अयोध्या संबंधी फैसले में किसी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख न करना सर्वसम्मत निर्णय था: सीजेआई चंद्रचूड़

प्रधान न्यायाधीश ने अनुच्छेद 370, समलैंगिक विवाह मुद्दों पर बयान देने से किया इंकार

नयी दिल्ली. अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक के चार साल से अधिक समय बाद प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल पर एक ट्रस्ट द्वारा राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में निर्णय सुनाने वाले पांच न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया था कि इसमें फैसला लिखने वाले किसी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख नहीं किया जाएगा.

नौ नवंबर, 2019 को, एक सदी से भी अधिक समय से चले आ रहे एक विवादास्पद मुद्दे का निपटारा करते हुए तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया था और अयोध्या में मस्जिद के लिए पांच एकड़ वैकल्पिक भूमि देने का भी निर्णय सुनाया था.

इस संबंध में फैसला सुनाने वाली पीठ का हिस्सा रहे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक विशेष साक्षात्कार में फैसले में किसी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख न करने के बारे में खुलकर बात की और कहा कि जब न्यायाधीश एक साथ बैठे, जैसा कि वे किसी घोषणा से पहले करते हैं, तो सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि यह “अदालत का फैसला” होगा. वह इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि फैसला लिखने वाले न्यायाधीश का नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया.

सीजेआई ने कहा, “जब पांच न्यायाधीशों की पीठ फैसले पर विचार-विमर्श करने के लिए बैठी, जैसा कि हम सभी निर्णय सुनाए जाने से पहले करते हैं, तो हम सभी ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि यह अदालत का फैसला होगा. और, इसलिए, फैसले लिखने वाले किसी भी न्यायाधीश के नाम का उल्लेख नहीं किया गया.”

उन्होंने कहा, “इस मामले में संघर्ष का एक लंबा इतिहास है, देश के इतिहास के आधार पर विविध दृष्टिकोण हैं और जो लोग पीठ का हिस्सा थे, उन्होंने फैसला किया कि यह अदालत का फैसला होगा. अदालत एक स्वर में बोलेगी और ऐसा करने के पीछे का विचार यह स्पष्ट संदेश देना था कि हम सभी न केवल अंतिम परिणाम में, बल्कि फैसले में बताए गए कारणों में भी एक साथ हैं.” उन्होंने कहा, ”मैं इसके साथ अपना उत्तर समाप्त करूंगा.” देश को ध्रुवीकृत करने वाले मामले में सर्वसम्मत निर्णय सुनाते हुए शीर्ष अदालत की पीठ ने 2019 में कहा था कि हिंदुओं की इस आस्था को लेकर कोई विवाद नहीं है कि भगवान राम का जन्म संबंधित स्थल पर हुआ था, और प्रतीकात्मक रूप से वह संबंधित भूमि के स्वामी हैं.

न्यायालय ने कहा था कि फिर भी, यह भी स्पष्ट है कि हिंदू कारसेवक, जो वहां राम मंदिर बनाना चाहते थे, उनके द्वारा 16वीं शताब्दी की तीन गुंबद वाली संरचना को ध्वस्त किया जाना गलत था, जिसका “समाधान किया जाना चाहिए”. शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसका आस्था और विश्वास से कोई लेना-देना नहीं है तथा इसके बजाय मामले को तीन पक्षों – सुन्नी मुस्लिम वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा, एक हिंदू समूह और राम लला विराजमान के बीच भूमि पर स्वामित्व विवाद के रूप में लिया. उच्चतम न्यायालय के 1,045 पन्नों के फैसले का हिंदू नेताओं और समूहों ने व्यापक स्वागत किया था, जबकि मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि वह फैसले को स्वीकार करेगा, भले ही यह त्रुटिपूर्ण है.

प्रधान न्यायाधीश ने अनुच्छेद 370, समलैंगिक विवाह मुद्दों पर बयान देने से किया इंकार

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने संबंधी केंद्र के फैसले को उच्चतम न्यायालय की ओर से बरकरार रखे जाने के मुद्दे पर सोमवार को किसी भी विवाद से बचने की कोशिश की और शीर्ष अदालत के सर्वसम्मत निर्णय की कुछ हलकों में हो रही आलोचनाओं पर टिप्पणी करने से इनकार किया.

उन्होंने कहा कि न्यायाधीश किसी भी मामले में निर्णय ”संविधान एवं कानून के अनुसार करते हैं.” प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक विशेष साक्षात्कार में समलैंगिक विवाह को वैध बनाने से इनकार करने वाले पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले के बारे में भी खुलकर बात की और कहा कि किसी मामले का परिणाम कभी भी न्यायाधीश के लिए व्यक्तिगत नहीं होता है. देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हालांकि समलैंगिक जोड़ों ने अपने अधिकारों के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया और यह बात उनके ध्यान में थी.

