कांग्रेस पर सीतारमण का कटाक्ष: ”मेरी हिंदी भी एंटरटेनिंग है, थोड़ा सुनिए”

केंद्र सरकारी कामकाज में अंग्रेजी, अन्य क्षेत्रीय भाषाओं पर हिंदी थोप रहा : तृणमूल सांसद

नयी दिल्ली. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को लोकसभा में अर्थव्यवस्था पर श्वेतपत्र को चर्चा के लिए प्रस्तुत करते समय कांग्रेस को आड़े हाथ लिया और हंगामा कर रहे विपक्षी सदस्यों पर कटाक्ष करते हुए कहा, ”मेरी हिंदी भी एंटरटेनिंग है, थोड़ा सुन लीजिए.” सीतारमण ने जब श्वेतपत्र का ब्योरा प्रस्तुत करते हुए पूर्ववर्ती संप्रग सरकार की नीतियों की आलोचना की तो बीच-बीच में कांग्रेस के सदस्य हंगामा कर रहे थे.

वित्त मंत्री ने कहा, ”अगर उनमें (कांग्रेस सदस्यों में) साहस है और यदि इन्होंने अच्छा काम किया है तो सुनना चाहिए और जवाब देना चाहिए. सुनने की क्षमता नहीं है. फिर भी मैं छोड़ूंगी नहीं, मैं अपनी बात करुंगी.” उन्होंने कहा, ”वैश्विक आथिक संकट को तो नहीं  संभाल सके, आज ज्ञान दे रहे है कि किस तरह संभालना है. उस समय क्या करना चाहिए था, कुछ नहीं किया. घोटाले के ऊपर घोटाले आते रहे. देश को ऐसी गंभीर अवस्था में छोड़कर चले गए भगवान जाने, अगर इनकी (कांग्रेस की) सरकार बनी रहती तो देश का क्या हाल होता.” इस दौरान सदन में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी उपस्थित थीं.

सदन में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी समेत अन्य सदस्यों की टोका-टोकी के बीच सीतारमण ने कहा, ”मैं हिंदी और अंग्रेजी दोनों में बोल रही हूं. मेरी हिंदी भी एंटरटेनिंग है. थोड़ा सुनिए. पूर्व अध्यक्ष बैठी हैं, उन्हें इम्प्रेस करना है कि मैडम हम बचाव कर रहे हैं.” उन्होंने कहा कि कांग्रेस के सदस्य कई प्रश्न उठाते हैं तो हम तसल्ली से सुनते हैं, लेकिन जब सरकार जवाब देती है तो विपक्षी सदस्य या तो वाकआउट करते हैं या शोर-शराबा करते हैं.

केंद्र सरकारी कामकाज में अंग्रेजी, अन्य क्षेत्रीय भाषाओं पर हिंदी थोप रहा : तृणमूल सांसद

नयी दिल्ली, नौ फरवरी (भाषा) तृणमूल कांग्रेस के नेता साकेत गोखले ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र सरकार सरकारी कामकाज में अंग्रेजी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं पर हिंदी थोप रही है और यह संघीय ढांचे के खिलाफ है. राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए गोखले ने मांग की कि सरकारी कामकाज के लिए अंग्रेजी का इस्तेमाल होना चाहिए. तृणमूल कांग्रेस के सदस्य ने कहा कि मेघालय विधानसभा के मौजूदा बजट सत्र की शुरुआत में घोषणा की गई थी कि राज्यपाल सदन में अपना अभिभाषण हिंदी में देंगे.

उन्होंने कहा कि मेघालय में भाजपा नेताओं ने यह कहते हुए इस घोषणा का समर्थन किया कि हिंदी राष्ट्रीय भाषा है. गोखले ने कहा कि मेघालय राज्य की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है. उन्होंने आरोप लगाया, ”मेघालय के राज्यपाल द्वारा राज्य की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी के बजाय हिंदी में विधानसभा को संबोधित करने का चयन कुछ और नहीं बल्कि हिंदी को खुल्लम-खुल्ला थोपा जाना है और मेघालय के भाषाई गौरव को कमतर करने का प्रयास है.” गोखले ने कहा कि सरकार ने हाल ही में संसद में तीन नए आपराधिक कानून पारित किए हैं और इन कानूनों को हिंदी में बहुत जटिल नाम दिए गए हैं.

उन्होंने कहा, ”मैं सदन को याद दिला दूं कि उत्तर भारत के बाहर हिंदी करोड़ों भारतीयों की मूल भाषा नहीं है.” गोखले ने कहा, ”हमारे संविधान ने हिंदी के साथ अंग्रेजी को भी आधिकारिक भाषा के रूप में बनाए रखने का विकल्प चुना.” उन्होंने आरोप लगाया, ”हालांकि, मौजूदा सरकार द्वारा हिंदी को जबरन पूरे भारत पर थोपने का प्रयास शर्मनाक है, जो मुश्किल से 46 प्रतिशत आबादी द्वारा बोली जाती है.” उन्होंने कहा कि स्थानीय भाषाओं के लिए कोई सम्मान नहीं है और हर नया कानून, हर नया नाम जो यह सरकार देती है वह हिंदी में होता है.

उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि क्या पश्चिम, दक्षिण और पूर्व की भाषाएं इस देश में महत्वपूर्ण नहीं हैं और क्या क्षेत्रीय भाषाओं का कोई मतलब नहीं है? गोखले ने आग्रह किया कि सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का इस्तेमाल होना चाहिए जिसका विस्तार गैर-हिंदी भाषी राज्यों सहित पूरे भारत में हो. उन्होंने कहा, ”जब हमारा संविधान हिंदी और अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा बनाना अनिवार्य करता है, ऐसे में सरकार द्वारा अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं पर हिंदी को थोपना संघीय ढांचे का अपमान है.” उनकी टिप्पणी के बाद, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने गोखले से कहा कि उन्होंने संविधान के तहत शपथ ली है.

सभापति ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 351 में यह प्रावधान है कि हिंदी भाषा के प्रसार को बढ.ावा देना संघ का कर्तव्य होगा.
धनखड़ ने गोखले से कहा कि उन्होंने संविधान के तहत इन प्रावधानों की अनदेखी की. उन्होंने कहा, ”हमारे यहां बहुत समृद्ध भाषाओं की संस्कृति है. हमें अपनी भाषाओं पर गर्व है. हमारी भाषाओं का वैश्विक प्रभाव भी है. उनकी महान संस्कृति है. मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि हमें सहमति से ही रुख अपनाना चाहिए.”

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