विधानसभाध्यक्ष का फैसला सत्य की जीत और निरंकुशता, तानाशाही की हार है : मुख्यमंत्री शिंदे

ठाणे/मुंबई. महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट को “असली शिवसेना राजनीतिक दल” बताए जाने के एक दिन बाद मुख्यमंत्री ने फैसले को सच्चाई और लोकतंत्र की जीत तथा निरंकुशता, तानाशाही और वंशवाद की राजनीति की हार करार दिया.

पार्टी के प्रतिद्वंद्वी गुट के प्रमुख उद्धव ठाकरे का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि यह आदेश उन लोगों के चेहरे पर एक “करारा तमाचा” है जो पार्टी को ऐसे चलाते थे जैसे कि यह उनकी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हो. वह अपने गृह नगर में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. मुख्यमंत्री शिंदे ने बुधवार को एक बड़ी राजनीतिक जीत हासिल की, जब विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर ने कहा कि जून 2022 में प्रतिद्वंद्वी समूहों के उभरने पर उनके नेतृत्व वाला शिवसेना गुट ही “असली राजनीतिक दल” था.

पार्टी में टूट के बाद दोनों धड़ों ने प्रतिद्वंद्वी धड़ों के विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने को लेकर याचिका दी थी. नार्वेकर ने दोनों गुटों के किसी विधायक को अयोग्य नहीं करार दिया. उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले पार्टी के गुट ने बाद में कहा कि वह विधानसभा अध्यक्ष के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख करेगी.

मुख्यमंत्री शिंदे ने कहा, “सत्यमेव जयते…शिवसेना पर विधानसभा अध्यक्ष का आदेश सच्चाई और लोकतंत्र की जीत है. यह निरंकुशता, तानाशाही और वंशवाद की राजनीति की हार है. इससे यह भी साबित हुआ कि किसी भी राजनीतिक दल, संगठन को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह नहीं चलाया जा सकता और कोई भी अपनी इच्छानुसार निर्णय नहीं ले सकता.”

मुख्यमंत्री ने कहा, “यह आदेश उन लोगों के चेहरे पर करारा तमाचा है जो पार्टी को ऐसे चला रहे थे जैसे कि यह उनकी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हो…यह शिवसैनिकों, बालासाहेब ठाकरे और आनंद दिघे के विचारों और सिद्धांतों की जीत है.” दिघे शिंदे के राजनीतिक गुरु थे.

उन्होंने कहा, “यह जीत उन लोगों के लिए निर्णायक प्रतिक्रिया का प्रतीक है जिन्होंने पार्टी को अपना निजी उद्यम माना. यह पार्टी मामलों के प्रबंधन को लेकर उनके लिए कड़ी फटकार है.” उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुमत की राय महत्व रखती है और आरोपों को वैध फैसले की जगह नहीं लेनी चाहिए.

उद्धव ठाकरे को निशाना बनाते हुए उन्होंने कहा “राजनीतिक पार्टी चलाना किसी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को प्रबंधित करने जैसा नहीं है. असुरक्षा के कारण इस तरह का व्यवहार हुआ और बालासाहेब की शिक्षाओं की घोर उपेक्षा हुई.” उन्होंने विपक्ष पर विधानसभा अध्यक्ष पर बेबुनियाद आरोप लगाने का भी आरोप लगाया.

वहीं छत्रपति संभाजीनगर में प्रदेश के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी उद्धव का नाम लिए बगैर उन पर निशाना साधते हुए कहा कि एक व्यक्ति जो मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान अपने घर से बाहर नहीं निकला था, वह अब इस बारे में बात कर रहा है कि उसने क्या किया है और अगर वह पद पर बना रहता तो क्या करता. ठाकरे पर कटाक्ष करते हुए.

