विज्ञापन मामला: शीर्ष अदालत ने रामदेव और बालकृष्ण ने सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने को कहा

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने योग गुरु रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण को “एलोपैथी को नीचा दिखाने” के किसी भी प्रयास के खिलाफ मंगलवार को चेतावनी दी और उन्हें पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के खिलाफ भ्रामक विज्ञापन मामले में अवमानना कार्यवाही में एक सप्ताह के भीतर “सार्वजनिक माफी मांगने और पश्चाताप दिखाने” की अनुमति दी. शीर्ष अदालत ने हालांकि, यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह अभी उन्हें इस चरण में राहत नहीं देने जा रही है.

शीर्ष अदालत 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें कोविड टीकाकरण और चिकित्सा की आधुनिक पद्धतियों के खिलाफ एक दुष्प्रचार अभियान चलाने का आरोप लगाया गया है. सुनवाई के दौरान रामदेव और बालकृष्ण दोनों व्यक्तिगत रूप से उपस्थित थे और दोनों की ओर से पेश हुए वकील ने बिना शर्त माफ.ी मांगी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ से कहा कि वे “पछतावा दिखाने के लिए सार्वजनिक माफी मांगने” को तैयार हैं.

पीठ ने दोनों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा, “विज्ञापन के माध्यम से आपको जो करना है, करें, हम इस पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं. लेकिन इस समय, हम यह नहीं कह रहे हैं कि उन्हें इससे राहत मिल गई है.” रोहतगी की इस दलील पर गौर करते हुए कि प्रायश्चित्त करने के लिए, रामदेव और बालकृष्ण ने एकतरफा कुछ कदम उठाने का प्रस्ताव रखा है, पीठ ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया और मामले की सुनवाई 23 अप्रैल को करना तय किया. सुनवाई के दौरान, पीठ ने रामदेव और बालकृष्ण से बातचीत की और उनसे पूछा कि उन्होंने अदालत को दिए गए आश्वासन और उसके द्वारा पारित आदेशों का उल्लंघन क्यों किया.

न्यायमूर्ति कोहली ने रामदेव से कहा, “हम समझना चाहते हैं. बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण दोनों यहां हैं. आपकी बहुत प्रतिष्ठा है… लोग आपको देखते हैं, आपके कार्यों की सराहना करते हैं. आपने योग के लिए बहुत सारे काम किए हैं.” रामदेव ने हाथ जोड़कर कहा, ”मैं कहना चाहता हूं कि मैंने जो भी गलती की है उसके लिए मैंने बिना शर्त माफी मांग ली है.” न्यायमूर्ति कोहली ने रामदेव से उस संवाददाता सम्मेलन के बारे में पूछा, जिसे उन्होंने पिछले साल 21 नवंबर के उच्चतम न्यायालय के उस आदेश के बाद संबोधित किया था, जिसमें पतंजलि आयुर्वेद की ओर से पेश वकील द्वारा दिए गए हलफनामे का संज्ञान लिया गया था.

उस आदेश में, शीर्ष अदालत ने कहा था कि पतंजलि आयुर्वेद का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने उसे आश्वासन दिया था कि ”अब से खासकर पतंजलि आयुर्वेद द्वारा निर्मित और विपणन किए गए उत्पादों के विज्ञापन या ब्रांडिंग के संबंध में किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं होगा. यह भी कहा गया था कि प्रभावशीलता के संबंध में या चिकित्सा की किसी भी पद्धति के खिलाफ कोई भी बयान किसी भी रूप में मीडिया में जारी नहीं किया जाएगा.” शीर्ष अदालत ने कहा था कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ”इस तरह के आश्वासन का पालन करने के लिए बाध्य है.” मंगलवार की सुनवाई के दौरान रामदेव ने पीठ से कहा कि उनका किसी भी तरह से अदालत के प्रति अनादर दिखाने का कोई इरादा नहीं था.

