श्रीलंका में मानवाधिकार उल्लंघन, आर्थिक अपराधों के लिए ‘दंडमुक्ति’ के कारण संकट : संरा रिपोर्ट

जिनेवा/कोलंबो. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रीलंका अपने राजनीतिक जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है तथा अतीत एवं वर्तमान में मानवाधिकार हनन, आर्थिक अपराध और भ्रष्टाचार के लिए ‘‘दंड मुक्ति’’ द्वीपीय देश की खराब स्थिति के कारण हैं. मंगलवार को जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में मौजूदा चुनौतियों से निपटने और अतीत के मानवाधिकारों के उल्लंघन की पुनरावृत्ति से बचने के लिए बुनियादी बदलावों का सुझाव भी दिया गया है.

यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 51वें सत्र से पहले आयी है जिसका आयोजन 12 सितंबर से 7 अक्टूबर तक जिनेवा में होना है. उक्त सत्र में श्रीलंका पर एक प्रस्ताव पेश किए जाने की उम्मीद है. यह पहली बार है जब संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष निकाय ने आर्थिक संकट को श्रीलंका के मानवाधिकार उल्लंघनों से जोड़ा है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘स्थायी सुधार के लिए उन अंर्तिनहित कारकों को दूर करने के वास्ते पहचानना और उनके समाधान के लिए श्रीलंका की मदद जरूरी है जो इस संकट के लिए जिम्मेदार हैं. इनमें अतीत और वर्तमान मानवाधिकारों के हनन, आर्थिक अपराध और भ्रष्टाचार के लिए अंर्तिनहित दंडमुक्ति शामिल हैं.’’ इसमें कहा गया है कि जवाबदेही और लोकतांत्रिक सुधारों के लिए श्रीलंका के सभी समुदायों के लोगों की व्यापक मांगों ने ‘‘भविष्य की एक नयी राह और आम दृष्टि के लिए एक महत्वपूर्ण आरंभ ंिबदु’’ प्रस्तुत किया.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘मौजूदा चुनौतियों से निपटने और अतीत के मानवाधिकारों के उल्लंघन की पुनरावृत्ति से बचने के लिए मौलिक परिवर्तनों की आवश्यकता होगी.’’ संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट रानिल विक्रमंिसघे के नेतृत्व वाली सरकार से आ’’ान करती है कि वह कठोर सुरक्षा कानूनों पर निर्भरता और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई तुरंत समाप्त करें, सैन्यीकरण की ओर झुकाव को खत्म करें और सुरक्षा क्षेत्र में सुधार और दंड से मुक्ति के लिए नये सिरे से प्रतिबद्धता दिखाएं.

जुलाई में, पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के देश से भाग जाने और सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को ठीक तरीके से नहीं संभालने को लेकर सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद आपातकाल लागू कर दिया गया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि सुरक्षा बलों ने हाल के विरोध प्रदर्शनों पर काफी संयम दिखाया, लेकिन श्रीलंकाई सरकार ने आतंकवाद रोधी अधिनियम (पीटीए) के तहत कुछ छात्र नेताओं को गिरफ्तार करने और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों को ंिहसक रूप से दबाने के लिए सख्त रुख अपनाया है.

‘‘2019 ईस्टर संडे’’ बम विस्फोटों के बारे में सच्चाई का पता लगाने में प्रगति नहीं होने पर ंिचता व्यक्त करते हुए पीड़ितों और उनके प्रतिनिधियों की पूर्ण भागीदारी के साथ स्वतंत्र और पारदर्शी जांच का आ’’ान भी रिपोर्ट में किया गया है. आईएसआईएस से जुड़े स्थानीय इस्लामी चरमपंथी समूह नेशनल तौहीद जमात से जुड़े नौ आत्मघाती हमलावरों ने 21 अप्रैल 2019 को ईस्टर रविवार को श्रीलंका में तीन चर्चों और कई लग्जरी होटलों में सिलसिलेवार विस्फोट किए थे जिसमें 11 भारतीयों सहित 258 लोगों की मौत हो गई थी और 500 से अधिक घायल हो गए थे.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘श्रीलंका की विभिन्न सरकारें घोर मानवाधिकार उल्लंघन और हनन के अपराधियों को जवाबदेह ठहराने के वास्ते प्रभावी न्याय प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में लगातार विफल रही हैं.’’ रिपोर्ट में श्रीलंका की सरकार से उन लोगों को लक्षित करने के लिए और उपायों का पता लगाने का आग्रह किया गया है जिन पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के घोर उल्लंघन या अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून के गंभीर उल्लंघन के लिए जिम्मेदार होने का आरोप लगाया गया है. श्रीलंका 1948 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है, जो विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी के कारण उत्पन्न हुआ.

श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने गत सोमवार को कहा था कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के आगामी सत्र में श्रीलंका अपनी मानवाधिकार जवाबदेही पर एक नये प्रस्ताव, विशेष रूप से एक बाहरी जांच तंत्र का विरोध करेगा.
साबरी ने कहा था कि श्रीलंका मानवाधिकारों के हनन की जांच के लिए एक बाहरी तंत्र के लिए सहमत नहीं है, क्योंकि यह देश के संविधान का उल्लंघन होगा.

साबरी ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 51वें सत्र के आयोजन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कानून मंत्री विजयदासा राजपक्षे उसमें सरकार का प्रतिनिधित्व करेंगे. उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘हम मानवाधिकार आयोग के जांच तंत्र का विरोध करेंगे, क्योंकि यह हमारे संविधान के खिलाफ है.’’ श्रीलंका पर एक संभावित मसौदा प्रस्ताव 23 सितंबर को पेश किए जाने की उम्मीद है. इसके बाद 6 अक्टूबर को नये मसौदा प्रस्ताव पर सदस्य देशों के बीच मतदान होगा. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार निकाय ने 2013 से युद्ध अपराधों के लिए मानवाधिकारों की जवाबदेही का आ’’ान करते हुए कई प्रस्ताव पारित किये हैं, जिनमें सरकारी सैनिकों और लिट्टे समूह पर आरोप हैं.

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