विपक्ष ने नए संसद भवन में राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण करने के लिए मोदी की आलोचना की

नयी दिल्ली. विपक्षी दलों ने सोमवार को नए संसद भवन में राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की और उन पर शक्ति के पृथक्करण के संवैधानिक सिद्धांत को “पलटने”, विपक्षी नेताओं की अनुपस्थिति और संसद भवन परिसर में धार्मिक कार्यक्रम के आयोजन आदि आरोप लगाए.

आॅल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट किया, ‘‘संविधान संसद, सरकार और न्यायपालिका के अधिकारों को पृथक करता है. सरकार का प्रमुख होने के नाते, प्रधानमंत्री को नए संसद भवन में राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण नहीं करना चाहिए था.’’

हैदराबाद से सांसद ओवैसी ने कहा, ‘‘लोकसभा के अध्यक्ष लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं और लोकसभा सरकार के अधीन नहीं है. प्रधानमंत्री ने संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन किया है.’’ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा कि प्रधानमंत्री का यह कदम “भारतीय संविधान का स्पष्ट उल्लंघन है.’’ पार्टी ने कहा कि संविधान में साफ तौर पर लोकतंत्र के तीन अंगों – कार्यपालिका (सरकार), विधायिका (संसद और राज्य विधानसभाओं) तथा न्यायपालिका के अधिकार अलग-अलग र्विणत हैं.

माकपा ने कहा, “राष्ट्रपति संसद का सत्र बुलाते हैं. प्रधानमंत्री कार्यपालिका के प्रमुख होते हैं…विधायिका की स्वतंत्र भूमिका होती है, कानून बनाना, कार्यपालिका को जवाबदेह रखना. संविधान द्वारा तीन अंगों के बीच शक्तियों के बंटवारे को कार्यपालिका प्रमुख द्वारा ‘नष्ट’ किया जा रहा है.” भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ओवैसी पर पलटवार करते हुए कहा कि वह हमेशा नकारात्मक मानसिकता से प्रभावित रहते हैं और अपनी पार्टी चलाने के लिए लगातार देश के राजनीतिक, नैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और संवैधानिक मूल्यों पर हमला करते हैं. भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने संवाददाता सम्मेलन में एक सवाल के जवाब में कहा, “वह आदतन ऐसा करते हैं.” त्रिवेदी ने एक श्लोक उद्धृत करते हुए कहा कि अच्छे से अच्छे डॉक्टरों के पास भी संदेह का कोई इलाज नहीं होता है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय प्रतीक के अनावरण में केवल “आधिकारिक और वैधानिक” पदों वाले लोग ही शामिल थे.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता मजीद मेमन ने सवाल किया कि सरकार ने राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण करने के लिए आयोजित कार्यक्रम से विपक्षी नेताओं को दूर क्यों रखा. राज्यसभा के पूर्व सदस्य मेमन ने कहा कि संसद भवन के कार्यक्रम में विपक्ष को आमंत्रित नहीं करना किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक बड़ी खामी है.

उन्होंने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रीय प्रतीक के अनावरण को लेकर कोई आपत्ति नहीं है और “यह उनका अधिकार है क्योंकि वह देश के सबसे बड़े नेता हैं.” माकपा ने राष्ट्रीय प्रतीक के अनावरण के मौके पर आयोजित एक धार्मिक समारोह को लेकर भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि ऐसे प्रतिष्ठानों को धर्म से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.

माकपा ने ट्वीट कर कहा, “राष्ट्रीय प्रतीक के अनावरण को धार्मिक समारोहों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. यह हर किसी का प्रतीक है, न कि उनका, जिनकी कुछ धार्मिक मान्यताएं हैं. धर्म को राष्ट्रीय समारोहों से दूर रखें.” इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने नए संसद भवन की छत पर बने राष्ट्रीय प्रतीक का सोमवार को अनावरण किया. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश और केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री हरदीप ंिसह पुरी ने भी भाग लिया. प्रधानमंत्री ने वहां एक धार्मिक कार्यक्रम में भी भाग लिया.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) महासचिव डी राजा ने कहा कि संसद सभी की है. उन्होंने आश्चर्य जताया कि ” वहां किस प्रकार एक निजी, व्यक्तिगत कार्यक्रम” का आयोजन किया गया. उन्होंने कहा, “संसद तटस्थ भी है. यहां धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन क्यों किया गया?” तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य जवाहर सरकार ने सवाल किया कि इस प्रक्रिया में सांसदों से सलाह-मशविरा क्यों नहीं किया गया.

उन्होंने एक ट्वीट में कहा, ‘‘… लेकिन इस इमारत में काम करने वाले सांसदों से कभी सलाह नहीं ली गई. मोदी अब हमें एक औसत दर्जे की वास्तुकला से रूबरू कराएंगे, जिसे उनके करीबी वास्तुकार ने अत्यधिक लागत पर डिजाइन किया है.’’ कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर इस संबंध में कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन उसके एक नेता और भाजपा के पूर्व सांसद उदित राज ने संसद भवन परिसर में हिंदू रीति-रिवाजों का मुद्दा उठाया.

उन्होंने एक ट्वीट में कहा, “श्री मोदी ने नए संसद भवन में राष्ट्रीय प्रतीक का अनावरण किया. क्या यह भाजपा से जुड़ा हुआ है? हिंदू रीति-रिवाजों का पालन किया गया, भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. अन्य राजनीतिक दलों को क्यों आमंत्रित नहीं किया गया? भारतीय लोकतंत्र खतरे में है.”

Related Articles

Back to top button