नीतीश एससी-एसटी, ओबीसी के लिए कोटा बढ़ाने के पक्ष में, मौजूदा सत्र में कानून बनने की संभावना

बिहार में एक तिहाई से अधिक परिवारों की मासिक आय छह हजार रुपये से कम : राज्य सरकार

पटना. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए कोटा (आरक्षण) बढ़ाने के अपने इरादे की घोषणा करते हुए मंगलवार को कहा कि मौजूदा विधानसभा सत्र में इस आशय का कानून लाने की संभावना है.

कुमार ने अपनी सरकार द्वारा कराए गए महत्वाकांक्षी जातिगत सर्वेक्षण पर एक विस्तृत रिपोर्ट बिहार विधानसभा के पटल पर पेश किए जाने के बाद हुई चर्चा में भाग लेते हुए यह बयान दिया. उन्होंने पांच दिवसीय बिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन कहा, ”एससी और एसटी के लिए मिलाकर आरक्षण कुल 17 प्रतिशत है. इसे बढ़ाकर 22 फीसदी किया जाना चाहिए. इसी तरह ओबीसी के लिए आरक्षण भी मौजूदा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत किया जाना चाहिए. हम उचित परामर्श के बाद आवश्यक कदम उठाएंगे. हमारा चालू सत्र में इस संबंध में आवश्यक कानून लाने का इरादा है.”

सर्वेक्षण के अनुसार अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) उपसमूह सहित ओबीसी, राज्य की कुल आबादी का 63 प्रतिशत है जबकि एससी और एसटी कुल मिलाकर 21 प्रतिशत से थोड़ा अधिक हैं. मुख्यमंत्री के बयान का राज्य की राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है और इससे देश के अन्य हिस्सों से आरक्षण बढ़ाने की मांग उठ सकती है. कुमार ने बिहार में जातिगत सर्वेक्षण को ”बोगस” बताए जाने की भी निंदा की.

बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर आसीन रहे कुमार ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को प्रत्युत्तर देते हुए कहा, ”कुछ लोग कहते हैं कि अन्य जातियों के नुकसान के लिए कुछ समुदायों के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है. ये सब ”बोगस” बात है, नहीं बोलना चाहिए था.” शाह ने दो दिन पहले मुजफ्फरपुर जिले में एक रैली में नीतीश कुमार सरकार पर निशाना साधते हुए उस पर अपनी ”तुष्टिकरण की राजनीति” के तहत राज्य के जातिगत सर्वेक्षण में जानबूझकर मुस्लिमों और यादवों की आबादी को बढ़ाकर दिखाने का आरोप लगाया था और कहा था कि इसका अन्य पिछड़े वर्गों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

शाह ने नीतीश कुमार पर यह भी आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने सहयोगी दल राजद के प्रमुख लालू प्रसाद के दबाव में ऐसा किया . लालू प्रसाद इन दोनों समुदायों को अपना प्रबल समर्थक मानते हैं. कुमार ने लालू प्रसाद के छोटे बेटे और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाने वाले उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की मौजूदगी में सदन को संबोधित करते हुए कहा कि यहां तक कि उनकी अपनी जाति (कुर्मी) भी कुल आबादी का एक छोटा प्रतिशत है.

उन्होंने कहा, ”इस सर्वेक्षण से पहले हमारे पास केवल धारणाएँ थीं, संबंधित समूहों की जनसंख्या का अनुमान लगाने के लिए कोई ठोस डेटा नहीं था. आखिरी बार जातिगत गणना 1931 की जनगणना में की गई थी. इसके अलावा हमें यह भी समझना चाहिए कि महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के बाद प्रजनन दर में गिरावट आ रही है. सामाजिक क्षेत्रों में जहां यह परिवर्तन अधिक स्पष्ट है, वहां जनसंख्या अनुपात में गिरावट होगी.” उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उनकी सरकार रिपोर्ट की एक प्रति केंद्र को भेजेगी जिसमें समाज के कमजोर वर्गों पर लक्षित उपाय करने के लिए अतिरिक्त सहायता की मांग की जाएगी.

जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के शीर्ष नेता कुमार ने कहा, ”इस अवसर पर मैं बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए अपने अनुरोध को फिर से दोहराना चाहूंगा.” उन्होंने कहा, ”हमने अनुमान लगाया है कि गरीबों की स्थिति में सुधार के लिए राज्य को 2.51 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ उठाना होगा.” मुख्यमंत्री ने कहा कि सर्वेक्षण के अनुसार बिहार में 94 लाख परिवार गरीब हैं जो 6000 रुपये या उससे कम की मासिक आय पर जीवन यापन कर रहे हैं .

उन्होंने कहा कि उनकी सरकार द्वारा रखे गए प्रस्तावों में से एक गरीब परिवारों को आर्थिक रूप से उत्पादक कार्य करने के लिए प्रत्येक को दो लाख रुपये की सहायता प्रदान करना है. इसके अलावा उनकी सरकार ने आवास निर्माण के लिए ऐसे प्रत्येक परिवार को एक लाख रुपये देने की योजना बनाई है जिनके पास रहने के लिए कोई घर नहीं है.

मुख्यमंत्री ने कहा, ”अगर हमें विशेष दर्जा मिलता है, तो हम दो से तीन वर्षों में अपने लक्ष्य हासिल करने में सक्षम होंगे. अन्यथा इसमें अधिक समय लग सकता है.” उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि यह सर्वेक्षण केंद्र को राष्ट्रव्यापी जनगणना के अनुरोध पर पुर्निवचार करने के लिए मजबूर करेगा . उन्होंने कहा कि इस मांग को लेकर उन्होंने बिहार के एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई करते हुए दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी.

मुख्यमंत्री ने कहा, ”हमें बताया गया कि अनुरोध स्वीकार नहीं किया जा सकता है लेकिन यदि इसकी आवश्यकता महसूस की गई तो राज्य सर्वेक्षण करने के लिए स्वतंत्र हैं. जनगणना अब तक पूरी हो जानी चाहिए थी अभी तक शुरू नहीं हुई है. केंद्र जनगणना के हिस्से के रूप में जातियों की गणना पर विचार कर सकता है.”

बिहार में एक तिहाई से अधिक परिवारों की मासिक आय छह हजार रुपये से कम : राज्य सरकार

बिहार विधानसभा में मंगलवार को पेश की गई जाति सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में रहने वाले एक तिहाई से अधिक परिवार गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं और उनकी मासिक आय छह हजार रुपये या उससे कम है. रिपोर्ट में यह भी स्वीकार किया गया कि सवर्ण जातियों में काफी गरीबी है. हालांकि, पिछड़े वर्गों, दलितों और आदिवासियों में यह प्रतिशत अनुमानत? काफी अधिक है.

बिहार के संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार राज्य में लगभग 2.97 करोड़ परिवार हैं जिनमें से 94 लाख से अधिक (34.13 प्रतिशत) परिवार गरीब हैं. चौधरी ने राज्य सरकार द्वारा कराई गई जाति आधारित गणना की एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की गई जिसके प्रारंभिक निष्कर्ष दो अक्टूबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सहित अन्य की उपस्थिति में सार्वजनिक किए गए थे. चौधरी ने इस प्रक्रिया को ‘ऐतिहासिक’ करार दिया और आंकड़ों के ‘प्रमाणिक’ होने का दावा किया. उन्होंने राज्य में विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा सत्तारूढ़ ‘महागठबंधन’ पर राजनीतिक हित के लिए आंकड़ों में ‘हेरफेर’ करने के आरोपों का खंडन करते हुए कहा,”हमें याद रखना चाहिए कि किसी जाति की जनसंख्या प्रतिशत में वृद्धि कोई उपलब्धि नहीं है. इसी तरह प्रतिशत में गिरावट का मतलब नुकसान नहीं है.”

मंत्री ने विभिन्न आधारों पर सर्वेक्षण को चुनौती देने के पटना उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में पूर्व में दायर किए गए मुकदमों पर भी नाराजगी व्यक्त की. हालांकि, शीर्ष अदालत ने प्रक्रिया को ‘वैध’ करार दिया था. मंत्री ने भारत के सॉलिसिटर जनरल द्वारा सर्वेक्षण को लेकर जताई गई चिंता का संदर्भ देते हए परोक्ष रूप से केंद्र सरकार पर कटाक्ष किया.

