पुरी के जगन्नाथ मंदिर में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए निर्माण गतिविधि आवश्यक हैं: न्यायालय

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ओडिशा सरकार द्वारा की जा रही निर्माण गतिविधियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को शुक्रवार को खारिज कर दिया. न्यायालय ने कहा कि मंदिर में शौचालय और सामान रखने का स्थान (क्लॉक रूम) जैसी आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए ये निर्माण कार्य व्यापक जनहित में आवश्यक हैं. न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की एक अवकाशकालीन पीठ ने जुर्माना लगाते हुए जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया.

पीठ ने स्पष्ट किया कि मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को मूलभूत सुविधाएं देने के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे आवश्यक निर्माण कार्य को रोका नहीं जा सकता. शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की आपत्ति में कोई आधार नहीं है.
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मृणालिनी पाढ़ी के मामले में इस अदालत की तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा जारी निर्देशों के अनुसरण में निर्माण हो रहा है.

पीठ ने कहा, ‘‘निर्माण कार्य पुरुषों और महिलाओं के लिए शौचालय, क्लॉक रूम, बिजली कक्ष आदि बुनियादी और आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से किये जा रहे हैं. ये बुनियादी सुविधाएं हैं जो श्रद्धालुओं के लिए आवश्यक हैं.’’ पीठ ने गैरजरूरी जनहित याचिकाएं (पीआईएल) दायर करने पर भी फटकार लगाई. उसने कहा कि इस तरह की ज्यादातर पीआईएल या तो ‘पब्लिसिटी इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ (लोकप्रियता अर्जित करने के इरादे से दायर याचिका) या फिर ‘पर्सनल इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ (व्यक्तिगत हित के लिए दायर याचिका) होती हैं.

पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि जनहित के उद्देश्य के अतिरिक्त जो पीआईएल दायर की जाती हैं, वे जनहित विरोधी होती हैं. हाल में ऐसा देखा गया है कि ढेर सारी पीआईएल दायर की जा रही हैं. इनमें से अधिकांश याचिकाएं या तो ‘पब्लिसिटी इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ या फिर ‘पर्सनल इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ होती हैं.’’ न्यायालय ने कहा, ‘‘हम इस प्रकार की गैरजरूरी पीआईएल दायर करने को अनुचित मानते हैं, क्योंकि यह कानून का दुरुपयोग करने जैसा है. इससे न्याय प्रणाली का कीमती समय बर्बाद होता है. समय आ गया है कि इस प्रकार की याचिकाओं को तत्काल समाप्त कर दिया जाए, ताकि विकास कार्य बाधित न हों.’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा माहौल बनाया गया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) की निरीक्षण रिपोर्ट का उल्लंघन कर निर्माण कार्य किया जा रहा है, लेकिन एएसआई के महानिदेशक का नोट स्थिति को स्पष्ट करता है.

पीठ ने कहा, ‘‘इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि भले ही अपीलकर्ता को वास्तविक ंिचता थी, उच्च न्यायालय द्वारा पहले से ही इस पर विचार किया जा रहा है. इसके बावजूद सोमवार को अवकाशकालीन पीठ के समक्ष तत्काल आदेश प्राप्त करने के लिए मामले का उल्लेख किया गया था.’’ पीठ ने कहा, ‘‘यह भी ध्यान रखना प्रासंगिक होगा कि उच्च न्यायालय ने खुद ओडिशा राज्य के महाधिवक्ता का बयान दर्ज किया है कि एएसआई और राज्य सरकार दोनों मिलकर यह सुनिश्चित करने के लिए काम करेंगे कि कोई भी पुरातात्विक अवशेष न छूटे या क्षतिग्रस्त न हों.’’ शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें मंदिर में ओडिशा सरकार द्वारा अवैध उत्खनन और निर्माण कार्य का आरोप लगाया गया था.

पीठ ने कहा, ‘‘ये याचिकाएं खारिज की जाती है और अपीलकर्ताओं को इस फैसले की तारीख से चार सप्ताह के भीतर प्रतिवादी संख्या एक को एक-एक लाख रुपये की राशि देनी होगी.’’ याचिका में कहा गया था कि राज्य एजेंसियां प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम,1958 की धारा 20 ए का घोर उल्लंघन करते हुए कार्य कर रही हैं. याचिका में आरोप लगाया गया था कि ओडिशा सरकार अनधिकृत कार्य कर रही है, जिससे प्राचीन मंदिर के ढांचे को खतरा पैदा हो गया है.

Related Articles

Back to top button