
इंदौर. मध्यप्रदेश के इंदौर में साइबर ठग गिरोह के “डिजिटल अरेस्ट” के जाल में फंसे 35 वर्षीय सॉफ्टवेयर पेशेवर को पुलिस ने एक होटल के कमरे से मुक्त कराया है. पुलिस के एक अधिकारी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी. पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) अभिनय विश्वकर्मा ने बताया कि सॉफ्टवेयर कंपनी के इस कर्मचारी के परिजनों ने विजय नगर पुलिस को बुधवार को सूचना दी थी कि वह घर से गायब है और फोन भी नहीं उठा रहा है.
उन्होंने बताया,”जब हम सुरागों के आधार पर एक होटल के कमरे में पहुंचे, तो यह पेशेवर अपने मोबाइल फोन पर वीडियो कॉल के जरिये एक ठग से बात कर रहा था. इस ठग ने वर्दी पहन कर पुलिस अधिकारी जैसा हुलिया बना रखा था.” विश्वकर्मा ने बताया कि ठग ने इस व्यक्ति को यह झांसा देकर फर्जी तौर पर “डिजिटल अरेस्ट” कर रखा था कि मुंबई के एक आपराधिक मामले की जांच के लिए उससे पूछताछ की जरूरत है.
डीसीपी ने बताया,”जब पुलिस का दल होटल के कमरे में पहुंचा, तो सॉफ्टवेयर पेशेवर इस कदर घबरा गया कि उसने अपना मोबाइल फोन फौरन अपने कपड़ों में छिपा लिया.” उन्होंने बताया कि पीड़ित व्यक्ति ने बताया कि उसे बुधवार को दुबई के एक फोन नंबर से कॉल आया था जिसके बाद वह साइबर ठग गिरोह के जाल में फंस गया और उसने होटल में कमरा बुक करते हुए खुद को इसमें बंद कर लिया.
विश्वकर्मा ने बताया,”पुलिस के पहुंचने तक यह व्यक्ति डिजिटल अरेस्ट के नाम पर करीब चार घंटे तक होटल के कमरे में बंद रहा.” विजय नगर थाने के प्रभारी चंद्रकांत पटेल ने बताया कि पीड़ित व्यक्ति के बैंक खाते में 26 लाख रुपये जमा हैं और अगर पुलिस वक्त रहते उसके पास नहीं पहुंचती, तो वह “डिजिटल अरेस्ट” की आड़ में ठगी का शिकार होकर यह रकम गंवा सकता था.
“डिजिटल अरेस्ट” साइबर ठगी का नया तरीका है. हालांकि, “डिजिटल अरेस्ट” जैसी किसी प्रक्रिया का हकीकत में कोई कानूनी वजूद नहीं होता. ऐसे मामलों में ठग खुद को कानून प्रवर्तन अधिकारी बताकर लोगों को ऑडियो या वीडियो कॉल करके फर्जी आपराधिक मामलों के नाम पर डराते हैं. फिर उन्हें गिरफ्तारी का झांसा देते हुए डिजिटल तौर पर बंधक बनाकर चूना लगा देते हैं.