योग गुरु ने कहा कि उस वक्त उन्होंने जो किया, उन्हें वह नहीं करना चाहिए था और वह भविष्य में भी इस बात को ध्यान में रखेंगे. उन्होंने कहा कि यह काम के प्रति उनके उत्साह के चलते हुआ. बालकृष्ण ने भी गलती के लिए माफी मांगी. न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा, ”आप एलोपैथी को नीचा नहीं दिखा सकते. आप अपना काम करिये. आप अच्छा काम कर रहे हैं.” पीठ ने कहा कि उसने पतंजलि के वकील के हलफनामा देने के बाद पिछले साल नवंबर में आदेश पारित किया था.

पीठ ने कहा, ”आपने यह सब तब किया जब अदालत का आदेश था. आप इतने मासूम नहीं थे कि आपको पता न चले कि अदालत में क्या हुआ है.” पीठ ने कहा, ”इतनी मासूमियत अदालत में काम नहीं आती.” इसमें कहा गया, ”अगर आप सोच रहे हैं कि आपके वकील ने माफी मांग ली है, तो हमने अभी तक यह तय नहीं किया है कि आपकी माफी स्वीकार की जाए या नहीं.” पीठ ने तब नाराजगी जताई जब पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रबंध निदेशक बालकृष्ण ने कहा कि रामदेव का कंपनी के रोजमर्रा के मामलों से कोई लेना-देना नहीं है.

न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने बालकृष्ण से कहा, “आप फिर से अपने रुख पर अड़े हुए हैं.” उन्होंने कहा कि माफी दिल से आयी प्रतीत नहीं हो रही है. रामदेव और बालकृष्ण की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने मामले की सुनवाई की शुरुआत में पीठ से कहा, ”मैं सार्वजनिक माफी मांगना चाहता हूं.” उन्होंने कहा, ”मैंने एक सुझाव दिया था कि मैं सार्वजनिक माफी मांगने को तैयार हूं ताकि जनता को पश्चाताप दिखा सकूं और ऐसा नहीं है कि मैं अदालत के प्रति कुछ दिखावा कर रहा हूं.”

न्यायमूर्ति कोहली ने दोनों को पीठ के करीब आने का इशारा करते हुए कहा, “अपने मुवक्किलों को आगे बढ.ने के लिए कहें.” उन्होंने कहा, ”सुनते हैं कि उन्हें क्या कहना है.” पीठ ने उनसे कहा कि भारत में आयुर्वेद, योग, एलोपैथी और यूनानी जैसी कई चिकित्सा पद्धतियां हैं और जनता उन सभी का उपयोग करती है. उसने कहा कि किसी एक पद्धति को खराब कहना और उसे खत्म करने की बात कहना सही नहीं है.

रामदेव ने पीठ से कहा कि चिकित्सा की दो पद्धतियों के बीच इस तरह के टकराव कुछ समय से मौजूद हैं और उनका इरादा एलोपैथी का अनादर करना नहीं था. रामदेव और बालकृष्ण ने पहले फर्म द्वारा जारी विज्ञापनों में अपने उत्पादों की औषधीय प्रभावशीलता के बारे में बड़े दावे करने पर शीर्ष अदालत के समक्ष “बिना शर्त माफी” मांगी थी. उच्चतम न्यायालय में दाखिल दो अलग-अलग हलफनामों में रामदेव और बालकृष्ण ने शीर्ष अदालत के पिछले साल 21 नवंबर के आदेश में दर्ज ”बयान के उल्लंघन” के लिए बिना शर्त माफी मांगी.

अदालत को दिए गए विशिष्ट आश्वासनों का पालन न करने और उसके बाद दोनों द्वारा मीडिया में दिए गए बयानों से पीठ अप्रसन्न हो गई. उसने बाद में नोटिस जारी करके उनसे यह बताने को कहा कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाए.
दस अप्रैल को मामले की सुनवाई करते हुए, अदालत ने बिना शर्त माफी मांगने वाले उनके हलफनामे स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और भ्रामक विज्ञापनों के मुद्दे पर नि्क्रिरयता के लिए उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण से नाराजगी जताई थी.

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