न्यायालय का अडाणी के खिलाफ और जांच से इनकार, सेबी को जांच पूरी करने के लिए तीन महीने का दिया समय

उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद अडाणी की कंपनियों के शेयरों में जोरदार उछाल

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने अडाणी समूह को बड़ी राहत देते हुए बुधवार को व्यवस्था दी कि उद्योग समूह के खिलाफ धोखाधड़ी के आरोपों में अब विशेष जांच दल (एसआईटी) या सीबीआई द्वारा और जांच कराने की जरूरत नहीं है. न्यायालय ने बाजार नियामक सेबी को उसकी दो साल से अधिक पुरानी जांच को पूरा करने के लिए तीन महीने का समय और दिया.

हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए धोखाधड़ी और शेयर मूल्यों में छेड़छाड़ के आरोपों में तीसरे पक्ष से जांच कराने के अनुरोध वाली याचिकाओं का निस्तारण करते हुए प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि सेबी व्यापक जांच कर रही है और उसकी कार्यशैली विश्वास पैदा करती है.

शीर्ष अदालत ने मूल रूप से 17 मई को सेबी को निर्देश दिया था कि अडाणी समूह के खिलाफ दो दर्जन मामलों में जांच 14 अगस्त, 2023 तक पूरी की जाए. सेबी ने पिछले साल अगस्त में लंबित 24 मुद्दों में से सात में जांच पूरी करने के लिए 15 और दिन का समय मांगा था. सेबी ने पिछले साल नवंबर में अदालत से कहा था कि वह और समय विस्तार की मांग नहीं करेगी और 22 मुद्दों पर उसकी जांच पूरी हो चुकी है.

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को बाजार नियामक सेबी से दो लंबित जांच को तेजी से, प्राथमिकता के साथ तीन महीने के अंदर पूरा करने को कहा. जनहित याचिकाओं के माध्यम से किए गए अनुरोधों को खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले के तथ्यों को देखते हुए एसआईटी या केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने का आदेश देने की जरूरत नहीं है, भले ही अदालत के पास जांच को हस्तांतरित करने का अधिकार है.

न्यायालय ने कहा कि अदालत को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की नियामक नीतियों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए. पीठ ने साथ ही कहा कि जांच का जिम्मा किसी और को सौंपे जाने की जरूरत नहीं है. पीठ ने अपने आदेश में कहा, ”सेबी की ओर से सॉलीसिटर जनरल ने जो आश्वासन दिया है उस पर गौर करते हुए हम सेबी को दो लंबित जांच तेजी से पूरी करने, विशेषत: तीन माह के भीतर करने के आदेश देते हैं.” इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए उद्योगपति गौतम अडाणी ने कहा कि ‘सत्यमेव जयते’.

उन्होंने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ”माननीय उच्चतम न्यायालय का फैसला दिखाता है कि सत्यमेव जयते.” अडाणी ने लिखा, ”मैं उन लोगों का आभारी हूं जो हमारे साथ खड़े हैं.” ‘ऑर्गनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट’ (ओसीसीआरपी) पर एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश उस रिपोर्ट को भी पीठ ने खारिज किया जिसमें कहा गया था कि सेबी जांच के प्रति उदासीन है.”

पीठ ने कहा ”किसी तीसरे पक्ष के संगठन के आरोपों की प्रामाणिकता को सत्यापित करने के किसी भी प्रयास के बिना उसे निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता .” शीर्ष अदालत ने उन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह निर्णय सुनाया जिनमें आरोप लगाया गया था कि अडाणी समूह द्वारा शेयर मूल्यों में हेराफेरी की गई है. प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सेबी को कानून के अनुरूप अपनी जांच तार्किक नतीजे तक पहुंचानी चाहिए.

पीठ ने कहा,” मामले के तथ्यों को देखकर ऐसा नहीं लगता कि जांच को सेबी से लेकर किसी और को सौंपा जाना चाहिए. किसी उपयुक्त मामले में इस अदालत के पास किसी अधिकृत एजेंसी की ओर से की जा रही जांच को विशेष जांच दल को या केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो को सौंपने का अधिकार है. इस प्रकार की शक्तियों का इस्तेमाल अभूतपूर्व परिस्थितियों में किया जाता है….” पीठ ने कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति के कुछ सदस्यों के खिलाफ ”हितों के टकराव” का आरोप निराधार है और खारिज किया जाता है.

पीठ ने कहा कि केंद्र और सेबी रचनात्मक रूप से विशेषज्ञ समिति के सुझावों पर विचार करें, उसकी रिपोर्ट का अध्ययन करें और नियामक ढांचे को मजबूत करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं. ये जनहित याचिकाएं वकील विशाल तिवारी, एम एल शर्मा, कांग्रेस नेता जया ठाकुर और अनामिका जायसवाल ने दाखिल की थीं और अदालत ने इन पर फैसला पिछले वर्ष 24 नवंबर को सुरक्षित रख लिया था. अडाणी समूह ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि वह सभी कानूनों का पालन करता है.

अडाणी-हिंडनबर्ग मामले में न्यायालय ने कहा : नियामकीय विफलता के लिए सेबी जिम्मेदार नहीं

उच्चतम न्यायालय ने अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद से संबंधित दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बुधवार को कहा कि अदालत के समक्ष रखी गई सामग्री के आधार पर स्पष्ट रूप से किसी भी नियामकीय विफलता के लिए सेबी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

अडाणी समूह द्वारा स्टॉक मूल्य में हेराफेरी के आरोपों से संबंधित मामले में शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा जांच में ”जानबूझकर कोई नि्क्रिरयता नहीं दिखाई गई.” प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सेबी की ओर से कथित नियामकीय विफलता के बारे में याचिकाकर्ताओं द्वारा दी गई दलीलों पर सुनवाई की.

