राष्ट्र-विरोधी विमर्श को खत्म करने के लिए माहौल तैयार करने की जरूरत है: धनखड़

तमाम अपमान, अनादर सहने के बावजूद सेवा के रास्ते से नहीं हटना चाहिए: धनखड़

नोएडा. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि संस्थानों और उच्च संवैधानिक पदों को बदनाम करने के लिए फैलाए जाने वाले राष्ट्र-विरोधी विमर्श को खत्म करने के लिए “माहौल तैयार करने” की जरूरत है. ग्रेटर नोएडा में गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए धनखड़ ने इस बात दुख जताया, “हमारे एक सांसद ने हार्वर्ड जाकर कहा कि भारत का लोकतंत्र खतरे में है.” उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां सत्ता का हस्तांतरण चुनाव के जरिए होता है और वहां कभी कोई समस्या नहीं आई.

धनखड़ ने कहा कि मशीन में वोट डालने के बाद नतीजे की घोषणा निर्वाचन आयोग करता है तब निर्णय की सार्वभौमिक स्वीकृति होती है लेकिन फिर “वे हार्वर्ड जाते हैं और यह कहते हैं.” उपराष्ट्रपति ने कहा, “हमें ऐसा माहौल तैयार करना होगा कि रणनीति के तहत संस्थानों, उच्च संवैधानिक पदों को बदनाम करने के लिए राष्ट्रविरोधी विमर्श फैलाए जाते हैं, तो उन्हें खत्म किया जाना चाहिए.” धनखड़ ने कहा, ” मैं आपको को बता दूं कि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां ग्राम स्तर पर, पंचायत स्तर पर, जिला स्तर पर, राज्य स्तर पर और केंद्रीय स्तर पर संवैधानिक रूप से लोकतंत्र का ढांचा है.”

उपराष्ट्रपति ने अतीत के भारत और वर्तमान के भारत की तुलना करते हुए कहा, “आज का भारत किसी के कब्जे में नहीं है. विदेशी मामलों में भारत की अपनी सोच है. हमारी आवाज सुनी जा रही है. हमारे पासपोर्ट के पास वह सम्मान है जिसकी हमने कभी कल्पना नहीं की थी. हम सख्त कदम उठाने की स्थिति में हैं.” उन्होंने कहा, “लेकिन लोगों को गौतम बुद्ध की शिक्षाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए.” उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसने अपने क्षेत्र का विस्तार करने की कोशिश नहीं की है बल्कि आक्रमणों को झेला है.

धनखड़ ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री ने दुनिया को संदेश दिया है कि यह विस्तार का युग नहीं है, युद्ध का युग नहीं है. उन्होंने कहा, “मुद्दों को कूटनीति और बातचीत से तय किया जाना चाहिए.” उपराष्ट्रपति ने कहा कि मुट्ठी भर लोग भारत के विकास और लोकाचार को कमजोर करना चाहते हैं और युवाओं को ऐसे मुद्दों पर चुप नहीं रहना चाहिए.

उन्होंने कहा, ” खामोशी आपके कानों में हमेशा गूंजती रहेगी. इसलिए, अपने दिमाग का उपयोग करें, अपने विवेक का उपयोग करें, इसके बारे में निर्णय लें और फिर सही कदम उठाएं.” धनखड़ ने कहा, ” हमें भारतीयता पर अटूट विश्वास है. हम हमेशा देश के हित को हर चीज से ऊपर रखेंगे. हम भारत के गौरवान्वित नागरिक हैं.” धनखड़ ने निवेश, कानून और व्यवस्था के मामले में उत्तर प्रदेश में हो रहे आमूल चूल बदलाव के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा की. धनखड़ ने कहा कि आदित्यनाथ ने जिस तरह से विकास और औद्योगिक प्रगति के प्रति कार्य किया है उससे उत्तर प्रदेश ‘आदर्शों का आदर्श’ बनने की स्थिति में पहुंचा गया है.

उपराष्ट्रपति ने कहा, “देश की बात छोड़िए दुनिया में कोई बात होती है ‘रोल मॉडल’ की तो मुख्यमंत्री को याद किया जाता है.” धनखड़ ने कहा कि उत्तर प्रदेश ने निवेश प्राप्त करने में भी अपनी पहचान बनाई है. आदित्यनाथ, राज्य के मंत्री नंद गोपाल गुप्ता, ब्रिजेश सिंह और गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों की उपस्थिति में धनखड़ ने कहा, “यह प्रीमियम श्रेणी में भी निवेश के लिए एक पसंदीदा स्थान बन गया है. आम निवेशक पहले से ही यहां आ रहे थे.” उपराष्ट्रपति बनने से पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल को याद करते हुए धनखड़ ने कहा कि वह उस राज्य में तीन दर्जन विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति थे.

