हर समझौते पर अपनी ‘छाप’ चाहते हैं ट्रंप, अभी खत्म नहीं हुई व्यापार वार्ता

न्यूयार्क. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हर समझौते पर अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं और इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को व्यापार समझौते के अंतिम मुद्दों पर सीधे उनसे बातचीत करनी पड़ सकती है. एक पूर्व अमेरिकी व्यापार वार्ताकार ने यह बात कही है.
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि द्विपक्षीय व्यापार वार्ता अभी खत्म नहीं हुई है.

अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी मंच के वरिष्ठ सलाहकार और पूर्व सहायक अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि मार्क लिंस्कॉट ने सुझाव दिया है कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता में प्रगति हुई है क्योंकि ट्रंप प्रशासन के कई अधिकारी पिछले कुछ हफ्तों से समझौते के संकेत दे रहे हैं और इसमें राष्ट्रपति भी शामिल हैं.

उन्होंने कहा, ”लेकिन राष्ट्रपति हर समझौते पर अपनी मुहर चाहते हैं. भारत के साथ ऐसा होने के लिए, मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी को राष्ट्रपति के साथ सीधे अंतिम मुद्दों पर बातचीत करने के लिए संपर्क करना होगा. इसमें ऊर्जा और सैन्य उपकरणों की खरीद और अमेरिका में निवेश पर कोई भी प्रमुख प्रतिबद्धता शामिल है. किसी भी कारण से, ऐसा नहीं हो सका. मुझे उम्मीद है कि दोनों पक्ष अगस्त में बातचीत फिर से शुरू कर सकते हैं.” ट्रंप ने बुधवार को एक अगस्त से भारत से आने वाले सभी सामान पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने के साथ रूस से कच्चे तेल और सैन्य उपकरणों की खरीद पर जुर्माना भी लगाने की भी घोषणा की.

यह घोषणा अचंभित करने वाली है. क्योंकि एक दिन पहले ही भारतीय अधिकारियों ने कहा था कि अमेरिकी व्यापार दल 25 अगस्त से व्यापार समझौते पर बातचीत के लिए भारत आएगा. ट्रंप की शुल्क घोषणा को भारत पर अमेरिका की मांगें मनवाने के लिए दबाव बनाने की एक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है. अमेरिका ने हाल में जापान, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख साझेदारों के साथ अनुकूल व्यापार समझौते किए हैं.

लिंस्कॉट ने कहा कि रूस का उल्लेख ‘निश्चित रूप से स्थिति को जटिल बनाता है’ और वार्ता में एक नया आयाम जोड़ता है. यह अभी साफ नहीं है कि इन मुद्दों को व्यापार समझौते में कैसे जोड़ा जा सकता है. उन्होंने कहा कि वार्ता को फिर से शुरू करने और एक अंतरिम समझौते को अंतिम रूप देने में भारत और अमेरिका के व्यापक हित हैं.

लिंस्कॉट ने कहा, ”…अमेरिका भारत का सबसे बड़ा विदेशी निर्यात बाजार है और भारत इसके भविष्य के लिए एक विकासशील बाजार है. व्यापार समझौते न हो पाने से दोनों देशों की आर्थिक वृद्धि पर असर पड़ेगा.” वाशिंगटन स्थित व्यापार परामर्श एवं सलाहकार कंपनी द एशिया ग्रुप के उपाध्यक्ष अमन ठक्कर ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस महीने की शुरुआत में दोनों पक्षों के बीच समझौते के बहुत करीब होने के बावजूद शुल्क पर अमेरिका-भारत समझौते को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका.

ठक्कर ने बयान में कहा कि भारत ने अमेरिका से कुल 13 से 15 प्रतिशत शुल्क दर की मांग की, जबकि राष्ट्रपति ट्रंप कथित तौर पर 20 प्रतिशत के करीब शुल्क दर चाहते थे. इस पर भारत सहमत होने को तैयार नहीं था. उन्होंने कहा कि अमेरिका कृषि और डेयरी जैसे प्रमुख संवेदनशील क्षेत्रों में भी बाजार पहुंच बढ़ाने की मांग कर रहा था. हालांकि, भारत ने कथित तौर पर इन क्षेत्रों में कुछ रियायतें दीं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं थीं.

ठक्कर ने कहा कि एक अगस्त की समयसीमा से पहले शुल्क दरों पर किसी समझौते पर न पहुंच पाना एक झटका है. हालांकि, बातचीत का यह मौजूदा चरण उस व्यापक द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) का हिस्सा है जिसकी घोषणा ट्रंप और मोदी ने फरवरी में वाशिंगटन में अपनी मुलाकात के दौरान की थी.

द एशिया ग्रुप के शीर्ष अधिकारी बसंत संघेरा ने कहा कि अमेरिका-भारत व्यापार वार्ता अभी पूरी नहीं हुई है. उन्होंने कहा, ”व्हाइट हाउस के ‘मूड’ के आधार पर हवाएं दूसरी दिशा में भी जा सकती हैं….” उन्होंने कहा, ”राष्ट्रपति की यह टिप्पणी भारत में संसद में चर्चा के बीच आई है, जिससे स्थिति और जटिल हो गई है. लेकिन इस बीच, कार्यकारी स्तर के वार्ताकार एक बड़े व्यापार समझौते के अन्य पहलुओं पर काम करना जारी रखे हुए हैं. भारत के लिए, यह दिखाना कि वह कम से कम अस्थायी रूप से उच्च शुल्क सहने को तैयार है, घरेलू स्तर पर ज्यादा राजनीतिक गुंजाइश पैदा कर सकता है.” संघेरा ने भारत पर शुल्क लगाने की ट्रंप की घोषणा को एक छोटा और अस्थायी झटका बताया.

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