ज्ञानवापी मामला : उच्चतम न्यायालय ने तहखाने में पूजा करने पर रोक लगाने से किया इनकार

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में पूजा करने पर रोक लगाने से सोमवार को इनकार कर दिया. हालांकि, शीर्ष अदालत ने मस्जिद परिसर में हिंदू और मुस्लिम पक्षों द्वारा किए जाने वाले धार्मिक रस्मों को लेकर ”यथास्थिति” बनाए रखने का आदेश दिया.

शीर्ष अदालत ज्ञानवापी मसाजिद इंतजामिया कमेटी की नयी याचिका पर सुनवाई कर रही है. याचिका में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा करने की अनुमति देने संबंधी अधीनस्थ अदालत के फैसले को बरकरार रखा गया था. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मुस्लिम और हिंदू, दोनों पक्ष मस्जिद परिसर के अंदर अपने-अपने धार्मिक अनुष्ठान ‘बिना किसी बाधा’ के कर रहे हैं और इसलिए, फिलहाल यथास्थिति ही न्याय के उद्देश्य को पूरा करेगी.

प्रधान न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पुजारी शैलेंद्र कुमार पाठक व्यास से भी मसाजिद कमेटी की याचिका पर 30 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने को कहा है. न्यायालय ने कहा, ”इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि 17 जनवरी, 2024 और 31 जनवरी, 2024 के आदेशों के बाद मुस्लिम समुदाय द्वारा नमाज निर्बाध रूप से अदा की जा रही है जबकि हिंदू पुजारी द्वारा पूजा-पाठ तहखाना तक सीमित है, इसलिए यथास्थिति बनाए रखना उपयुक्त होगा ताकि दोनों समुदाय उपरोक्त शर्तों के अनुसार अपनी-अपनी पद्धति से उपासना कर सकें.” शीर्ष अदालत की पीठ में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं.

पीठ ने कहा, ”हिंदुओं द्वारा धार्मिक अनुष्ठान 31 जनवरी, 2024 के आदेश में निहित निर्देशों के अनुसार होंगे… उपरोक्त शर्तों से प्राप्त यथास्थिति में इस अदालत की पूर्व मंजूरी और अनुमति प्राप्त किए बिना कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.” शीर्ष अदालत ने ‘गूगल अर्थ’ के जरिये ढांचे की तस्वीरें देखने के बाद कहा कि तहखाने में प्रवेश दक्षिण की ओर से है जबकि नमाज अदा करने के लिए मस्जिद में प्रवेश करने के वास्ते उत्तर की तरफ से सीढि.यां हैं.

सुनवाई शुरू होते ही अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने दीवानी अदालत के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया और कहा कि मस्जिद परिसर के भीतर पूजा करने की अनुमति दी जा रही है. अहमदी ने कहा कि इससे केवल तनाव बढ़ेगा. उन्होंने दलील दी, ”इतिहास ने हमें कुछ सबक भी सिखाए हैं जहां आश्वासनों के बावजूद हिंसा हुई है. यह एक बेहद खराब आदेश है. समुदाय शांतिपूर्वक रह रहे हैं. अब इसे पाने की जिद क्यों? 30 वर्षों से स्थिति बहुत सामान्य है.” अहमदी ने आरोप लगाया कि हिंदू पक्ष ने विभिन्न मुद्दों पर राहत के लिए कई अर्जी दाखिल किए हैं और इस बात की काफी आशंका है कि धीरे-धीरे मुस्लिम पक्ष पूरी मस्जिद गंवा देगा.

अहमदी ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का संदर्भ देते हुए कहा, ”हम आपके भरोसे हैं और हम जानते हैं कि अयोध्या में क्या हुआ तथा अंतरिम आदेशों के बावजूद बाबरी मस्जिद की हिफाजत नहीं की जा सकी. इतिहास ने हमें यही सिखाया है.” शीर्ष अदालत में हिंदू पक्षों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि इस समय शीर्ष अदालत द्वारा किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अधीनस्थ अदालत और उच्च न्यायालय के आदेशों में विस्तृत कारण हैं. उच्च न्यायालय ने 26 फरवरी को कमेटी की उस अर्जी को खारिज कर दिया था जिसमें 31 जनवरी को जिला अदालत द्वारा तहखाने में हिंदू पक्ष को पूजा-पाठ करने की अनुमति दी गई थी.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मसाजिद इंतजामिया कमेटी की याचिका को खारिज करते हुए टिप्पणी की थी कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 1993 में ‘व्यास तहखाने’ में पूजा रोकने का फैसला किया. अदालत ने कहा कि ज्ञानवापी के दक्षिणी तहखाने में पूजा पर रोक का फैसला ‘अवैध’ था. उच्च न्यायालय ने कहा कि काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित मस्जिद के ‘व्यास तहखाने’ में पूजा-पाठ जारी रहेगा.
अदालत के आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा किए गए एक सर्वे में यह बताया गया कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल के दौरान एक हिंदू मंदिर के अवशेषों पर किया गया था. जिला अदालत ने 31 जनवरी को फैसला सुनाया कि हिंदू पुजारी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में विग्रहों के समक्ष पूजा अर्चना कर सकता है.

Related Articles

Back to top button