उन्होंने इस अवसर पर यह भी दोहराया कि इस मांग को लेकर बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों द्वारा सर्वसम्मति से पारित दो प्रस्तावों और मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से व्यक्तिगत अनुरोध के बावजूद जाति सर्वेक्षण करने के प्रति केंद्र ने अनिच्छा जताई जिसके राज्य सरकार ने अपने स्तर पर सर्वेक्षण करवाया.

उन्होंने यह भी कहा कि सर्वेक्षण के निष्कर्षों ने कई सकारात्मक पहलुओं का संकेत मिला है. उन्होंने कहा कि साक्षरता की दर में सुधार हुआ है और यह 2011 की जनगणना के अनुसार 69.8 प्रतिशत से बढ़कर 79.8 प्रतिशत हो गई और महिलाओं ने शिक्षा के मामले में अपेक्षाकृत लंबी छलांग लगाई हैं.

मंत्री ने कहा, इसमें आश्चर्य की बात नहीं है कि राज्य में लिंगानुपात में भी सुधार हुआ है, जहां प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 918 से बढ़कर 953 हो गयी है. रिपोर्ट के अन्य महत्वपूर्ण निष्कर्षों के अनुसार 50 लाख से अधिक बिहारवासी आजीविका या बेहतर शिक्षा के अवसरों की तलाश में राज्य से बाहर रह रहे हैं. बिहार के बाहर दूसरे राज्यों में जीविकोपार्जन करने वालों की संख्या लगभग 46 लाख है जबकि अन्य 2.17 लाख लोग विदेशों में रह रहे हैं.

दूसरे राज्यों में पढ़ाई करने वालों की संख्या लगभग 5.52 लाख है जबकि लगभग 27,000 विदेश में भी पढ़ाई कर रहे हैं. रिर्पोट के प्रारंभिक निष्कर्षों के मुताबिक राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की राज्य की कुल आबादी में हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से अधिक है जबकि सवर्ण जातियों की आबादी में हिस्सेदारी करीब 10 प्रतिशत है.

बिहार विधानसभा के समक्ष पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में सवर्ण जातियों के बीच गरीबी की दर (25 प्रतिशत से अधिक) अधिक है. हिंदू समुदाय में सबसे समृद्ध सवर्ण जाति संख्यात्मक रूप से छोटे कायस्थ हैं. बड़े पैमाने पर शहरीकृत समुदाय के केवल 13.83 प्रतिशत परिवार गरीब हैं. रिपोर्ट के मुताबिक भूमिहार समुदाय में आश्चर्यजनक रूप से गरीबी दर 27.58 प्रतिशत दर्ज की गई जबकि माना जाता है कि बिहार में सबसे अधिक भूमि इसी समुदाय के पास है. इस सर्वेक्षण के प्रारंभिक निष्कर्षों के मुताबिक यादव सबसे प्रमुख ओबीसी समूह है जिसकी कुल आबादी में 14 प्रतिशत हिस्सेदारी है. 1931 की जनगणना में विभिन्न सामाजिक वर्गों की गणना की गई थी और तब से सबसे अधिक आबादी वाले समुदाय के रूप में उनकी स्थिति बरकरार है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को बिहार की नीतीश कुमार सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि वह ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ के तहत राज्य के जाति सर्वेक्षण में जानबूझकर मुस्लिमों और यादवों की आबादी बढ़ाकर दिखा रही है. शाह ने नीतीश पर अपने सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद के दबाव में काम करने का आरोप लगाया. इन दोनों समुदायों को लालू प्रसाद का प्रबल समर्थक माना जाता है.

रिपोर्ट में प्रस्तुत विवरण में कहा गया है कि राजनीतिक रूप से आगे बढ़ने के बावजूद यादव काफी हद तक गरीबी से उबर नहीं पाए हैं और समुदाय के 35 प्रतिशत से अधिक लोग गरीब हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से आते हैं और सर्वेक्षण के मुताबिक उनकी आबादी में करीब 30 प्रतिशत लोग गरीब हैं. सर्वेक्षण में मुसलमानों के बीच जाति विभाजन को भी ध्यान में रखा गया जो कुल मिलाकर राज्य की आबादी का 17 प्रतिशत से अधिक है. सैय्यद में गरीबी की दर सबसे कम 17.61 प्रतिशत है. सर्वेक्षण के मुताबिक अनुसूचित जातियों में 42.91 प्रतिशत परिवार गरीब हैं जबकि अनुसूचित जनजातियों में गरीबों की संख्या 42.78 प्रतिशत हैं.

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