न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से किया इनकार

उच्चतम न्यायालय का 3:2 अनुपात में फैसला, समलैंगिक जोड़े बच्चे गोद नहीं ले सकते

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने मंगलवार को सर्वसम्मति से ऐतिहासिक फैसला देते हुए समलैंगिक विवाह को विशेष विवाह कानून के तहत कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया. इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि इस बारे में कानून बनाने का काम संसद का है.

न्यायालय ने हालांकि, समलैंगिक लोगों के लिए समान अधिकारों और उनकी सुरक्षा को मान्यता दी और आम जनता को इस संबंध में संवेदनशील होने का आह्वान किया ताकि उन्हें भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का अनुरोध करने संबंधी 21 याचिकाओं पर प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने सुनवाई की.

न्यायालय ने चार अलग-अलग फैसले सुनाते हुए सर्वसम्मति से कहा कि समलैंगिक जोड़े संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में इसका दावा नहीं कर सकते हैं. पीठ ने केंद्र के इस रुख की आलोचना की कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिका शहरी अभिजात्य अवधारणा को प्रर्दिशत करती है. पीठ ने कहा कि यह सोचना कि समलैंगिकता केवल शहरी इलाकों में मौजूद है, उन्हें मिटाने जैसा होगा तथा किसी भी जाति या वर्ग का व्यक्ति समलैंगिक हो सकता है.

उन्होंने कहा कि यह कहना ”गलत है कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है.” पीठ में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल थीं.
पीठ में कुछ पहलुओं पर मतभेद था, खासकर समलैंगिक जोड़ों के लिए गोद लेने के नियमों के संबंध में. हालांकि पीठ मुख्य मुद्दे पर एकमत थी कि अदालत विशेष विवाह कानून के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दे सकती है. पीठ ने कहा कि यह कार्य संसद को करना है.

न्यायमूर्ति भट्ट, न्यायमूर्ति कोहली और न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने दो अलग-अलग फैसलों में कुछ कानूनी पहलुओं पर प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति कौल से अलग राय व्यक्त किए. प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि गोद लेने के नियमों को अमान्य माना जाता है क्योंकि वे समलैंगिक लोगों के प्रति भेदभावपूर्ण हैं और उन्हें गोद लेने के अधिकार से वंचित करते हैं. उनकी राय से असहमत न्यायमूर्ति भट्ट ने कहा कि समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने की अनुमति नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि नियम अमान्य हैं.

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायालय कानून नहीं बना सकता, बल्कि उनकी केवल व्याख्या कर सकता है और विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करना संसद का काम है. प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति कौल की राय से सहमति जताते हुए न्यायमूर्ति भट्ट ने कहा कि संविधान शादी करने का मौलिक अधिकार नहीं देता है.

सुनवाई की शुरुआत में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि मामले में उनका, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा का अलग-अलग फैसला है. प्रधान न्यायाधीश ने केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के साथ भेदभाव नहीं किया जाए. उन्होंने कहा कि समलैंगिकता प्राकृतिक होती है जो सदियों से जानी जाती है और इसका केवल शहरी या अभिजात्य वर्ग से संबंध नहीं है.

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि वह समलैंगिक जोड़ों को कुछ अधिकार दिए जाने को लेकर प्रधान न्यायाधीश से सहमत हैं. उन्होंने कहा, ”समलैंगिक और विपरीत लिंग के संबंधों को एक ही सिक्के के दो पहलुओं के रूप में देखा जाना चाहिए.” न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता देना वैवाहिक समानता की दिशा में एक कदम है.

न्यायमूर्ति भट्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि वह प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ के कुछ विचारों से सहमत और कुछ से असहमत हैं.
प्रधान न्यायाधीश ने इस अहम मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, इसका निर्णय लेना संसद का काम है. उन्होंने कहा, ”यह अदालत कानून नहीं बना सकती, वह केवल उसकी व्याख्या कर सकती है और उसे प्रभावी बना सकती है.” न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायालय सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का यह बयान दर्ज करता है कि केंद्र समलैंगिक लोगों के अधिकारों के संबंध में फैसला करने के लिए एक समिति गठित करेगा.

उन्होंने अपने फैसले का प्रभावी हिस्सा पढ़ते हुए केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे समलैंगिक अधिकारों के बारे में आम लोगों को जागरूक करने के लिए कदम उठाएं और यह सुनिश्चित करें कि लिंग-परिवर्तन ऑपरेशन की अनुमति उस आयु तक न दी जाए, जब तक इसके इच्छुक लोग इसके परिणाम को पूरी तरह समझने में सक्षम नहीं हों. प्रधान न्यायाधीश ने पुलिस को समलैंगिक जोड़े के संबंधों को लेकर उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जीवन साथी चुनने की क्षमता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी है.
उन्होंने कहा कि संबंधों के अधिकार में जीवन साथी चुनने का अधिकार और उसे मान्यता देना शामिल है. उन्होंने कहा कि इस प्रकार के संबंध को मान्यता नहीं देना भेदभाव है.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ”समलैंगिक लोगों सहित सभी को अपने जीवन की नैतिक गुणवत्ता का आकलन करने का अधिकार है.” उन्होंने कहा कि इस अदालत ने माना है कि समलैंगिक व्यक्तियों के साथ भेदभाव न किया जाना समानता की मांग है. उन्होंने कहा कि कानून यह नहीं मान सकता कि केवल विपरीत लिंग के जोड़े ही अच्छे माता-पिता साबित हो सकते हैं क्योंकि ऐसा करना समलैंगिक जोड़ों के खिलाफ भेदभाव होगा.

प्रधान न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा, “यहां तक कि इस संबंध में साहित्य की सीमित खोज से भी यह स्पष्ट हो जाता है… समलैंगिकता पूरी तरह से शहरी अवधारणा ही नहीं है और न ही यह उच्च वर्गों या विशेषाधिकार प्राप्त समुदायों तक सीमित है.” न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर अपना फैसला 11 मई को सुरक्षित रख लिया था.

केंद्र ने अपनी दलीलें पेश करते हुए न्यायालय से कहा था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर उसके द्वारा की गई कोई संवैधानिक घोषणा संभवत: ”सही कार्रवाई” नहीं हो क्योंकि अदालत इसके परिणाम का अनुमान लगाने, परिकल्पना करने, समझने और इससे निपटने में सक्षम नहीं होगी. न्यायालय ने इस मामले में 18 अप्रैल को दलीलें सुननी शुरू की थीं.

उच्चतम न्यायालय का 3:2 अनुपात में फैसला, समलैंगिक जोड़े बच्चे गोद नहीं ले सकते
उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से मंगलवार को गोद लिए जाने से जुड़े एक नियम को बरकरार रखा जिसमें अविवाहित और समलैंगिक जोड़ों के बच्चे गोद लेने पर रोक है. पीठ ने हालांकि विशेष विवाह कानून के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से सर्वसम्मति से इनकार कर दिया और कहा कि विवाह का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे संबंधों को वैध ठहराने के लिए कानून में बदलाव करना संसद का काम है.

इस संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल थे. पीठ ने चार अलग-अलग फैसले दिए और कुछ कानूनी मुद्दों पर न्यायाधीश एकमत थे जबकि कुछ मुद्दों पर उनकी राय अलग-अलग थी. न्यायालय ने 3:2 के बहुमत से समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने का अधिकार देने से इनकार कर दिया.

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति कौल ने अपने दो अलग-अलग और एकमत फैसलों में, केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) के दिशानिर्देशों में से एक को असंवैधानिक और अवैध माना. यह दिशानिर्देश अविवाहित और समलैंगिक जोड़ों को गोद लेने से रोकता है.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “कानून यह नहीं मान सकता कि सिर्फ विपरीत लिंग के जोड़े ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं. यह भेदभाव के समान होगा. इसलिए समलैंगिक जोड़ों के खिलाफ भेदभाव को लेकर गोद लेने के नियम संविधान का उल्लंघन हैं.” तीन न्यायाधीशों – न्यायमूर्ति भट्ट, न्यायमूर्ति कोहली और न्यायमूर्ति नरसिम्हा – प्रधान न्यायाधीश की राय से असहमत थे और उन्होंने कारा प्रावधानों को बरकरार रखा.

न्यायमूर्ति भट्ट ने कहा कि इसका यह मतलब नहीं है कि अविवाहित या विपरीत लिंग के जोड़े अच्छे माता-पिता नहीं हो सकते हैं तथा अभिभावक के रूप में राज्य को सभी क्षेत्रों का पता लगाना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि इसका लाभ ऐसे बच्चों तक पहुंचे जिन्हें स्थायी घरों की दरकार है.

आरएसएस ने समलैंगिक विवाहों पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने मंगलवार को समलैंगिक विवाहों पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया और कहा कि संसद इसके अनेक पहलुओं पर चर्चा कर सकती है और उचित निर्णय ले सकती है. आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने ‘एक्स’ पर लिखा, ”समलैंगिक विवाह पर उच्चतम न्यायालय का फैसला स्वागत योग्य है. हमारी लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली इससे संबंधित सभी मुद्दों पर गंभीरता से विचार कर सकती है और उचित निर्णय ले सकती है.”

