अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम ने धर्मनिरपेक्षता के लिए मौत की घंटी बजा दी है: माकपा

नयी दिल्ली. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने मंगलवार को कहा कि 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह ने धर्मनिरपेक्षता के लिए ”मौत की घंटी” बजा दी है जो सरकार, प्रशासन और राजनीति से धर्म को अलग करने के रूप में परिभाषित है.

तिरुवनंतपुरम में मंगलवार को समाप्त हुई अपनी केंद्रीय समिति की तीन दिवसीय बैठक के बाद जारी एक बयान में वामपंथी पार्टी ने कहा कि वह धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करती है जो हर व्यक्ति की व्यक्तिगत पसंद है, लेकिन 22 जनवरी का कार्यक्रम केवल राजनीतिक लाभ के लिए आयोजित किया गया था.

पार्टी ने कहा, ”इससे यह भी संकेत मिलता है कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को अब ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा.” माकपा की केंद्रीय चुनाव समिति ने एक बयान में कहा, ”22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह ने वास्तव में उस धर्मनिरपेक्षता के लिए मौत की घंटी बजा दी है, जिसे सरकार, प्रशासन और राजनीति से धर्म को अलग करने के रूप में परिभाषित किया गया है. पूरा कार्यक्रम एक राज्य प्रायोजित कार्यक्रम था जिसमें सीधे प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यपाल और पूरी सरकारी मशीनरी शामिल थी.”

वामपंथी दल का कहना था, ”भारत की राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति दोनों ने प्रधानमंत्री को बधाई संदेश भेजे, जिसमें ‘अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने’, ”सभ्यता के पथ पर भारत का नियति से मिलन” आदि जैसे विभिन्न शब्दों से सराहना की गई. पूरा समारोह सरकार के उस मूल सिद्धांत का सीधा उल्लंघन था जिसके बारे में उच्चतम न्यायालय ने दोहराया कि संविधान के तहत राज्य की कोई धार्मिक संबद्धता या प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए.”

बयान में कहा गया है, ”यह सीधे तौर पर राजनीतिक और चुनावी लाभ के लिए किया गया कार्यक्रम था.” इसमें कहा गया है कि आरएसएस और भाजपा ने राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह के लिए बड़े पैमाने पर देशव्यापी अभियान चलाया. माकपा ने दावा किया कि हाल के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत जातिगत भावनाओं के दोहन के साथ-साथ हिंदुत्व वोटों के एकीकरण के कारण हुई.

उसने केरल के संदर्भ में कहा कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने निर्वाचित राज्य सरकार पर लगातार हमले करके सभी सीमाएं लांघ दी हैं. माकपा ने यह भी कहा कि कांग्रेस केरल में एलडीएफ सरकार के प्रति नकारात्मक रुख अपना रही है तथा केरल के अधिकारों पर केंद्र के हमले को लेकर चुप है.

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