पशु चिकित्सक से बलात्कार-हत्या मामले में चार संदिग्धों को मुठभेड़ में ‘जानबूझकर’ मारा गया

हैदराबाद. हैदराबाद में दिसंबर 2019 में पशु चिकित्सक से सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में चार संदिग्धों की मुठभेड़ में मौत के सिलसिले में गठित तीन सदस्यीय आयोग ने कहा है कि पुलिस र्किमयों ने ‘जानबूझकर’ गोली चलाई थी. उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश वी. एस. सिरपुरकर की अध्यक्षता वाले आयोग ने यह भी कहा कि उनका मानना है कि मृत्यु के समय संदिग्धों में से तीन नाबालिग थे.

चार संदिग्धों मोहम्मद आरिफ, ंिचताकुंटा चेन्नाकेशवुलु, जोलू शिवा और जोलू नवीन को 29 नवंबर, 2019 को पशु चिकित्सक से सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था. आयोग ने अपनी 387 पृष्ठ की रिपोर्ट में कहा है कि दो संदिग्धों के पुलिस पर कीचड़ और मिट्टी फेंकने, पुलिस से हथियार छीनने और अंधाधुंध गोलीबारी करने के बारे में पुलिस के बयान में काफी विसंगतियां हैं.

चार संदिग्धों को पुलिस ने 6 दिसंबर को यहां चटनपल्ली में उसी राजमार्ग पर कथित मुठभेड़ में मार गिराया था, जहां 25 वर्षीय पशु चिकित्सक का जला हुआ शव मिला था. पुलिस ने आरोप लगाया था कि 27 नवंबर 2019 को महिला पशु चिकित्सक का अपहरण कर यौन शोषण किया गया और बाद में उसकी हत्या कर दी गई. उन्होंने कहा था कि बाद में आरोपियों ने महिला के शव को जला दिया था.

उच्चतम न्यायालय को सौंपी गई आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है, ”हमारी राय में, आरोपियों को जानबूझकर मौत के घाट उतारने के इरादे और इस सोच के साथ गोली मार दी गई थी कि गोली लगने से संदिग्धों की मौत हो जाएगी.” रिपोर्ट में कहा गया है कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि सुरक्षित गृह से लेकर चटनपल्ली में हुई घटना तक का पुलिस दल का पूरा बयान मनगढ़ंत है. संदिग्धों के लिए पुलिस के हथियार छीनना असंभव था और वे आग्नेयास्त्रों को नहीं चला सकते थे. इसलिए, पूरा बयान अविश्वसनीय है.

आगे क्या प्रक्रिया होनी चाहिये, इसके बारे में कुछ सिफारिशें करते हुए आयोग ने कहा, ”जिस तरह मॉब लिंचिंग अस्वीकार्य है, उसी तरह तत्काल न्याय का कोई विचार भी अस्वीकार्य है. हर समय कानून का शासन कायम होना चाहिए. अपराध के लिए सजा केवल कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया द्वारा होनी चाहिए.”

 

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