चीन के साथ आपसी संवेदनशीलता, सम्मान, परस्पर हित पर बने रिश्ते के लिए भारत प्रयासरत: जयशंकर

UNSC में सुधार की जरूरत को हमेशा नकारा नहीं जा सकता : जयशंकर

वाशिंगटन. सामरिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य उपस्थिति के बीच भारत और अमेरिका के हिंद-प्रशांत की बेहतरी के लिए एक साझा दृष्टिकोण का जिक्र करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत, चीन के साथ ऐसे संबंध बनाने का प्रयास करता है जो आपसी संवेदनशीलता, सम्मान एवं परस्पर हित पर आधारित हों. चीन का सामरिक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कई देशों के साथ क्षेत्रीय विवाद है और वह विशेष रूप से विवादित दक्षिण चीन सागर में अमेरिका की सक्रिय नीति का विरोध करता रहा है.

जयशंकर ने बुधवार को यहां भारतीय पत्रकारों के एक समूह से कहा, ‘‘हम चीन के साथ लगातार रिश्तों में सुधार के लिए प्रयासरत हैं. ऐसा रिश्ता जो आपसी संवेदनशीलता, सम्मान और आपसी हित पर बना हो.’’ चीन से निपटने को लेकर भारत और अमेरिका की योजना पर किए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दोनों देश हिंद-प्रशांत की बेहतरी व उसे मजबूत बनाने के साझा उद्देश्य रखते हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘जहां भारतीय और अमेरिकी हित की बात आती है, तो मुझे लगता है, यह हिंद-प्रशांत की स्थिरता, सुरक्षा प्रगति, समृद्धि एवं विकास पर आधारित है. यहां तक कि यूक्रेन के मामले में भी क्योंकि यह युद्ध लंबे समय से लड़ा जा रहा है और वास्तव में यह लोगों के दैनिक जीवन और दुनियाभर में अशांति उत्पन्न कर सकता है.’’ जयशंकर ने कहा कि दुनिया बदल गई है और हर कोई इस बात की सराहना करता है कि कोई भी देश खुद अकेले अंतरराष्ट्रीय शांति और आम लोगों की भलाई की जिम्मेदारी या बोझ नहीं उठा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे लिए, एक वैश्वीकृत दुनिया में, देश आज जागरूक हैं कि दुनिया एकध्रुवीय नहीं है, यह द्विध्रुवी नहीं है. सभी देशों को एक साथ मिलकर काम करने की जरूरत है, जहां सामान्य हित दांव पर हैं.’’ गौरतलब है कि चीन लगभग सभी विवादित दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है, हालांकि ताइवान, फिलीपीन, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम सभी इसके कुछ हिस्सों पर दावा करते हैं. बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप और सैन्य प्रतिष्ठान बनाए हैं. बीजिंग पूर्वी चीन सागर को लेकर जापान के साथ समुद्री विवाद में भी शामिल है.

जयशंकर ने कहा, ‘‘मैं अंतरराष्ट्रीय मामलों को परिभाषित करने में विश्वास करता हूं और सकारात्मक शब्दों में, आमतौर पर कूटनीति इसी तरह की जाती है. इसलिए, मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप इसे वास्तव में, हिंद-प्रशांत क्षेत्र की बेहतरी या मजबूती के रूप में हमारे बीच एक साझा उद्देश्य के रूप में सोचें.’’ भाषा

भारत विश्व में स्थिरता लाने में अहम भूमिका निभा सकता है: जयशंकर

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत ऐसे समय में स्थिरता लाने व एक सेतु की भूमिका निभा सकता है जब दुनिया में आशा की कोई किरण नजर नहीं आ रही और अंतरराष्ट्रीय समुदाय चिंतित है. उन्होंने कहा कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था के जोखिम को कम करने में और राजनीतिक दृष्टि से किसी तरह दुनिया का ध्रुवीकरण रोकने में मदद कर सकता है.

जयशंकर ने भारतीय पत्रकारों के एक समूह से बुधवार को कहा, ‘‘दुनिया में वास्तव में आशा की कोई किरण नहीं दिख रही. मुझे लगता है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय बेहद चिंतित है.’’ मंत्री ने कहा कि भारत के लिए यह अवसरों से कहीं अधिक हैं, क्योंकि यह बहुत कठिन स्थिति है.

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि इस दिशा में भारत अपना योगदान दे सकता है. मुझे लगता है कि आज हम स्थिरता लाने में एक भूमिका निभा सकते हैं. हम एक पुल की तरह काम सकते हैं. हम कूटनीतिक रूप से एक भूमिका निभा सकते हैं. हमें वास्तव में आर्थिक दृष्टि से देखना होगा कि हम वैश्विक अर्थव्यवस्था के जोखिम को कम करने में कैसे योगदान दे सकते हैं? और राजनीतिक दृष्टि से हम किसी तरह से दुनिया का ध्रुवीकरण रोकने में कैसे मदद कर सकते हैं?’’ जयशंकर ने कहा कि उन्हें लगता है कि बहुत से अन्य देशों खासकर ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों को भारत से बहुत उम्मीदें हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘हम जो कर सकते हैं करेंगे और हम दुनिया के हाशिए पर मौजूद सभी देशों से भी संपर्क करेंगे.’’ संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के वार्षिक सत्र में भाग लेने के लिए न्यूयॉर्क की अपनी हाल में संपन्न यात्रा के दौरान जयशंकर ने दुनिया भर के विश्व नेताओं और उनके समकक्षों के साथ लगभग 100 बैठकें कीं.

