आदिवासी नहीं हैं सनातन: झामुमो की नवनिर्वाचित सांसद ने ‘सरना धर्म संहिता’ की वकालत की
नयी दिल्ली. झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य महुआ माजी ने सोमवार को कहा कि केंद्र को देश के आदिवासियों के धर्म के रूप में ‘सरना’ को मान्यता देने की लंबे समय से चली आ रही मांग को स्वीकार करना चाहिए क्योंकि पूजा करने का उनका अपना तरीका और धार्मिक प्रथा है.
मानसून सत्र के पहले दिन संसद के उच्च सदन की सदस्य के रूप में शपथ लेने वाली झामुमो की नेता ने पीटीआई-भाषा से कहा कि वह अपने राज्य के लोगों की आवाज उठाने के लिए मंच का इस्तेमाल करेंगी और ‘सरना धर्म संहिता’ को मान्यता देने के लिए सरकार पर दबाव भी बनाएंगी.
उन्होंने कहा, “यह हमारी पार्टी की लंबे समय से लंबित मांग है. अब तक सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया है. मैं ‘धरती पुत्र’ की आवाज बनूंगी और इस मुद्दे पर अपनी पार्टी के रुख को मजबूती से रखूंगी.” माजी ने कहा कि देश के आदिवासियों की अपनी पूजा और धार्मिक प्रथाएं हैं, जो सनातन (ंिहदू) या किसी अन्य धर्म से बहुत अलग हैं.
उन्होंने कहा कि वह राज्य में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए भी काम करेंगी और यह सुनिश्चित करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगी कि जब संसद कोई विधायी कार्य करे तो झारखंड के लोगों के हितों की रक्षा हो. माजी ने कहा, ‘‘मेरी पार्टी ने जिस उम्मीद के साथ मुझे यहां भेजा है, मैं उसे पूरा करने की पूरी कोशिश करूंगी. मैं झारखंड के लोगों के हितों की रक्षा के लिए आवाज उठाऊंगी.’’ समाजशास्त्री और ंिहदी भाषा की लेखिका माजी पिछले महीने झारखंड से राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुनी गई थीं.
झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन ने राज्यसभा चुनाव के लिए पार्टी उम्मीदवार के रूप में उनके नाम की घोषणा की थी.
पार्टी की महिला इकाई की पूर्व अध्यक्ष माजी ने 2013 से 2016 तक झारखंड राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था. उन्होंने 2014 और 2019 में रांची से राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन हार गई थीं.