‘गूंगा पहलवान’ ने सर्वोच्च खेल सम्मान के लिए फिर उठाई आवाज

नयी दिल्ली. ‘गूंगा पहलवान’ के नाम से मशहूर वीरेंदर सिंह ने भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान “मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार” पर एक बार फिर अपना दावा ठोका है. उन्होंने इस बात पर हैरत जताई है कि बोल और सुन नहीं पाने वाले खिलाड़ियों के ओलंपिक खेलों यानी डेफलंपिक्स में देश के लिए पांच पदक समेत अलग-अलग प्रतिष्ठित स्पर्धाएं जीतने के बावजूद उन्हें अब तक इस पुरस्कार के काबिल नहीं समझा गया है.

सिंह ने ‘‘पीटीआई-भाषा’’ के साथ साक्षात्कार के दौरान इशारों की जुबान में कहा,‘‘मैं गुजरे बरसों के दौरान डेफलंपिक्स में भारत के लिए पांच पदक जीत चुका हूं जिनमें तीन स्वर्ण पदक शामिल हैं. मैंने मूक-बधिर पहलवानों की विश्व चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण पदक समेत तीन पदक जीते हैं. लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मुझे अब तक खेल रत्न पुरस्कार क्यों नहीं दिया गया है?’’

दिल्ली में वर्ष 1886 के दौरान स्थापित अखाड़े ‘‘बाल व्यायामशाला’’ में लड़कपन से कुश्ती के दांव-पेंच सीखने वाले 36 वर्षीय पहलवान ने बताया कि इस खेल में उनका सफर कतई आसान नहीं रहा है और उन्होंने तमाम सामाजिक भेदभावों को पीछे छोड़कर अपना मुकाम बनाया है.

सिंह ने बताया कि उन्होंने कुश्ती में अपने करियर की शुरुआत सामान्य यानी बोल और सुन सकने वाले खिलाड़ियों के साथ की थी, लेकिन एक बार सीटी की आवाज नहीं सुन पाने के कारण उन्हें चयन ट्रायल से बाहर कर दिया गया और इसके बाद से वह मूक-बधिर पहलवानों के साथ कुश्ती खेलने लगे. कुश्ती में उल्लेखनीय योगदान के लिए सिंह को सरकार द्वारा गुजरे बरसों में ‘‘अर्जुन अवॉर्ड’’ और ‘‘पद्मश्री’’ से सम्मानित किया जा चुका है और अब उनकी निगाहें “मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार” पर टिकी हैं.

उनके सहयोगी रामबीर सिंह ने बताया कि “गूंगा पहलवान” को खेल रत्न पुरस्कार देने की मांग वर्ष 2017 से की जा रही है और इसके लिए वह सोशल मीडिया पर मुहिम भी छेड़ चुके हैं. रामबीर सिंह ने कहा,‘‘अगर वीरेंदर सिंह को खेल रत्न पुरस्कार दिया जाता है तो न केवल उनका हौसला बढ़ेगा, बल्कि उन जैसे हजारों मूक-बधिर खिलाड़ियों के बीच सकारात्मक संदेश भी जाएगा.’’ गौरतलब है कि मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार पिछले चार वर्षों की अवधि में खेल के क्षेत्र में शानदार और अत्यंत उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए दिया जाता है.

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