सॉलिसिटर जनरल मेहता ने समलैंगिक विवाह मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय के उस फैसले का स्वागत किया, जिसमें विशेष विवाह कानून के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया गया है. इस मामले में सॉलिसिटर जनरल मेहता केंद्र के प्रमुख वकील थे. उन्होंने उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया था कि इस मामले पर निर्णय संसद पर छोड़ दिया जाए क्योंकि यह विधायिका के दायरे में आता है. उन्होंने कहा, “मैं न्यायालय के फैसले का दिल से स्वागत करता हूं. मुझे प्रसन्नता है कि मेरी दलील स्वीकार कर ली गई है.”

मेहता ने एक बयान में कहा, “सभी चार फैसले हमारे देश के न्यायशास्त्र और बौद्धिक कवायद को अगले स्तर पर ले गए हैं. दुनिया में बहुत कम अदालतें हैं जहां इस स्तर की बौद्धिक और विद्वतापूर्ण न्यायिक कवायद की उम्मीद की जा सकती है. यह फैसला विभिन्न न्यायक्षेत्रों में पढ़ा जाएगा.” उन्होंने कहा, ”यह शक्तियों के विभाजन के प्रश्न पर एक अहम न्यायशास्त्रीय घटनाक्रम है तथा संसद, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के कामकाज के संबंध में व्यापक और स्पष्ट अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, जो संविधान के अनुसार एक दूसरे के पूरक के रूप में काम करते हैं.

इन 34 देशों में वैध है समलैंगिक विवाह

उच्चतम न्यायालय की पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करने से इंकार कर दिया, हालांकि, दुनिया में 34 ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक विवाह या तो वैध हैं या उन्हें कानूनी मान्यता मिल चुकी है .

मौजूदा वक्त में जिन 34 देशों में समलैंगिक विवाह वैध है या उन्हें कानूनी मान्यता मिली है, उनमें से कुछ प्रमुख देश इस प्रकार हैं- अर्जेंटीना : समलैंगिक विवाह को 2010 में वैध घोषित किया गया .
ऑस्ट्रेलिया : समलैंगिक विवाह को 2017 में वैध करार दिया गया .
जर्मनी : समलैंगिक विवाह को 2017 में वैध करार दिया गया .
मेक्सिको : मेक्सिको के संघीय जिले मेक्सिको शहर में समलैंगिक विवाह को 2010 में वैध करार दिया गया . हालांकि, अन्य राज्यों में अलग-अलग तारीखों पर इसे व्यवस्था को वैध घोषित करने के लिये कानून बनाये गये .
इसी तरह ब्रिटेन और स्कॉटलैंड में 2014 में जबकि उत्तरी आयरलैंड में 2020 में समलैंगिक विवाह को वैध घोषित किया गया .
अमेरिका में नौ जुलाई, 2015 से समलैंगिक विवाह करने वाले जोड़ों को पूरे देश में सभी सुविधायें मिलनी शुरू हो गयी जो विपरीत-लिंग वाले युगल को मिलते हैं.
ऐसे 35 देश हैं जहां समलैंगिक विवाह को विवाह के अलावा अन्य कानूनी मान्यता मिली है, जैसे नागरिक संघों का गठन या पंजीकरण आदि .
एक नागरिक संघ (जिसे नागरिक भागीदारी के रूप में भी जाना जाता है) विवाह के समान एक कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त व्यवस्था है, जो मुख्य रूप से समान-लिंग वाले जोड़ों के लिए कानूनी मान्यता प्रदान करने के साधन के रूप में बनाई गई है. नागरिक संघ विवाह के कुछ या सभी अधिकार प्रदान करते हैं .
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाले कुछ देश इस प्रकार हैं- डेनमार्क: यह 1989 में समलैंगिक जोड़ों के लिए नागरिक संघों को वैध बनाने वाला पहला देश था.
ब्राज.ील: नागरिक संघ पहली बार 2002 में विपरीत लिंग वाले जोड़ों के लिए बनाए गए थे.
अंडोरा: समलैंगिक जोड़ों के लिए कानूनी मान्यता 2014 में प्रदान की गई थी.
चिली: 2015 में समलैंगिक जोड़ों के लिए कानूनी मान्यता प्रदान की गई.
एस्टोनिया: समलैंगिक जोड़ों के लिए कानूनी मान्यता 2016 में प्रदान की गई थी.
जापान: 2021 से पहले कुछ नगर पालिकाओं में समलैंगिक जोड़ों के लिए कानूनी मान्यता प्रदान की गई थी.
स्लोवेनिया : समलैंगिक जोड़ों के लिए कानूनी मान्यता 2017 में प्रदान की गई .

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