इसरो ने छह जनवरी को ‘आदित्य-एल1 अंतरिक्ष यान’ को अंतिम गंतव्य कक्षा में पहुंचाने की तैयारी की

एक जनवरी को प्रक्षेपित पीएसएलवी एक्सपोसैट बेहतर काम कर रहा : इसरो प्रमुख

बेंगलुरु/हैदराबाद. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सूर्य का अध्ययन करने के लिए देश के पहले अंतरिक्ष-आधारित मिशन ‘आदित्य एल1’ यान को शनिवार को पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर उसकी अंतिम गंतव्य कक्षा में स्थापित करने की तैयारी कर ली है.

इसरो अधिकारियों के अनुसार, अंतरिक्ष यान पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के ‘लैग्रेंज प्वाइंट 1 (एल 1) के आसपास एक ‘हेलो’ कक्षा में पहुंचेगा. ‘एल1 प्वाइंट’ पृथ्वी और सूर्य के बीच की कुल दूरी का लगभग एक प्रतिशत है. ‘लैग्रेंज प्वाइंट’ वह क्षेत्र है जहां पृथ्वी और सूर्य के बीच गुरुत्वाकर्षण नि्क्रिरय हो जाएगा. ‘हेलो’ कक्षा, एल 1 , एल 2 या एल 3 ‘लैग्रेंज प्वाइंट’ में से एक के पास एक आवधिक, त्रि-आयामी कक्षा है.

उन्होंने कहा कि ‘एल1 प्वाइंट’ के चारों ओर ‘हेलो’ कक्षा में उपग्रह से सूर्य को लगातार देखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव का अवलोकन करने में अधिक लाभ मिलेगा. इसरो के एक अधिकारी ने शुक्रवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ”शनिवार शाम लगभग चार बजे आदित्य-एल1 को एल1 के चारों ओर एक ‘हेलो’ कक्षा में पहुंचा देगी. यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो संभावना है कि यह शायद सूर्य की ओर अपनी यात्रा जारी रखेगा.” इसरो के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी-सी57) ने दो सितंबर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) के दूसरे प्रक्षेपण केंद्र से आदित्य-एल1 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था.

उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष यान विभिन्न चरणों से होकर गुजरा और पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से बचकर, सूर्य-पृथ्वी ‘लैग्रेंज प्वाइंट 1’ (एल 1) की ओर बढ. गया. ‘आदित्य एल1’ को सूर्य परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल1’ (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा का वास्तविक अवलोकन करने के लिए डिजाइन किया गया है. अधिकारियों ने बताया कि इस मिशन का मुख्य उद्देश्य सौर वातावरण में गतिशीलता, सूर्य के परिमंडल की गर्मी, सूर्य की सतह पर सौर भूकंप या ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (सीएमई), सूर्य के धधकने संबंधी गतिविधियों और उनकी विशेषताओं तथा पृथ्वी के करीब अंतरिक्ष में मौसम संबंधी समस्याओं को समझना है.

एक जनवरी को प्रक्षेपित पीएसएलवी एक्सपोसैट बेहतर काम कर रहा : इसरो प्रमुख

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख एस.सोमनाथ ने शुक्रवार को कहा कि एक जनवरी को प्रक्षेपित पीएसएलवी एक्सपोसैट ‘बहुत अच्छा’ काम कर रहा है. सोमनाथ हैदराबाद स्थित जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (जेएनटीयू) के दीक्षांत समारोह से इतर संवादाताओं से बातचीत कर रहे थे. यहां विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की मानद उपाधि से सम्मानित किया.

सोमनाथ ने कहा, ”पहली जनवरी को हमने पीएसएलवी एक्सपोसैट को प्रक्षेपित किया था. उपग्रह अच्छा काम कर रहा है. अब उसके सभी उपकरणों को काम करने के लिए धीरे-धीरे ऑन किया गया है. हमें जल्द परिणाम की जानकारी मिलेगी.” उन्होंने कहा कि 2024 व्यस्त होने वाला है और कई प्रक्षेपण किए जाने हैं.

सोमनाथ ने कहा, ”अगला प्रक्षेपण जीएसएलवी, इनसैट-3डीएस और मौसम उपग्रह का किया जाना है ताकि चक्रवात पर नजर रखी जा सके,बारिश, सूखे और कई मौसमी गतिविधियों का आकलन किया जा सके. यह उपग्रह इसी महीने या संभवत? फरवरी की शुरुआत में प्रक्षेपित किया जाना है.” उन्होंने कहा कि गगनयान मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत भी कई प्रक्षेपण किए जाने है और 2024 ‘गगनयान साल’होने जा रहा है. अन्य प्रक्षेपणों में वाणिज्यिक प्रक्षेण और जीएसएलवी का प्रक्षेपण शामिल है. उन्होंने अंतरिक्ष एजेंसी के पहले सौर मिशन, आदित्य-एल1 की कक्षा में बदलाव के लिए किए जाने बारे में भी बात की जो छह जनवरी को किया जाएगा. इस बदलाव से आदित्य-एल1 अपनी तय कक्षा में पहुंच जाएगा.

सोमनाथ ने कहा, ”कल, हम आदित्य-एल1 को उसकी अंतिम कक्षा में भेजने का प्रयास करेंगे … यह कल होगा. उसके बाद, उपग्रह वहीं आसपास रहेगा, सूर्य को देखेगा और सभी माप करेगा. इस प्रकार वह करीब-करीब 15 लाख किलोमीटर की अपनी यात्रा पूरी करने वाला है.” इसरो अधिकारियों के अनुसार, अंतरिक्ष यान को पृथ्वी से लगभग 15 किलोमीटर दूर सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु 1 (एल 1) के आसपास एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा. एल-1 बिंदु पृथ्वी और सूर्य के बीच की कुल दूरी का लगभग एक प्रतिशत है.

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