उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर एलजी को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री के बयान भ्रामक
नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय के आदेशों और प्रशासक के रूप में शक्तियों के संबंध में उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बयान ‘‘भ्रामक और एक खास एजेंडे के तहत मामले को मोड़ने का प्रयास हैं.’’ राजनिवास के एक अधिकारी ने शुक्रवार को यह बात कही.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को उपराज्यपाल के साथ बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उपराज्यपाल सक्सेना के कई आदेश उच्चतम न्यायालय के 2018 के फैसले के आलोक में अवैध हैं. केजरीवाल ने आरोप लगाया कि उपराज्यपाल के साथ मुलाकात के दौरान उन्होंने उच्चतम न्यायालय के फैसलों और संविधान के विभिन्न प्रावधानों का हवाला दिया था, लेकिन, उपराज्यपाल ने कहा कि उन्हें ‘‘प्रशासक’’ के रूप में संर्दिभत किया गया है और उन्हें सर्वोच्च अधिकार प्राप्त हैं.
राजनिवास के अधिकारी ने कहा, ‘‘बैठक के बाद प्रेसवार्ता में उच्चतम न्यायालय के आदेश, प्रशासक के रूप में शक्तियां, सभी विषयों पर सर्वोच्चता और अधिकारियों को निर्देश देने संबंधी उपराज्यपाल को लेकर दिए गए मुख्यमंत्री के सभी बयान भ्रामक, स्पष्ट रूप से झूठ और मनगढ़ंत हैं.’’ अधिकारी ने कहा कि मुख्यमंत्री को संविधान के प्रावधानों, संसद के अधिनियमों और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुसार कार्य करने की सलाह दी गई. उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री से हर मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं करने के लिए भी कहा.
उच्चतम न्यायालय के 2018 के फैसले के आलोक में उपराज्यपाल के कई फैसले अवैध : केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को कहा कि उपराज्यपाल वी के सक्सेना के कई आदेश उच्चतम न्यायालय के 2018 के फैसले के आलोक में अवैध हैं. केजरीवाल उपराज्यपाल के साथ बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे.
केजरीवाल ने कहा कि वह उपराज्यपाल के साथ अपनी बैठक में संविधान, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन कानून और मोटर वाहन कानून की प्रतियां अपने साथ ले गए थे.
उन्होंने कहा, ‘‘दिल्ली के उपराज्यपाल सरकार के काम में दखल दे रहे हैं, जिससे दिल्ली के लोगों को असुविधा हो रही है. मेरा इरादा उन मुद्दों को सुलझाना था, इसलिए मैं संविधान, मोटर वाहन अधिनियम, स्कूल शिक्षा अधिनियम, उच्चतम न्यायालय के फैसले की प्रतियां साथ ले गया था.’’ केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में दो प्रकार के विषय हैं- जिनमें से एक “आरक्षित विषय” है और इसमें पुलिस, भूमि और लोक व्यवस्था शामिल है. उन्होंने कहा कि इसमें उपराज्यपाल केवल निर्णय ले सकते हैं. उन्होंने कहा कि दूसरा विषय ‘‘हस्तांतरित विषय’’ है.
उन्होंने कहा, “अन्य सभी विषय दिल्ली सरकार के तहत आते हैं. चार जुलाई को, उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने एक फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि उपराज्यपाल को ‘‘हस्तांतरित विषयों’’ के मामले में कोई स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति नहीं दी गई है.” उन्होंने यह भी कहा, “निर्णय लेने के लिए उपराज्यपाल के पास कोई निहित स्वतंत्र प्राधिकार नहीं है. कुछ मामलों में, वह न्यायिक प्राधिकार के रूप में कार्य कर सकते हैं.”
केजरीवाल ने कहा कि इसका मतलब यह है कि उपराज्यपाल द्वारा पारित विभिन्न आदेश “अवैध और असंवैधानिक” हैं. उन्होंने इस क्रम में ‘डेल्ही डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन’ के उपाध्यक्ष जास्मीन शाह के कार्यालय को सील करना और विज्ञापन खर्च के लिए 164 करोड़ रुपये की वसूली की मांग करने वाला नोटिस जारी किए जाने का जिक्र किया.
मुख्यमंत्री ने कहा, “हालांकि, उन्होंने कहा कि उन्हें ‘प्रशासक’ के रूप में संर्दिभत किया गया है और उन्हें सर्वोच्च शक्ति मिली हुई है.” केजरीवाल ने सक्सेना से राजनीति को अलग रखने का आग्रह किया और कहा कि वह उपराज्यपाल के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं.