ईवीएम मशीनों पर संदेह करने वालों से न्यायालय ने कहा : हर चीज पर शक नहीं किया जा सकता

नयी दिल्ली. मतदाताओं की चुनावी प्रणाली में संतुष्टि और भरोसा के महत्व को रेखांकित करते हुए उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की प्रभाविता पर संदेह नहीं करें और अगर निर्वाचन आयोग अच्छा काम करता है तो उसकी सराहना करें. याचिकाकर्ताओं ने मतपत्रों के जरिए मतदान की व्यवस्था की ओर वापस लौटने का निर्देश देने का अनुरोध किया था.

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने ईवीएम के जरिए डाले गए मतों का वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) के साथ पूर्ण मिलान की मांग वाली विभिन्न याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. पीठ ने कहा कि हर चीज पर संदेह करना एक समस्या है. वीवीपैट एक स्वतंत्र वोट सत्यापन प्रणाली है जिसके तहत मतदाता देख सकते हैं कि उनका वोट सही तरीके से डाला गया है या नहीं.

पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब याचिकाकर्ता गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने वीवीपैट मशीनों पर पारदर्शी कांच को अपारदर्शी कांच से बदलने के आयोग के 2017 के फैसले को उलटने की मांग की है, जिसके जरिए कोई मतदाता केवल सात सेकंड के लिए रोशनी चालू होने पर ही पर्ची देख सकता है.

भूषण ने कहा, “मैं समझता हूं कि चुनाव एकदम नजदीक है. कम से कम, ईवीएम में बटन दबाने के बाद सात सेकंड तक जलने वाले बल्ब को लगातार जलने देना चाहिए.” पीठ ने ईवीएम की कार्यप्रणाली को समझने के लिए वरिष्ठ उप निर्वाचन आयुक्त नितेश कुमार व्यास के साथ करीब एक घंटे बातचीत की. पीठ ने भूषण से कहा कि मतदाताओं की संतुष्टि और भरोसा चुनावी प्रक्रिया का मूल हैं.

पीठ ने कहा, “श्रीमान् भूषण, अब आप काफी आगे जा रहे हैं. यह बहुत ज्यादा है. चाहे वीवीपैट मशीन पर पारदर्शी या अपारदर्शी कांच हो या बल्ब का जलना हो, मतदाता की संतुष्टि और भरोसा मायने रखता है….” उसने कहा, “हर चीज पर शक नहीं किया जा सकता. आप (भूषण) हर चीज की आलोचना नहीं कर सकते. अगर उन्होंने (निर्वाचन आयोग) कुछ अच्छा काम किया है, तो आपको इसकी सराहना करनी होगी. आपको हर चीज की आलोचना करने की जरूरत नहीं है.” भूषण ने कहा कि वह चुनाव आयोग पर कोई आक्षेप नहीं लगा रहे हैं लेकिन सुधार की संभावना मौजूद है.

अदालत कक्ष में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत के एक अधिकारी के रूप में वह दलील दे रहे हैं कि चुनाव से ठीक पहले ईवीएम पर संदेह करने के याचिकाकर्ताओं के ऐसे प्रयासों का मतदान प्रतिशत पर प्रभाव पड़ता है. मेहता ने कहा, “ऐसे प्रयासों से मतदान प्रतिशत प्रभावित होता है. लोग सोच सकते हैं कि कुछ गलत है. इस अदालत द्वारा उन्हें (याचिकाकर्ताओं को) फटकार लगाने के बावजूद मतदाताओं के लोकतांत्रिक विकल्प का मजाक बनाया जा रहा है….” पीठ ने उनसे इस बात को यहीं छोड़ने को कहा और स्पष्ट किया कि एडीआर की याचिका पिछले साल दायर की गई थी और यह अदालत की गलती थी कि इस पर सुनवाई नहीं हो सकी. लगभग दिन भर चली सुनवाई के दौरान पीठ ने निर्वाचन आयोग के अधिकारी से कई सवाल पूछे.

ईवीएम की जगह कागजी मतपत्रों के इस्तेमाल संबंधी याचिकाकर्ताओं के अनुरोध पर पीठ ने कहा, ”कागजी मतपत्रों में ढेरों कमियां हैं और हम इस बारे में सोचना नहीं चाहते हैं. इसके बजाय, हम भविष्य में राजनीतिक दलों के लिए बारकोड का उपयोग करने के बारे में सोच रहे हैं लेकिन यह बहुत बड़ा काम होगा.” आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने बताया कि ईवीएम किस प्रकार काम करती है.

उच्चतम न्यायालय ने 16 अप्रैल को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की आलोचना और मतपत्रों के जरिए चुनाव की लौटने की मांग की निंदा करते हुए कहा था कि भारत में चुनावी प्रक्रिया एक “बहुत बड़ा काम” है और “व्यवस्था को खराब करने” का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए.

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