्यों की परिषद है, उसे उन परंपराओं का पालन करना चाहिए जो स्थापित हो चुकी हैं. सभापति के निर्णय का सम्मान होना चाहिए, न कि वह मतभेद का कारण बने.” धनखड़ ने कहा कि उन्होंने विस्तार से समझाया है कि क्यों इन परिस्थितियों में इन नोटिस को स्वीकार नहीं किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ”दरअसल, मैंने सदन को विश्वास में लेते हुए यह अवगत कराया कि यदि आप नियम 267 के संदर्भ में इस सदन की यात्रा को देखें तो पिछले 30 वर्षों में चाहे किसी भी राजनीतिक दल की सरकार रही हो, इस नियम का उपयोग कभी भी दोहरे अंक में नहीं गया. और हर बार की पृष्ठभूमि में एक सामूहिक दृष्टिकोण, दलों के बीच संवाद और सभी पहलुओं पर विचार होता था.”
उन्होंने कहा, ”इसलिए, मैं इन नोटिस को स्वीकार करने में असमर्थ हूं.” सभापति ने सदन के सदस्यों से अपील की कि वे इस ऐतिहासिक दिन पर, जो संविधान अंगीकरण के शताब्दी वर्ष के चौथे चरण का पहला दिन है, सदन में कामकाज का का स्तर बढ़ाएं. उन्होंने कहा, ”हम एक ऐसा माहौल बनाएं जो चर्चा, संवाद, विमर्श और नियमों के पालन के माध्यम से उदाहरण प्रस्तुत करे.” उन्होंने कहा कि सदस्यों को इन सभी मुद्दों को नियमों के अनुसार उठाने के लिए अवसर मिलेगा क्योंकि नियमों में प्रावधान है कि इन मुद्दों को किसी न किसी रूप में प्रस्तावों के माध्यम से उठाया जा सकता है.
उन्होंने कहा, ”इसलिए इन नोटिसों को अस्वीकार किया जा रहा है.” इसके तत्काल बाद कांग्रेस सहित विपक्ष के अन्य सदस्यों ने हंगामा शुरु कर दिया. इससे पहले कि हंगामा और तेज होता, धनखड़ ने 11 बजकर 11 मिनट पर सदन की कार्यवाही 11 बजकर 30 मिनट तक के लिए स्थगित कर दी. दोबारा, जब सदन की कार्यवाही आरंभ हुई तो सभापति ने सदस्यों से आग्रह किया कि वे अपने-अपने स्थानों पर बैठे रहें और व्यवस्था बनाए रखें ताकि सूचीबद्ध कामकाज निपटाया जा सके. हालांकि, इसके बावजूद कुछ सदस्य अपने स्थानों पर खड़े होकर नारेबाजी और हंगामा करते रहे.
इसके बाद धनखड़ ने सदन की कार्यवाही बृहस्पतिवार को सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर दी. नियम 267 राज्यसभा सदस्य को सभापति की मंजूरी से सदन के पूर्व-निर्धारित एजेंडे को निलंबित करने की विशेष शक्ति देता है. अगर किसी मुद्दे को नियम 267 के तहत स्वीकार किया जाता है तो इससे पता चलता है कि यह आज का सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दा है. राज्यसभा की नियम पुस्तिका में कहा गया है, ”कोई भी सदस्य सभापति की सहमति से यह प्रस्ताव कर सकता है. वह प्रस्ताव ला सकता है कि उस दिन की परिषद के समक्ष सूचीबद्ध एजेंडे को निलंबित किया जाए. अगर प्रस्ताव पारित हो जाता है तो विचाराधीन नियम को कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया जाता है.”