पीठ ने कहा, ”याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि दो नियमों में संशोधन सेबी की ओर से नियामकीय विफलता के समान है. इस तरह, उन्होंने अनुरोध किया है कि सेबी को एफपीआई (विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक) विनियम और एलओडीआर (सूचीबद्धता दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकताएं) विनियम में संशोधन को रद्द करने का निर्देश दिया जाए या उपयुक्त परिवर्तन किया जाए.” शीर्ष अदालत ने कहा कि ये तर्क और प्रार्थनाएं प्रारंभिक याचिकाओं में मौजूद नहीं थीं और वे 6 मई, 2023 को अदालत द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति की एक रिपोर्ट के बाद सामने आईं.

पीठ ने कहा, ”रिपोर्ट में कहा गया है कि नियमों में संशोधन के मद्देनजर, यह सेबी द्वारा नियामक विफलता के निष्कर्ष को उचित नहीं ठहराता है. इसके बाद, याचिकाकर्ताओं ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के निष्कर्षों को झुठलाने के लिए तर्क दिए.” पीठ ने कहा कि अदालत को सेबी की दलीलों में दम नजर आता है और उसे विधायी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए बाजार नियामक द्वारा बनाए गए नियमों में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है.

पीठ ने कहा कि सेबी ने अपने नियामकीय ढांचे के विकास का पता लगाया और अपने नियमों में बदलाव के कारणों की व्याख्या की है. पीठ ने कहा, ”नियमों के वर्तमान स्वरूप पर पहुंचने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया में कुछ भी गैर कानूनी नहीं है. न ही यह तर्क दिया गया है कि नियम अनुचित, मनमाने या संविधान का उल्लंघन करने वाले हैं.”

शीर्ष अदालत ने कहा, ”इसके अतिरिक्त, हमें इस तर्क में कोई दम नहीं दिखता कि शरारत को बढ.ावा देने के लिए एफपीआई विनियम, 2014 को कमजोर कर दिया गया. संशोधनों ने कमजोर करने की बजाय, प्रकटीकरण आवश्यकताओं को अनिवार्य बनाकर और केवल मांगे जाने पर ही इसका खुलासा करने की आवश्यकता को हटाकर नियामकीय ढांचे को कड़ा कर दिया है. इसलिए प्रकटीकरण की आवश्यकता अब पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) की तर्ज पर है.” पीठ ने कहा, ”हमें नहीं लगता कि सेबी को उसके नियमों में संशोधनों को रद्द करने का निर्देश देकर हस्तक्षेप करने के लिए कोई वैध आधार उठाया गया है.”

उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद अडाणी की कंपनियों के शेयरों में जोरदार उछाल

हिंडनबर्ग विवाद में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद बुधवार को अडाणी समूह की कंपनियों के शेयर जोरदार उछाल के साथ बंद हुए. उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि अडाणी समूह के खिलाफ आरोपों की विशेष जांच दल (एसआईटी) या केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से जांच का आदेश देने का कोई आधार नहीं है. न्यायालय ने कहा कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) अपनी जांच तीन माह में पूरी करे.

इस फैसले के बाद बीएसई पर अडाणी एनर्जी सॉल्यूशंस का शेयर 11.60 प्रतिशत चढ़ गया. अडाणी टोटल गैस में 9.84 प्रतिशत, अडाणी ग्रीन एनर्जी में छह प्रतिशत और अडाणी पावर में 4.99 प्रतिशत का उछाल आया. अडाणी विल्मर का शेयर 3.97 प्रतिशत, एनडीटीवी का शेयर 3.66 प्रतिशत, अडाणी एंटरप्राइजेज 2.45 प्रतिशत, अडाणी पोर्ट्स 1.39 प्रतिशत, अंबुजा सीमेंट्स 0.94 प्रतिशत और एसीसी 0.10 प्रतिशत तक चढ़े.

शुरुआती कारोबार में, अडाणी एनर्जी सॉल्यूशंस का शेयर 17.83 प्रतिशत चढ़ गया था. एनडीटीवी में 11.39 प्रतिशत, अडाणी टोटल गैस में 9.99 प्रतिशत, अडाणी ग्रीन एनर्जी में 9.13 प्रतिशत और अडाणी एंटरप्राइजेज में 9.11 प्रतिशत का उछाल आया था. अडाणी विल्मर का शेयर 8.52 प्रतिशत, अडाणी पोर्ट्स छह प्रतिशत, अडाणी पावर 4.99 प्रतिशत, अंबुजा सीमेंट्स 3.46 प्रतिशत और एसीसी 2.96 प्रतिशत चढ़ा था.

समूह की दो कंपनियों – अडाणी पोर्ट्स और अंबुजा सीमेंट्स के शेयर सुबह के कारोबार में अपने 52-सप्ताह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए. समूह की 10 कंपनियों का संयुक्त बाजार मूल्यांकन 15,11,073.97 करोड़ रुपये था. समूह की कंपनियों ने बाजार पूंजीकरण में सामूहिक रूप से 64,189.16 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है. बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 535.88 अंक के नुकसान के साथ 71,356.60 अंक पर और निफ्टी 148.45 अंक टूटकर 21,517.35 अंक पर रहा.

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