उन्होंने कहा, “मुझे पता है कि कुछ जगहों पर कुलाधिपति के साथ क्या हो सकता है. मुझे पंजाब विश्वविद्यालय जैसी कुछ जगहों पर भी सेवा करने का सौभाग्य भी मिला है.” धनखड़ ने कहा, “लेकिन मैं कह सकता हूं कि यह दीक्षांत समारोह अद्वितीय है क्योंकि इसमें विकास, आत्मविश्वास और सभ्यतागत लोकाचार जैसे आयाम हैं जहां हमारी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखने, शारीरिक रूप से फिट रहने की बात की गई है.” धनखड़ ने आदित्यनाथ की प्रशंसा करते हुए कहा, “माननीय मुख्यमंत्री ने मेरे दिल का एक हिस्सा और मेरे संबोधन का एक हिस्सा चुरा लिया है.” उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने सोचा था कि जब मुख्यमंत्री बोलेंगे तो वह एक राजनीतिक नेता की तरह बात करेंगे लेकिन उन्होंने एक “आध्यात्मिक नेता, शिक्षाविद्, राजनेता और दूरदर्शी व्यक्ति की तरह छात्रों से बात की.”

तमाम अपमान, अनादर सहने के बावजूद सेवा के रास्ते से नहीं हटना चाहिए: धनखड़

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को खुद को ”पीड़ित” बताते हुए कहा कि तमाम अपमान सहने के बावजूद किसी को सेवा के रास्ते से कभी नहीं हटना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि किसी को भी दूसरों के दृष्टिकोण को जगह देनी चाहिए लेकिन जब दूसरों को उनके रास्ते से हटाने के इरादे से विचार प्रस्तुत किए जाते हैं तो लोगों को अपनी ”रीढ़ की ताकत” दिखानी चाहिए.

यहां भारतीय सांख्यिकी सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों के एक समूह को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि वह उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति हैं, लेकिन लोग ‘मुझे भी नहीं छोड़ते.’ उन्होंने कहा, ”क्या मुझे अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए? नहीं. क्या इससे रास्ता भटक जाना चाहिए? नहीं.” उपराष्ट्रपति की टिप्पणी संसद के हाल में समाप्त हुए शीतकालीन सत्र के दौरान सदन में व्यवधान और राज्यसभा से विपक्षी सदस्यों के बड़े पैमाने पर निलंबन की पृष्ठभूमि में आई है. विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि असहमति की आवाज को दबाया जा रहा है, वहीं धनखड़ ने कहा कि सदन में गतिरोध को हल करने के लिए बातचीत के सभी प्रयास विफल होने के बाद यह (निलंबन का) आखिरी कदम है.

धनखड़ ने यह भी कहा कि युवा अधिकारियों के रूप में उन्हें देश के विकास के प्रति उन लोगों से कभी डरना नहीं चाहिए जिनका हाजमा खराब है. उन्होंने कहा, ”मैं पीड़ित हूं. पीड़ित जानता है कि अंदर से कैसे झेलना है. सभी अपमान, सभी अनादर को झेल लें- हम भारत माता की सेवा में हैं. आपको ईमानदारी और उच्च मानक दिखाने होंगे.” खुद को पीड़ित बताते हुए धनखड़ परोक्ष रूप से उस घटना का जिक्र कर रहे थे, जहां संसद के नए भवन की सीढि.यों पर लोकसभा के एक विपक्षी सदस्य ने उनकी नकल की थी.

उपराष्ट्रपति ने प्रशिक्षु अधिकारियों को बताया कि महिला आरक्षण विधेयक तीन दशकों तक लंबित रहने के बाद संसद द्वारा लगभग सर्वसम्मति से पारित किया गया. उन्होंने कहा, ”इसका मतलब है कि हमारे पास बातचीत की संस्कृति है…टकराव में शामिल न हों, सहयोग करें. देश सभी का है. सभी का विकास एक साथ होगा-यह नया आदर्श है.”

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