संसदीय समिति ने संशोधित वक्फ विधेयक को स्वीकारा, विपक्ष ने असंवैधानिक बताया

नयी दिल्ली. वक्फ (संशोधन) विधेयक पर विचार कर रही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट को बहुमत से स्वीकार कर लिया, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों द्वारा दिए गए सुझाव समाहित हैं. विपक्षी सदस्यों ने इसे असंवैधानिक करार दिया और आरोप लगाया कि यह कदम वक्फ बोर्डों को बर्बाद कर देगा. भाजपा सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षत वाली समिति की रिपोर्ट को 11 के मुकाबले 15 मतों से मंजूरी दे दी गई. विपक्षी सदस्यों ने असहमति के नोट दिए हैं.

भाजपा सदस्यों ने इस बात पर जोर दिया कि पिछले साल अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में आधुनिकता, पारर्दिशता और जवाबदेही लाने का प्रयास करने वाला है, जबकि विपक्ष ने इसे मुस्लिम समुदाय के संवैधानिक अधिकारों पर हमला और वक्फ बोर्डों की कार्यप्रणाली में हस्तक्षेप करार दिया.

समिति की 38वीं बैठक के बाद, पाल ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि रिपोर्ट बृहस्पतिवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पेश की जाएगी और शुक्रवार से शुरू होने वाले बजट सत्र के दौरान संसद के दोनों सदनों में इसे सदन के पटल पर रखा जाएगा.
विपक्ष की एक प्रमुख चिंता वक्फ बोर्ड में गैर-मुसलमानों की नियुक्ति थी. उनका दावा था कि यह संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन है, जो नागरिकों को धार्मिक और परमार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों की स्थापना और रखरखाव सहित अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता देता है.

कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा, ”आपने संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत दिए गए हमारे अधिकारों का उल्लंघन किया है. आपने समान नागरिक संहिता के बारे में बात की, लेकिन ‘हिंदू एंडोमेंट बोर्ड’, सिख बोर्ड, ईसाई बोर्ड में गैर-हिंदू, गैर-सिख और गैर-ईसाई सदस्य नहीं हैं. लेकिन यह मुसलमानों के लिए क्यों नहीं होता? यह वक्फ बोर्डों को बर्बाद करने का एक प्रयास है.” पाल ने दावा किया कि समिति द्वारा अनुमोदित कई संशोधनों ने विपक्षी सदस्यों की कई चिंताओं को भी संबोधित किया है तथा विधेयक के कानून के शक्ल में लागू होने के बाद वक्फ बोर्ड को अपने कर्तव्यों को पारदर्शी और अधिक प्रभावी ढंग से निर्वहन करने में मदद मिलेगी.
उन्होंने कहा कि पहली बार ”पसमांदा” (पिछड़े) मुसलमानों, गरीबों, महिलाओं और यतीमों को वक्फ के लाभार्थियों में शामिल किया गया है.

समिति द्वारा स्वीकार किए गए संशोधनों के अनुसार, राज्य वक्फ बोर्डों में अब व्यापक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हुए मुस्लिम ओबीसी समुदाय से एक सदस्य शामिल किया जाएगा. इसमें ऐसे प्रावधान भी हैं जो राज्य सरकार को आगाखानी और बोहरा समुदायों के लिए अलग वक्फ बोर्ड स्थापित करने और ‘वक्फ अलल औलाद’ (पारिवारिक वक्फ) में महिलाओं के विरासत अधिकारों की रक्षा करने की अनुमति देते हैं.

यदि वकिफ (वक्फ करने वाले) द्वारा निर्दष्टि किया गया है तो संशोधन विधवाओं, तलाकशुदा महिलाओं और यतीमों का समर्थन करने के लिए ‘वक्फ अलल औलाद’ से होने वाली आय की भी अनुमति देता है. समिति ने पिछले साल आठ अगस्त को अपने गठन के बाद से राष्ट्रीय राजधानी में 38 बैठकें कीं और देश के कई राज्यों का दौरा किया तथा अपने निष्कर्षों पर पहुंचने के लिए हितधारकों से परामर्श भी किया.

विपक्षी सदस्यों ने कहा कि 655 पृष्ठों की रिपोर्ट उन्हें मंगलवार रात को वितरित की गई थी, और उन्हें इसका अध्ययन करने और अपना असहमति पत्र तैयार करने के लिए बहुत कम समय दिया गया था. टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने दावा किया कि समिति की टिप्पणियां और सिफारिशें ”पूरी तरह से विकृत हैं.” एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि प्रस्तावित कानून वक्फ बोर्डों को नष्ट कर देगा और इसके कामकाज में सरकार के हस्तक्षेप का रास्ता बना देगा. कांग्रेस सांसद सैयद नासिर हुसैन ने संशोधनों को ”असंवैधानिक” बताया और आरोप लगाया कि विधेयक का उद्देश्य अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना है.

द्रमुक सांसद ए. राजा ने कहा कि उनकी पार्टी संसद से पारित होने के बाद प्रस्तावित कानून को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगी.
आलोचना को खारिज करते हुए, भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने कहा कि प्रस्तावित कानून का उद्देश्य वक्फ बोर्डों में पारर्दिशता और जवाबदेही लाना है. उन्होंने दावा किया कि इससे मुस्लिम समुदाय सशक्त होगा.

विधेयक मौजूदा कानून में ”उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ” खंड को हटाने के सरकार के रुख को स्वीकार करता है, लेकिन इसमें यह भी जोड़ा गया है कि ऐसी संपत्तियों के खिलाफ पूर्वगामी आधार पर कोई भी मामला फिर से नहीं खोला जाएगा, बशर्ते कि ये विवाद में न हों या सरकार के न हों.

अपनी 655 पृष्ठों की मसौदा रिपोर्ट में वक्फ संशोधन विधेयक पर संयुक्त समिति ने यह स्पष्ट कर दिया कि वक्फ संपत्ति की ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ परिभाषा को हटाने के प्रावधान आगामी समय से प्रभावी होंगे. समिति ने वक्फ बोर्डों में गैर-मुसलमानों को शामिल करने के सरकार के कदम का भी समर्थन किया है और कहा है कि वे “लाभार्थी, विवादों के पक्षकार” हो सकते हैं.

यह सरकार के साथ विवादों के मामलों में संबंधित जिला कलेक्टर के पास निहित जांच शक्ति को समाप्त कर देता है तथा राज्य सरकार को मामले की जांच के लिए कलेक्टर से वरिष्ठ अधिकारी को नामित करने का अधिकार मिलता है. समिति ने गत सोमवार को हुई एक बैठक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों द्वारा प्रस्तावित सभी संशोधनों को स्वीकार कर लिया था और विपक्षी सदस्यों के संशोधनों को खारिज कर दिया था.

समिति में शामिल विपक्षी सदस्यों ने वक्फ (संशोधन) विधेयक के सभी 44 प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव रखा था और उन्होंने दावा किया था कि समिति की ओर से प्रस्तावित कानून विधेयक के ‘दमनकारी’ चरित्र को बरकरार रखेगा और मुस्लिमों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का प्रयास करेगा.

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजीजू द्वारा लोकसभा में पेश किए जाने के बाद 8 अगस्त, 2024 को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया था. विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों को विनियमित और प्रबंधित करने से जुड़े मुद्दों और चुनौतियों का समाधान करने के लिए वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करना है.

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