बीपीओ कर्मी हत्याकांड: अभियुक्तों के मृत्युदंड को उम्रकैद में बदलने पर लगायी शीर्ष अदालत ने मुहर

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने पुणे के 2007 के बीपीओ कर्मी सामूहिक बलात्कार-हत्या कांड में दो अभियुक्तों के मृत्युदंड को उम्रकैद में बदलने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को सोमवार को बरकरार रखा। उच्च न्यायालय ने मृत्युदंड की तामील में अत्यधिक देरी के आधार पर ‘उसे 35 साल की उम्रकैद में’ तब्दील कर दिया था।

उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति आॅगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की अपील को खारिज कर दिया।

अभियुक्तों — पुरुषोत्तम बोरोते और प्रदीप कोकाडे को 24 जून 2019 को फांसी पर चढ़ाया जाना था लेकिन उच्च न्यायालय ने 21 जून, 2019 को कहा था कि अगले आदेशों तक उन्हें फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता।

उच्च न्यायालय ने अभियुक्तों के मृत्यु वारंट की तामील पर रोक लगाने का अनुरोध संबंधी उनकी याचिकाएं 29 जुलाई, 2019 को स्वीकार कर ली थी।

उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘ हम पाते हैं कि वर्तमान मामले में मृत्युदंड देने में हुई देरी अनुचित, अत्यधिक और अविवेकपूर्ण थी।’’ उच्च न्यायालय ने कहा था कि यदि दया याचिकाओं एवं मृत्युदंड के विषय पर अतिशीघ्र निपटान की भावना से काम किया गया होता तो इस देरी से बचा जा सकता था।

उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘ हम पाते हैं कि दया याचिकाओं को निपटाने में राज्य एवं केंद्र सरकार ने अनुचित एवं अविवेकपूर्ण तरीके से देरी की।’’ उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘यहां हमें दो दोषियों के मामले पर विचार करना है, जिन्हें फांसी दी जानी है।

जब भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) की सुरक्षा दांव पर होती है, तो कार्यपालिका, न्यायालय या राज्यपाल और भारत के राष्ट्रपति एक ही पायदान पर खड़े होते हैं।’’ उसने कहा था कि इस प्रकार, राज्य या केंद्र सरकार के किसी भी अंग द्वारा देरी दोषियों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ होगी।

फैसले में कहा गया था,‘‘यह स्पष्ट है कि मृत्युदंड देना राज्य सरकार के हाथों में है। राज्य सरकार को एक तारीख तय करनी है और मृत्यु वारंट प्राप्त करना है।’’ उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस प्रकार, मृत्युदंड की तामील कराने के वास्ते तारीख तय करने की मांग करते हुए सत्र न्यायालय को केवल पत्र लिखना अनुपालन के रूप में नहीं देखा जा सकता।

उच्च न्यायालय ने कहा था,‘‘ऐसी स्थिति में, हम याचिकाकर्ताओं द्वारा जेल में बिताए गए समय को ध्यान में रखते हुए मृत्युदंड को 35 साल की अवधि के लिए आजीवन कारावास में बदलते हैं।’’ एक नवंबर, 2007 को विप्रो की 22 वर्षीय (तब) एक कर्मी ने पुणे उपनगरीय क्षेत्र में अपनी नाईट ड्यूटी पर जाने के लिए एक कंपनी का कैब बुक किया था। अपने दोस्त कोकोडे के साथ मिलकर कैब चालक बोराटे रास्ते बदलकर कर्मी को किसी दूरदराज स्थान पर ले गया जहां उन्होंने उसके साथ बलात्कार किया एवं दुपट्टे से गला घोंटकर उसे मार डाला।

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