इमरान और उनकी पत्नी के खिलाफ फैसला देकर नारीवादियों-वकीलों की आलोचनाओं में घिरे न्यायाधीश

इस्लामाबाद. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पत्नी के ‘गैर इस्लामी’ निकाह के मामले में विवादास्पद फैसले ने पाकिस्तान में तूफान पैदा कर दिया है. इस मुद्दे पर कानून के स्थापित सिद्धांत का उल्लंघन करने और मासिक धर्म जैसे निजी मामलों को उजागर करके एक महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने को लेकर नारीवादियों और महिला वकीलों ने न्यायाधीश की आलोचना की है.

वरिष्ठ दीवानी न्यायाधीश कुरतुल्ला ने बुशरा बीबी के पूर्व पति खावर मनेका द्वारा दायर मामले में ‘इद्दत’ (प्रतीक्षा अवधि) के दौरान निकाह करने के लिए खान और उनकी पत्नी बुशरा बीबी को सात साल की जेल की सजा सुनाई और प्रत्येक पर 5,00,000 रुपये का जुर्माना लगाया. खावर मनेका ने पिछले साल नवंबर में यह मामला दायर किया था.

खान और बुशरा बीबी ने एक जनवरी, 2018 को निकाह किया था और शादी के लगभग छह साल बाद मनेका ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि बीबी ने ‘इद्दत’ पूरी किए बिना इमरान खान से शादी की और निकाह करने से पहले भी दोनों व्यभिचारपूर्ण रिश्ते में लिप्त थे.

सुरक्षा कारणों से कार्यवाही रावलपिंडी की अडियाला जेल में की गई. पूर्व क्रिकेटर से नेता बने इमरान (71 वर्ष) को तोशाखना भ्रष्टाचार मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद पिछले साल पांच अगस्त को गिरफ्तार कर लिया गया था और उन्हें जेल में रखा गया है. उनचास वर्षीय बुशरा बीबी को दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें इमरान खान के बानीगाला निवास में कैद कर दिया गया है. इस निर्णय की आलोचना की जा रही है, क्योंकि इसे अदालत द्वारा निजी मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देखा गया.

वकील और राजनीतिक टिप्पणीकार रीमा उमर ने कहा कि यह निर्णय शर्मनाक है और न्याय तथा मानवाधिकारों का मजाक है.
महिला वकील और नारीवादी निघत दाद ने अपनी टिप्पणियों में फैसले को ‘न्याय का भयावह पतन’ बताया और कहा कि यह सार्वजनिक अपमान की हद तक गिरकर महिलाओं के निजी जीवन में वीभत्स घुसपैठ का प्रतीक है. एक अन्य महिला वकील और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी की पूर्व नेता मालेका बुखारी ने कहा कि यह पूरे पाकिस्तान में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों के लिए एक ‘काला और प्रतिगामी दिन’ था.

उन्होंने कहा कि एक पूर्व प्रथम महिला, जिसने कानूनी तौर पर अपने पूर्व पति को तलाक दे दिया था और दोबारा शादी की थी, को एक कमजोर मामले में दोषी ठहराया गया है. महिला वकील रिदा ताहिर के अनुसार, फैसले ने लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जिया अली बाजवा के फैसले का उल्लंघन किया, जिन्होंने कहा था कि इद्दत की अवधि का पालन किए बिना पुर्निववाह को ‘शून्य विवाह’ नहीं माना जा सकता है.

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