उन्होंने कहा कि इतनी सारी बैठकें इसलिए की गईं क्योंकि कई लोगों ने मिलने की इच्छा जाहिर की थी. कई देश बातचीत करना चाहते थे. उन्होंने कहा, ‘‘कई देश हमसे बात करना चाहते थे क्योंकि ऐसी धारणा है कि हम प्रमुख ताकतों के साथ संपर्क में हैं, हम उन्हें प्रभावित कर सकते हैं, हम किसी विचार को आकार दे सकते हैं, हम योगदान दे सकते हैं….’’

यूएनएससी में सुधार की जरूरत को हमेशा नकारा नहीं जा सकता
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में सुधार की आवश्यकता को हमेशा नकारा नहीं जा सकता है. यूएनएससी में वर्तमान में पांच स्थायी सदस्य चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका हैं. भारत विश्व संस्था के 10 अस्थायी सदस्यों में से एक है. केवल स्थायी सदस्यों के पास ही किसी भी मूल प्रस्ताव को ‘वीटो’ करने का अधिकार है. भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद में लंबित सुधारों पर कार्रवाई तेज करने को लेकर जोर देता रहा है. भारत का कहना है कि वह स्थायी सदस्य बनने का हकदार है.

जयशंकर ने बुधवार को यहां भारतीय पत्रकारों के एक समूह से सुरक्षा परिषद में सुधार को लेकर अमेरिका की गंभीरता के बारे पूछे गए सवाल के जवाब में कहा, ‘‘हमने कभी नहीं सोचा था कि यह एक आसान प्रक्रिया होगी, लेकिन हमारा मानना है कि सुधार की आवश्यकता को हमेशा नकारा नहीं जा सकता है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि राष्ट्रपति (जो) बाइडन ने जा रुख अख्तियार किया है वह सुरक्षा परिषद सहित संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए अमेरिकी समर्थन को स्पष्ट रूप से रेखांकित करता है….’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह हम सभी पर और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों पर निर्भर करता है कि हम इसे कहां ले जाते हैं.’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘यह किसी एक देश की जिम्मेदारी नहीं है, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो. मुझे लगता है कि यह एक सामूहिक प्रयास है जिसे संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों का आगे बढ़ाना है.’’ यह रेखांकित करते हुए कि भारत अधिक जिम्मेदारियां लेने के लिए तैयार है, जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बहुत जरूरी सुधारों के लिए बातचीत प्रक्रियात्मक रणनीति से अवरुद्ध नहीं होनी चाहिए और इसके निंदक इस प्रक्रिया को ‘‘हमेशा के लिए रोक कर ’’ नहीं रख सकते.

भारत वर्तमान में 15 सदस्यीय संयुक्त सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है और इस साल दिसंबर में उसका दो साल का कार्यकाल पूरा होगा. उन्होंने कहा, ‘‘हमारे कार्यकाल में हमने परिषद के सामने आने वाले कुछ गंभीर लेकिन विभाजनकारी मुद्दों पर एक सेतु के रूप में काम किया है. हमने समुद्री सुरक्षा, शांति स्थापना और आतंकवाद का मुकाबला करने जैसी ंिचताओं पर भी ध्यान केंद्रित किया है.’’ उन्होंने यह भी कहा कि भारत का मानना है कि बहुध्रुवीकरण, पुनर्संतुलन, निष्पक्ष वैश्वीकरण और सुधार के साथ बहुपक्षवाद को स्थगित नहीं रखा जा सकता है.

समरकंद में यूक्रेन को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी से भारत के रुख में बदलाव नहीं
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि समरकंद में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ हुई बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन में जारी युद्ध को लेकर जो टिप्पणी की उसे इस मुद्दे पर भारत के रुख में परिवर्तन के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. जयशंकर ने कहा कि भारत लगातार यह कहता रहा है कि रूस और यूक्रेन के बीच जल्द से जल्द युद्ध समाप्त होना चाहिए.

यूक्रेन में रूस के कब्जे वाले क्षेत्रों में जनमत संग्रह पर पूरे गए एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री ने यहां बुधवार को भारतीय पत्रकारों के एक समूह से कहा कि भारत इस मुद्दे पर न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र में अपना विचार रखेगा. उन्होंने कहा, ‘‘यह मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में विचार के लिए उठेगा. इसलिए मैं आग्रह करता हूं कि आप इंतजार करें और देखिये कि वहां हमारे राजदूत क्या कहते हैं.’’ प्रधानमंत्री मोदी और रूस के राष्ट्रपति पुतिन के बीच समरकंद में 16 सितंबर को हुई बैठक के बारे में जयशंकर ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद दोनों नेताओं के बीच प्रत्यक्ष रूप से यह पहली बातचीत थी.

उन्होंने कहा, ‘‘स्वाभाविक सी बात है कि आमने सामने की बैठक के बाद प्रेस को संबोधित किया गया था और हम उस मौके का वीडियो देख सकते हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है कि इसके बारे में हमने पहले कुछ नहीं कहा. हम इस युद्ध के बारे में अपनी चिंता व्यक्त करते रहे हैं. हम जल्द से जल्द इस लड़ाई को समाप्त करने और वार्ता तथा कूटनीतिक समाधान की जरूरत पर बल देते रहे हैं.’’ जयशंकर ने कहा, ‘‘यह बिलकुल स्वाभाविक था कि ऐसे मौके पर भारत के प्रधानमंत्री और रूस के राष्ट्रपति की भेंट होगी तो इन विषयों पर चर्चा होनी थी और प्रधानमंत्री ने ऐसा किया.’’ जयशंकर ने कहा कि समरकंद में पुतिन से हुई बातचीत से यूक्रेन पर भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है.

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