सिब्बल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए वकीलों ने अटॉर्नी जनरल की सहमति मांगी

नयी दिल्ली. दो वकीलों ने सोमवार को अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल को अलग-अलग पत्र लिखकर शीर्ष अदालत के फैसलों के बारे में ‘ंिनदात्मक बयानों’ के लिए राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने को लेकर उनकी सहमति मांगी है. न्यायालय की अवमानना कानून की धारा 15 के अनुसार, शीर्ष अदालत के समक्ष आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल या सॉलिसिटर जनरल की अनुमति एक शर्त है.

दो वकीलों-विनीत ंिजदल और शशांक शेखर झा ने शीर्ष विधि अधिकारी से पूर्व कानून मंत्री सिब्बल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए सहमति देने का अनुरोध किया है. झा ने अपने पत्र में कहा, ‘‘ंिनदात्मक भाषण न केवल उच्चतम न्यायालय और उसके न्यायाधीशों के खिलाफ है, बल्कि उच्चतम न्यायालय और उसके न्यायाधीशों दोनों के अधिकार को बदनाम करके शीर्ष अदालत की गरिमा और स्वतंत्र प्रकृति को कमजोर करने की प्रक्रिया है.’’

इसी तरह, ंिजदल ने दावा किया है कि सिब्बल के बयानों ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा पारित ‘‘निर्णयों की ंिनदा’’ की है. उन्होंने अपने पत्र में कहा, ‘‘अगर इस तरह के चलन को अनुमति दी गई तो नेता हमारे देश के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ बेरोक-टोक आरोप लगाना शुरू कर देंगे और यह प्रवृत्ति जल्द ही एक स्वतंत्र न्यायपालिका प्रणाली की विफलता का कारण बनेगी.’’

अटॉर्नी जनरल को लिखे अपने पत्र में, झा ने दावा किया कि सिब्बल ने अपने भाषण में सर्वोच्च न्यायालय की स्वतंत्रता पर ‘‘संदेह’’ पैदा किया और ‘‘दुर्भावनापूर्ण इरादे से शीर्ष अदालत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने’’ की कोशिश की. सिब्बल ने छह अगस्त को यहां आयोजित एक कार्यक्रम में बतौर वक्ता यह बयान दिया था. सिब्बल ने अपने बयान में जकिया जाफरी मामले में शीर्ष अदालत के हालिया फैसले के साथ-साथ धन शोधन निवारण कानून के कुछ प्रावधानों की व्याख्या से संबंधित याचिकाओं की आलोचना की थी.

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