
नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केरल सरकार को निर्देश दिया कि वह उन सभी क्षेत्रों में सरकारी प्राथमिक (लोअर-प्राइमरी) और उच्च प्राथमिक (अपर-प्राइमरी) विद्यालय स्थापित करने के लिए एक ‘समग्र निर्णय’ ले, जहां कोई भी विद्यालय संचालित नहीं है.
यह देखते हुए कि बच्चों के नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम के तहत प्रत्येक बच्चे को नजदीक में स्कूली शिक्षा की सुविधा मिलनी चाहिए, प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कई निर्देश जारी किए. पीठ ने केरल उच्च न्यायालय के उस निर्देश को बरकरार रखा, जिसमें राज्य सरकार को ऐसे क्षेत्र में एक स्कूल स्थापित करने का निर्देश दिया गया था, जिसके 3-4 किलोमीटर के दायरे में कोई शैक्षणिक सुविधा नहीं है.
पीठ ने कहा, ”केरल सरकार को उन सभी क्षेत्रों में सरकारी प्राथमिक विद्यालय स्थापित करने के लिए एक समग्र निर्णय लेना चाहिए, जहां 2009 के अधिनियम के तहत कोई भी विद्यालय नहीं है.” पीठ ने यह भी कहा, ”कठिन भौगोलिक भूभाग वाले ऐसे सभी क्षेत्रों में बिना किसी देरी के विद्यालय स्थापित किए जाने चाहिए.” पीठ ने दो चरणों वाला दृष्टिकोण निर्धारित किया. इसके तहत पहले चरण में, सरकार को उन सभी क्षेत्रों की पहचान करनी होगी, जहां कोई ‘लोअर-प्राइमरी’ या ‘अपर-प्राइमरी’ विद्यालय नहीं है.
दूसरे चरण में, उन सभी क्षेत्रों में स्कूल स्थापित किए जाने चाहिए, जहां एक किलोमीटर के दायरे में कोई प्राथमिक विद्यालय या 3-4 किलोमीटर के दायरे में कोई उच्च प्राथमिक विद्यालय नहीं है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ”हम जानते हैं कि राज्य सरकार के पास आवश्यक स्कूलों के समग्र निर्माण के लिए धन की कमी हो सकती है. इस संबंध में, कुछ निजी भवनों की पहचान की जाए, जहां अस्थायी व्यवस्था के रूप में स्कूल स्थापित किए जा सकें. लेकिन ऐसी व्यवस्था अनिश्चितकाल तक जारी नहीं रह सकती, और इसके लिए आवश्यक बजटीय आवंटन किया जाना आवश्यक है.” यह आदेश उस याचिका पर दिया गया था, जिसमें अनुरोध किया गया था कि एलाम्ब्रा (मंजरि नगरपालिका) में एक स्कूल स्थापित किया जाए, क्योंकि वहां 3-4 किलोमीटर के दायरे में कोई प्राथमिक शैक्षणिक संस्थान मौजूद नहीं है.



