द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच विवाद की जड़ रहा कच्चातिवु मुद्दा लोस चुनाव से पहले फिर चर्चा में

नयी दिल्ली/चेन्नई. दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्रियों एम. करुणानिधि और जे. जयललिता के बीच हमेशा विवाद की जड़ रहा कच्चातिवु द्वीप (इस द्वीप को भारत सरकार ने 1974 में श्रीलंका को सौंप दिया था) का भावनात्मक मुद्दा लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर चर्चा में हैं.
तमिल मछुआरों की लगातार गिरफ्तारी और उत्पीड़न के साथ कच्चातिवू वापस लेने का मुद्दा द्रविड़ राजनीति के दिग्गजों के बीच गहन बहस का विषय रहा है. जयललिता ने एक बार मछुआरों की परेशानियों को समाप्त करने के लिए द्वीप को पुन? प्राप्त करने का संकल्प लिया था और उनकी पार्टी ने हमेशा इसे रोकने के वास्ते कुछ नहीं करने के लिए द्रविड मुनेत्र कषगम (द्रमुक) को दोषी ठहराया है, हालांकि वर्ष 1974 में सत्ता की बागडोर उसी के पास थी.
करुणानिधि ने कहा था कि उन्होंने कभी भी द्वीप को सौंपे जाने को स्वीकार नहीं किया और न ही वह इसके लिए सहमत हुए. उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए अपना विरोध जताया था. द्रमुक ने हमेशा कहा है कि कच्चातिवु को सौंपे जाने के विरोध में उसने राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन किया था. वास्तव में सत्तारूढ़ द्रमुक और अन्नाद्रमुक, दोनों ने कच्चातिवु को फिर से प्राप्त करने का समर्थन किया है. केंद्र में इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान 1974 और 1976 में श्रीलंका को द्वीप को देने के लिए समझौते किए गए. वर्ष 1971 के चुनाव में द्रमुक ने गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था.
जयललिता ने अपनी निजी हैसियत से इस द्वीप को वापस पाने के लिए 2008 में उच्चतम न्यायालय का रुख किया था. इसके बाद अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाली राज्य सरकार बतौर पक्षकार खुद इस मामले में शामिल हो गई थी. कच्चातिवु को वापस लेने का मुद्दा प्रमुख द्रविड़ दलों के बीच तीखी बहस का विषय रहा है. जून 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने करुणानिधि पर इस द्वीप को श्रीलंका को सौंपने से रोकने के लिए ”कुछ न करने” का आरोप लगाया था.
उन्होंने इस मुद्दे पर सालों तक ‘आंख मूंदे रहने” के बाद विधानसभा में इसे उठाने के लिए द्रमुक की तुलना अंग्रेजी की एक लघु कथा के पात्र ‘रिप वैन विंकल’ से की जो 20 वर्षों तक सोता रहता है. वहीं, करुणानिधि ने जयललिता से पूछा था कि वह 1991 से लेकर अब तक क्या करती रहीं जबकि उन्होंने इसे वापस लेने का वादा किया था. उन्होंने दावा किया था कि उन्होंने कभी इस द्वीप को श्रीलंका को सौंपने के समझौते को स्वीकार नहीं किया. करुणानिधि ने कहा था कि उन्होंने तब राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर पुरजोर विरोध जताया था.
जयललिता ने 1994 में इस मुद्दे को तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव के समक्ष उठाया था और कहा था कि ”भारत सरकार ने बेहतर द्विपक्षीय संबंधों के हित में इस छोटे-से द्वीप को श्रीलंका को सौंपने का फैसला लिया था.” जयललिता ने जून 2016 में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी और कच्चातिवु को वापस लेने तथा तमिलनाडु और श्रीलंका के मछुआरों के बीच लंबे समय से जारी विवाद को हल करने की मांग की थी.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस तथा उसके सहयोगी दल द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) को आड़े हाथों लिया जो समझौते के वक्त सत्ता में थे. इसके बाद तमिलनाडु में लोकसभा चुनाव के लिए 19 अप्रैल को होने वाले मतदान से कुछ दिनों पहले यह मुद्दा अब केंद्र में आ गया है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस द्वीप को श्रीलंका को सौंपने के लिए कांग्रेस तथा द्रमुक को जिम्मेदार ठहरा रही है.