उच्चतम न्यायालय ने 17 अक्टूबर को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था लेकिन समलैंगिक लोगों के लिए समान अधिकारों और उनकी सुरक्षा की बात कही थी. उन्होंने कहा, ”एक बार जब आप किसी मामले पर फैसला कर लेते हैं तो आप परिणाम से खुद को दूर कर लेते हैं. एक न्यायाधीश के रूप में हमारे लिए नतीजे कभी भी व्यक्तिगत नहीं होते. मुझे कोई पछतावा नहीं है. हां, कई बार जिन मामलों में फैसला सुनाया गया उनमें मैं बहुमत वाले फैसलों में था और कई बार अल्पमत वाले फैसलों में था.”

उन्होंने कहा, ”एक न्यायाधीश के जीवन में महत्वपूर्ण बात कभी भी खुद को किसी मुद्दे से नहीं जोड़ना है. किसी मामले का फैसला करने के बाद, मैं इसे वहीं छोड़ देता हूं.” अनुच्छेद 370 पर उच्चतम न्यायालय के फैसले और इसकी आलोचना पर उन्होंने कहा कि न्यायाधीश अपने निर्णय के माध्यम से अपनी बात कहते हैं जो फैसले के बाद सार्वजनिक संपत्ति बन जाती है और एक स्वतंत्र समाज में लोग हमेशा इसके बारे में अपनी राय बना सकते हैं.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ”जहां तक हमारा सवाल है तो हम संविधान और कानून के मुताबिक फैसला करते हैं. मुझे नहीं लगता कि मेरे लिए आलोचना का जवाब देना या अपने फैसले का बचाव करना उचित होगा. हमने इस संबंध में जो बात कही है वह हस्ताक्षरित फैसले में परिलक्षित होती है.”

यह कहना गलत कि कॉलेजियम व्यवस्था में पारर्दिशता की कमी है : प्रधान न्यायाधीश

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम व्यवस्था का सोमवार को बचाव करते हुए कहा कि इसमें अधिक पारर्दिशता सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए गए हैं. प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि प्रक्रिया की आलोचना करना बहुत आसान है, लेकिन न्यायाधीशों की नियुक्ति से पहले परामर्श की उचित प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करने के लिए कॉलेजियम के द्वारा हरसंभव प्रयास किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, “यह कहना कि कॉलेजियम प्रणाली में पारर्दिशता का अभाव है, उचित नहीं होगा. हमने यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए हैं कि अधिक पारर्दिशता बनी रहे. निर्णय लेने की प्रक्रिया में निष्पक्षता की भावना बनी रहनी चाहिए… जब हम उच्चतम न्यायालय में नियुक्ति के लिए न्यायाधीशों के नामों पर विचार करते हैं, तो हम उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीशों के करियर पर भी विचार करते हैं.”

उन्होंने कहा, “इसलिए कॉलेजियम के भीतर होने वाली चर्चा को कई विभिन्न कारणों से सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है. हमारी कई चर्चाएं उन न्यायाधीशों की निजता पर होती हैं, जो उच्चतम न्यायालय में नियुक्ति के लिए विचाराधीन हैं. वे चर्चाएं यदि उन्हें स्वतंत्र और खुले माहौल में होनी हैं, तो वे वीडियो रिकॉर्डिंग या दस्तावेजीकरण का विषय नहीं हो सकतीं. यह वह प्रणाली नहीं है, जिसे भारतीय संविधान ने अंगीकार किया है.” प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि विविधतापूर्ण समाज को ध्यान में रखते हुए यह भी महत्वपूर्ण है कि हम निर्णय लेने की अपनी प्रक्रिया पर भरोसा करना सीखें.

उन्होंने कहा, “प्रक्रिया की आलोचना करना बहुत आसान है, लेकिन अब, जबकि मैं कई साल से इस प्रक्रिया का हिस्सा हूं, तो मैं आपके साथ साझा कर सकता हूं कि किसी न्यायाधीश की नियुक्ति से पहले परामर्श की उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए हमारे न्यायाधीशों द्वारा हरसंभव प्रयास किया जा रहा है.” न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत का प्रधान न्यायाधीश होने के नाते वह संविधान और शीर्ष अदालत द्वारा इसकी व्याख्या करने वाले कानून से बंधे हैं.

उन्होंने कहा, “न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए हमारे यहां कॉलेजियम प्रणाली है जो 1993 से हमारी न्याय व्यवस्था का हिस्सा है और इसी प्रणाली को हम लागू करते हैं. लेकिन यह कहने के बावजूद, कॉलेजियम प्रणाली के मौजूदा सदस्यों के रूप में यह हमारा कर्तव्य है कि हम इसे कायम रखें तथा इसे और पारदर्शी बनाएं. इसे और अधिक उद्देश्यपूर्ण बनाएं. और हमने उस संबंध में कदम उठाए हैं, निर्णायक कदम उठाए हैं.”

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