उन्होंने कहा, “कभी-कभी हमें निबंध लिखना पड़ता है कि अगर मैं पक्षी होता तो क्या होता, अगर मैं क्रिकेटर होता तो क्या होता आदि. इस राज्य में एक व्यक्ति है जो कहता है कि मैंने यह किया है, अगर मैं मुख्यमंत्री होता तो यह करता. जब वह ढाई साल तक मुख्यमंत्री थे तो अपने घर से बाहर नहीं निकले.” उन्होंने एक कार्यक्रम से इतर कहा, “उन्हें बस घर बैठना चाहिए और निबंध लिखना चाहिए. हम लोगों की सेवा करेंगे.”

(यूबीटी) शिवसेना मामले में ‘सामना’ ने विधानसभा अध्यक्ष को घेरा, कहा- संविधान को कुचल दिया गया

शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे (यूबीटी) ने बृहस्पतिवार को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली पार्टी को ‘असली’ शिवसेना के रूप में मान्यता देने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष राहुल नार्वेकर पर निशाना साधते हुए कहा कि ”चोरों के गिरोह” को मान्यता देकर संविधान को कुचल दिया गया है.

शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र ‘सामना’ के एक संपादकीय में कहा गया कि महाराष्ट्र की जनता इसमें शामिल लोगों को माफ नहीं करेगी. वहीं, इसने सत्तारूढ. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर भी निशाना साधा. पार्टी के सांसद संजय राउत ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि नार्वेकर को न्याय करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी लेकिन उन्होंने शिंदे के वकील के रूप में काम किया.

नार्वेकर ने बुधवार को माना कि 21 जून, 2022 को शिवसेना में विभाजन के बाद एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला धड़ा ही ”असली राजनीतिक दल” (असली शिवसेना) है और उन्होंने दोनों गुटों के किसी भी विधायक को अयोग्य नहीं ठहराया. नार्वेकर का यह फैसला शिंदे के पक्ष में आया जो मुख्यमंत्री के लिए बड़ी राजनीतिक जीत है.

शिवसेना में विभाजन के 18 महीने बाद इस फैसले से शीर्ष पद के लिए शिंदे की जगह पक्की हो गई है. वहीं, लोकसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ. गठबंधन में उनकी राजनीतिक ताकत भी बढ. गई है. सत्तारूढ. गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का अजित पवार गुट भी शामिल है.

‘सामना’ के संपादकीय में नार्वेकर पर निशाना साधते हुए कहा गया, ”चोरों के गिरोह को मान्यता देकर संविधान को कुचल दिया गया.” इसमें कहा गया कि अध्यक्ष का फैसला पहले से ही तय था और इसमें हैरान होने वाली कोई बात नहीं है. मराठी भाषी दैनिक अखबार ने कहा, ”अध्यक्ष का लंबा चौड़ा फैसला दिल्ली में उनके आकाओं ने लिखा था.” इसमें आरोप लगाया गया कि बाल ठाकरे की शिवसेना को ”गद्दारों” के हवाले करने का फैसला “महाराष्ट्र के साथ बेईमानी” में शामिल होने के समान है.

संपादकीय में कहा गया कि नार्वेकर के पास इतिहास रचने का मौका था लेकिन उन्होंने ऐसा फैसला दिया जिसने लोकतंत्र के चेहरे पर ‘कालिख’ पोत दी. शिवसेना (यूबीटी) के राज्यसभा सदस्य राउत ने कहा कि यह अपेक्षित था कि निर्णय यही होगा और उन्होंने ”मैच फिक्सिंग” का आरोप लगाया.

उन्होंने दावा किया, “लोगों के मन में रोष है. उच्चतम न्यायालय ने नार्वेकर को न्याय करने की जिम्मेदारी दी थी लेकिन उन्होंने शिंदे के वकील के रूप में काम किया. वकील नार्वेकर ही शिंदे के समूह के लिए पैरवी कर रहे थे.” राउत ने कहा कि नार्वेकर का पार्टी के 2018 के संविधान को मानने से इनकार करना गलत है क्योंकि इसे उच्चतम न्यायालय के समक्ष रखा गया है. राज्यसभा सदस्य ने दावा किया,”नार्वेकर ने भाजपा के कार्यकर्ता के रूप में काम किया, न कि न्यायाधिकरण के रूप में.” उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी इस मामले में उच्चतम न्यायालय जाएगी.

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