द्रमुक अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कच्चातिवु मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उनकी आलोचना किए जाने पर सोमवार को पलटवार करते हुए चुनाव से पहले मछुआरों के लिए भाजपा के ”अचानक उमड़े प्यार” पर सवाल उठाया. उन्होंने तमिलनाडु द्वारा मांगे गए 37,000 करोड़ रुपये के बाढ़ राहत पैकेज समेत कई मुद्दों को लेकर भी प्रधानमंत्री पर सवाल उठाया.
तमिलनाडु में राजनीतिक दल और मछुआरे संघ कथित समुद्री उल्लंघन के लिए तमिलनाडु के मछुआरों को श्रीलंका द्वारा गिरफ्तार किए जाने के इकलौते समाधान के तौर पर कच्चातिवु को वापस हासिल करने पर लंबे समय से जोर देते रहे हैं. उनका कहना है कि भारतीय मछुआरों के इस विवादित द्वीप पर मछली पकड़ने के पारंपरिक अधिकार हैं. कांग्रेस और द्रमुक पर प्रहार जारी रखते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी सोमवार को दावा किया कि कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने कच्चातिवु द्वीप को लेकर उदासीनता दिखायी और भारतीय मछुआरों के अधिकार छीन लिए.
19 अप्रैल के लोकसभा चुनाव से पहले सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत भाजपा की तमिलनाडु इकाई के प्रमुख के. अन्नामलाई की याचिका के जवाब में विदेश मंत्रालय द्वारा किए गए खुलासे के बाद कच्चातिवु मुद्दा फिर से सुर्खियों में है. फिलहाल लड़ाई केवल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस-द्रमुक गठबंधन के बीच ही प्रतीत होती है. अन्नाद्रमुक के वरिष्ठ नेता डी जयकुमार ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केवल वोट हासिल करने के लिए इस मुद्दे को उठा रहे हैं और वह अपने 10 साल के कार्यकाल के दौरान पहले ही द्वीप को पुन? प्राप्त करने के लिए कदम उठा सकते थे.
अन्नामलाई के अनुसार, ताजा आरटीआई ‘खुलासे’ का सार दो पहलुओं को शामिल करता है. एक आधिकारिक ‘फाइल नोटिंग’ से संबंधित है जिसमें दर्ज किया गया है कि प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस द्वीप को कोई महत्व नहीं दे रहे थे और द्वीप से अलग रहने की उनकी इच्छा थी. उन्होंने कहा कि दूसरे पहलू ने ‘करुणानिधि के विश्वासघात’ को प्रर्दिशत किया, क्योंकि केंद्र सरकार द्वीप को श्रीलंका को सौंपने के प्रस्तावित कदम के बारे में करुणानिधि से चर्चा करने के साथ उन्हें अवगत करा रही थी.
पीएमके संस्थापक एस रामदॉस ने कहा कि कच्चातिवु को सौंपना एक विश्वासघात था जिसे कभी माफ नहीं किया जा सकता. उन्होंने मांग की कि मुख्यमंत्री स्टालिन कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के पीछे के ‘रहस्य’ को बताएं, जो अब भी द्वीप को सौंपने को उचित ठहराता है. वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को कच्चातिवु के बजाय भारतीय क्षेत्र पर ‘चीनी कब्जे’ पर बोलना चाहिए. चिदंबरम ने कहा कि अच्छे संबंध बनाए रखने और लाखों तमिलों की जान बचाने के लिए यह द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया था.
प्रियंका चतुर्वेदी ने 27 जनवरी, 2015 के आरटीआई जवाब को टैग करते हुए कहा, ”शायद विदेश मंत्रालय 2024 की तुलना में 2015 में अपने आरटीआई जवाब में इस विसंगतियों को दूर करने में सक्षम होगा.” उनका कहना है, ”2015 में आरटीआई जवाब के अनुसार जब वर्तमान विदेश मंत्री विदेश सचिव के रूप में कार्यरत थे.” कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इस आरटीआई जवाब का हवाला देते हुए कहा, ”यह दिखाता है कि विदेश सचिव ने विदेश मंत्री बनते ही कितनी जल्दी अपना रंग बदल लिया.” रमेश ने आरोप लगाया, ”जहां तक ??मोदी सरकार की बात है तो पाखंड या झूठ बोलने की कोई सीमा नहीं है.”