कृष्ण जन्मभूमि मामला: मस्जिद हटाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर विचार करेगी अदालत
मथुरा. उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर से सटकर बनी शाही ईदगाह को हटाकर उक्त भूमि उसके कथित वास्तविक मालिक श्रीकृष्ण जन्मभूमि न्यास को सौंपे जाने के लिए पेश अर्जी को जिला जज ने बृहस्पतिवार को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया.
जिला शासकीय अधिवक्ता शिवराम ंिसह तरकर ने बताया, उच्चतम न्यायालय की अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री सहित आधा दर्जन कृष्ण भक्तों द्वारा 25 सितम्बर 2020 में पहली बार पेश किए गए इस वाद पर सुनवाई करते हुए सिविल जज (सीनियर डिवीजन) ने मामले को खारिज कर दिया था. उन्होंने बताया कि इसके बाद इस प्रकरण को पुनरीक्षण (रिवीजन) के लिए जिला जज की अदालत में पेश किया गया.
उन्होंने बताया,एक दर्जन से अधिक और मामले भी इसी प्रकार की मांग को लेकर स्थानीय अदालतों में चल रहे हैं. सभी पर मामले की पोषणीयता पर सुनवाई चल रही है. तरकर ने बताया कि जिला जज राजीव भारती ने इस मसले पर बीती पांच मई को दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज मंजूर कर लिया गया है. उन्होंने कहा कि अब जिला जज जिस सत्र अदालत को यह मामला सौपेंगे, उसी में इसकी सुनवाई होगी.
तरकर ने बताया, रंजना अग्निहोत्री आदि का दावा है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि में से जिस जमीन पर शाही ईदगाह खड़ी है, वहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान और मंदिर का गर्भगृह मौजूद है. इसलिए ईदगाह को वहां से हटाकर उक्त भूमि जन्मभूमि न्यास को सौंप दी जाए. उन्होंने बताया कि याचिकर्ताओं ने दावा किया है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान एवं शाही ईदगाह इंतजामिया कमेटी के बीच हुआ समझौता अवैध है. याचिका में उक्त करार को भी अमान्य घोषित करने का अनुरोध किया गया है.
गौरतलब है कि रंजना अग्निहोत्री ने राम जन्मभूमि अयोध्या प्रकरण में भी अदालत में वाद दायर किया था. दूसरी ओर, बुधवार को सिविल जज की अदालत में अखिल भारत हिन्दू महासभा के कोषाध्यक्ष दिनेश शर्मा ने एक नया प्रार्थना पत्र पेश किया. इसमें उन्होंने शाही ईदगाह को भगवान श्रीकृष्ण मंदिर का कथित गर्भगृह बताते हुए वहां जलाभिषेक करने की अनुमति देने का अनुरोध किया है.
हालांकि, अधिवक्ताओं की हड़ताल के कारण इस अर्जी पर सुनवाई नहीं हो सकी. बाद में अदालत ने अन्य मामलों के साथ ही इस पर भी सुनवाई के लिए एक जुलाई की तारीख तय की है. महासभा इससे पहले छह दिसंबर 2021 को भी विवादित स्थान पर जलाभिषेक करने की घोषणा की थी जिसकी वजह से प्रशासन को शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए निषधाज्ञा लागू करनी पड़ी थी.