न्यूजक्लिक मामला: न्यायालय ने UPA मामले में गिरफ्तारी को चुनौती वाली पुरकायस्थ की अर्जी खारिज की

नयी दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्ज एक मामले में ‘न्यूजक्लिक’ के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ तथा पोर्टल के मानव संसाधन विभाग के प्रमुख अमित चक्रवर्ती की गिरफ्तारी और उसके बाद पुलिस हिरासत में भेजे जाने के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.

पुरकायस्थ और चक्रवर्ती ने दलील दी कि जब उन्हें पकड़ा गया तो गिरफ्तारी का आधार नहीं बताया गया और निचली अदालत ने उनके अधिवक्ताओं की अनुपस्थिति में हिरासत में भेजने का आदेश पारित किया था. अदालत ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि यूएपीए लिखित आधार प्रस्तुत करने को अनिवार्य नहीं करता है और केवल गिरफ्तारी के कारणों के बारे में आरोपी को ‘सूचित’ करने की बात करता है. अदालत ने कहा कि यह ‘सलाह’ होगी कि पुलिस ‘संवेदनशील सामग्री’ को ठीक तरीके से पेश करने के बाद आरोपी को गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप में प्रदान करे.

याचिकाओं को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला ने कहा कि गिरफ्तारी के संबंध में कानूनी या संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन या कोई “प्रक्रियात्मक खामी” नहीं है और हिरासत में भेजने का आदेश कानून सम्मत है. पोर्टल के संस्थापक की याचिका पर आदेश पारित करते हुए अदालत ने कहा, ”याचिका में पुख्ता आधार नहीं होने के कारण लंबित आवेदनों सहित इसे खारिज किया जाता है.”

अदालत ने कहा, ” पूरे मामले की सही परिप्रेक्ष्य में जांच करने के बाद, अब तक ऐसा प्रतीत होता है कि गिरफ्तारी के बाद याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी के आधारों के बारे में यथाशीघ्र सूचित कर दिया गया था और इस तरह, यूएपीए की धारा 43बी के तहत कोई प्रक्रियात्मक खामी नहीं दिखती है या भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(1) के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं होता और गिरफ्तारी कानून सम्मत है.” अदालत ने कहा कि यूएपीए के तहत अपराध सीधे तौर पर देश के स्थायित्व, अखंडता और संप्रभुता को प्रभावित करता है और इसीलिए केवल गिरफ्तारी के आधार की जानकारी देना जरूरी है.

अदालत ने कहा कि गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर गिरफ्तारी के कारणों के बारे में ”सूचित” किया जाना जरूरी है. अदालत ने कहा, ”पंकज बंसल (सुप्रा) के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा स्थापित कानून को ध्यान में रखते हुए, और यूएपीए के कड़े प्रावधानों पर भी विचार करते हुए, यह सलाह दी जाती है कि प्रतिवादी अब से लिखित में गिरफ्तारी का आधार प्रदान करे, हालांकि प्रतिवादी द्वारा सामग्री ठीक से पेश करने के बाद तय होगा कि ‘संवेदनशील सामग्री’ क्या होगी. उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसार इससे वर्तमान मामले में गिरफ्तारी को दी गई किसी भी चुनौती से बचा जा सकेगा.”

याचिकाकर्ताओं ने कारणों की जानकारी न देने पर अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए तर्क दिया था कि उन्हें गिरफ्तार करने के बाद सात दिन की पुलिस हिरासत में भेजने का आदेश उनके वकीलों की अनुपस्थिति में दिया गया था. यह भी आरोप लगाया गया कि निचली अदालत के हिरासत आदेश में ‘स्पष्ट विसंगति’ थी क्योंकि उच्च न्यायालय के नियमों के अनुसार, आदेश में सुनाने का समय सुबह छह बजे दर्ज किया गया था जबकि पुरकायस्थ के वकील को केवल व्हाट्सऐप के माध्यम से हिरासत संबंधी आवेदन सुबह सात बजे भेजा गया था. पुरकायस्थ का पक्ष वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और दयान कृष्णन ने रखा.

पुरकायस्थ की याचिका पर विचार करते हुए न्यायमूर्ति गेडेला ने आदेश में टिप्पणी की कि ”गिरफ्तारी और उसके बाद की हिरासत कार्यवाही के संबंध में तथ्यों पर संपूर्ण तर्क स्पष्ट रूप से भिन्न प्रतीत होते हैं. इतना कि, वे, कभी-कभी, विरोधाभासी लगते हैं.” अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के वकील को हिरासत आवेदन प्रदान किया गया था और हिरासत आदेश पारित करने से पहले निचली अदालत द्वारा टेलीफोन पर भी सुनवाई की गई थी.

अदालत ने सवाल किया वर्तमान याचिका गिरफ्तारी के लगभग तीन दिन बाद और हिरासत कार्यवाही के दो दिन बाद क्यों दायर की गई? अदालत ने टिप्पणी की, ” यदि गिरफ्तारी के आधार न बताने के बारे में याचिकाकर्ता के तर्क को सच माना जाए, तो यह समझ से परे है कि याचिकाकर्ता को 04.10.2023 को, वर्तमान प्राथमिकी की प्रति प्राप्त होने से पहले ही कैसे जानकारी हुई कि यह प्राथमिकी उन्हीं आरोपों और लेनदेन के आधार पर दर्ज की गई जो दूसरी प्राथमिकी में थी, जो पीएमएलए के तहत अपराधों के संबंध में पिछली प्राथमिकी में ईओडब्ल्यू/ईसीआईआर द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए थे.”

चक्रवर्ती की याचिका पर आदेश पारित करते हुए अदालत ने कहा,”क्या याचिकाकर्ता की बात में कोई सच्चाई थी? कथित तौर पर अवैध हिरासत के खिलाफ शिकायत तब उठाई गई, जब उसी दिन प्राथमिकी की प्रति की मुहैया कराने के लिए निचली अदालत के समक्ष आवेदन किया गया था.

अदालत ने कहा कि चूंकि मानव संसाधन प्रमुख के खिलाफ स्थिरता, अखंडता, संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले गंभीर अपराध का आरोप है, इसलिए वह केवल याचिकाकर्ता के 59 प्रतिश दिव्यांग होने के कारण अनुकूल आदेश पारित करने की इच्छुक नहीं है. पुरकायस्थ और चक्रवर्ती को दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने तीन अक्टूबर को गिरफ्तार किया था.

बाद में उन्होंने गिरफ्तारी और सात दिन की पुलिस हिरासत के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की और अंतरिम राहत के तौर पर तत्काल रिहाई की मांग की. निचली अदालत ने 10 अक्टूबर को उन्हें दस दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. उनके खिलाफ प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि भारत की ”संप्रभुता को नुकसान पहुंचाने” और देश में असंतोष पैदा करने के लिए समाचार पोर्टल को चीन से बड़ी राशि मिली थी. इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान चुनावी प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने के लिए पुरकायस्थ ने ‘पीपुल्स अलायंस फॉर डेमोक्रेसी एंड सेक्युलरिज़्म’ (पीएडीएस) समूह के साथ मिलकर साजिश रची थी.

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