
नयी दिल्ली. कानूनविदों के एक वर्ग ने उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद के साथ हालिया मुलाकात को लेकर सोमवार को पूर्व न्यायाधीश की तीखी आलोचना की और आरोप लगाया कि मुकदमे में दोषी करार दिये गए व्यक्तियों से मिलना उनके इरादों एवं निष्ठा के बारे में बहुत कुछ कहता है.
प्रसाद ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के साथ अपनी मुलाकात की तस्वीरें ‘एक्स’ पर पोस्ट की थीं. न्यायमूर्ति रेड्डी नौ सितंबर को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार सी पी राधाकृष्णन के खिलाफ विपक्ष के उम्मीदवार हैं.
शीर्ष अदालत के वरिष्ठ अधिवक्ताओं सहित 25 कानूनविदों के एक समूह ने संयुक्त बयान में तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, ”यह जानकर निराशा हुई कि (न्यायमूर्ति) बी. सुदर्शन रेड्डी ने हाल में लालू प्रसाद के साथ एक निजी बैठक की, जो चारा घोटाला मामले में दोषी करार दिये गए हैं.” उन्होंने कहा, ”रेड्डी जैसे कद के व्यक्ति, जो उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हैं और जिनकी महत्वाकांक्षा देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों में से एक पर आसीन होने की है, के लिए इस तरह की संदिग्ध प्रकृति की मुलाकात उनके निर्णय और उपयुक्तता पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है.”
उन्होंने आरोप लगाया कि रेड्डी का दोषी करार दिये गए उन व्यक्तियों के साथ जुड़ने का निर्णय, जिन्होंने ”भ्रष्टाचार के जरिये राष्ट्रीय हितों को स्पष्ट रूप से नुकसान पहुंचाया है, उनके इरादों और निष्ठा के बारे में बहुत कुछ कहता है.” बयान में कहा गया है, ”चुनावी कारणों का हवाला देकर इस मुलाकात को उचित नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि लालू प्रसाद न तो संसद सदस्य हैं और न ही वह उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान करने के पात्र हैं.”
बयान के अनुसार, ”इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि यह बैठक कोई वैध राजनीतिक उद्देश्य पूरा नहीं करता.” सोमवार को जारी बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में उच्चतम न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद, संजय जैन, सोनिया माथुर और अनिल सोनी के साथ-साथ महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष और सदस्य मोतीसिंह मोहता, मिलिंद पाटिल, पारिजात पांडे और सुभाष घटगे भी शामिल हैं.
उन्होंने न्यायमूर्ति रेड्डी की लालू प्रसाद से मुलाकात को ”चिंतित करने वाला” बताया और कहा, ”एक प्रभावशाली और प्रतिष्ठित संवैधानिक पद पर आसीन होने की आकांक्षा रखने वाले व्यक्ति द्वारा की गई यह चूक, निर्णय लेने में एक बुनियादी त्रुटि दर्शाती है, जिसपर आम लोगों को विचार करना चाहिए.” किसी का नाम लिये बिना, उन्होंने रेड्डी की प्रसाद से मुलाकात पर ”कुछ वर्गों” की चुप्पी की भी आलोचना की और कहा कि यह (चुप्पी) ऐसे लोगों के पक्षपातपूर्ण स्वभाव की फिर से पुष्टि करती है.
जमीन के बदले नौकरी ‘घोटाला’ मामले में लालू ने अदालत से प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में कथित जमीन के बदले नौकरी घोटाले में सीबीआई की प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया और दलील दी कि यह बिना किसी आवश्यक मंज.ूरी के दर्ज की गई थी. यादव के वकील ने न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा के समक्ष दलील दी कि सीबीआई जांच ‘अवैध’ थी. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया, ”सीबीआई ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अनिवार्य मंज.ूरी के बिना प्राथमिकी दर्ज की. इससे पूरी जांच अवैध हो जाती है. मंज.ूरी के अभाव में जांच शुरू ही नहीं हो सकती थी. पूरी कार्यवाही ही गलत है.” सिब्बल ने कहा कि मंजूरी इसलिए ज.रूरी थी, क्योंकि यादव उस समय रेल मंत्री के रूप में आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे थे.
उन्होंने आगे कहा, ”हम मंजूरी नहीं मिलने को चुनौती दे रहे हैं. वे प्राथमिकी दर्ज नहीं कर सकते थे. जांच शुरू नहीं हो सकती थी. हम केवल आरसी को रद्द करने में रुचि रखते हैं.” इस बीच, सीबीआई ने यादव पर अधीनस्थ अदालत में आरोपों पर अपनी दलीलें ‘जानबूझकर’ पूरी न करने का आरोप लगाया.
सीबीआई के वकील ने कहा, ”कल अधीनस्थ अदालत में दलीलें पूरी होंगी. वे जानबूझकर अधीनस्थ अदालत में अपनी दलीलें पूरी नहीं कर रहे हैं.” न्यायाधीश ने कहा कि मंजूरी नहीं मिलने का मामला अगर स्वीकार भी कर लिया जाए, तो यह केवल पीसी एक्ट के तहत अपराधों पर लागू होगा, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) पर नहीं. इस मामले की अगली सुनवाई 25 सितंबर को होगी. उच्चतम न्यायालय ने 18 जुलाई को इस मामले में अधीनस्थ अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, जबकि इससे पहले 29 मई को उच्च न्यायालय को कार्यवाही पर रोक लगाने का कोई ‘ठोस कारण’ नहीं मिला था.
यह मामला भारतीय रेलवे के पश्चिम मध्य क्षेत्र (जिसका मुख्यालय मध्य प्रदेश के जबलपुर में है) में ग्रुप डी की नियुक्तियों से संबंधित है, जो 2004 से 2009 के बीच यादव के रेल मंत्री के रूप में कार्यरत रहने के दौरान की गई थीं. ये नियुक्तियां कथित तौर पर नौकरी पाने वाले अ्भ्यियथयों की ओर से राजद प्रमुख के परिवार या सहयोगियों के नाम पर हस्तांतरित की गई या उन्हें उपहार में दी गई जमीन के बदले में की गई थीं.
यादव और उनकी पत्नी, दो बेटियों, अज्ञात सरकारी अधिकारियों और निजी व्यक्तियों सहित अन्य के खिलाफ 18 मई, 2022 को मामला दर्ज किया गया था. पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सक्षम अदालत के समक्ष ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल करने के बाद सीबीआई की प्रारंभिक पूछताछ और जांच बंद होने के लगभग 14 साल की देरी के बाद 2022 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी.