समान नागरिक संहिता है आदिवासियों के अस्तित्व के लिए खतरा: छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज

रायपुर. छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय की संस्था ‘छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज (सीएसएएस)’ ने मंगलवार को कहा कि केंद्र सरकार को समान नागरिक संहिता लाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे उन जनजातियों का अस्तित्व खतरे में आ जाएगा जिनके पास अपने समाज पर शासन करने के लिए अपने स्वयं के पारंपरिक नियम हैं. सीएसएएस के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि उनके संगठन को समान नागरिक संहिता पर पूरी तरह से आपत्ति नहीं है, लेकिन केंद्र को इसे लाने से पहले सभी को विश्वास में लेना चाहिए.

हालांकि उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज में समान नागरिक संहिता लागू करना अव्यावहारिक लगता है. नेताम ने कहा कि भारत के विधि आयोग ने देश में समान नागरिक संहिता के लिए सुझाव आमंत्रित किया है तथा सर्व आदिवासी समाज ने अपने सामाजिक रूढि. प्रथा के अनुरूप अपना मत रखा है. उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता में जन्म, विवाह और संपत्ति के लिए समान कानून बनाने का प्रस्ताव है जबकि आदिवासी समाज के लगभग सभी रीति रिवाज, परंपराएं सामुदायिक और कुल की होती हैं.

उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज अपने जन्म, विवाह, तलाक, विभाजन, उत्तराधिकारी, विरासत और जमीन संपत्ति के मामलों में प्रथागत या रूढि.विधि (कस्टमरी लॉ) से संचालित है और यही उसकी पहचान है जो उसे बाकी जाति, समुदाय और धर्म से अलग करती है.

नेताम ने कहा कि आदिवासियों के प्रथागत कानून को संविधान के अनुच्छेद 13(3)(क) के तहत कानून का बल प्राप्त है. उन्होंने कहा कि आदिवासियों को संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची तथा पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम के तहत कई अधिकार प्राप्त हैं. उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता आदिवासी समाज की सदियों से चली आ रहे विशिष्ट रीति-रिवाज और परंपराओं को प्रभावित करेगा, जिसके परिणामस्वरूप आदिवासियों की पहचान और अस्तित्व पर खतरा मंडराएगा.

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ”केंद्र को समान नागरिक संहिता लाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए.इससे पहले उसे इसके मसौदे को सभी के सामने रखना चाहिए और आदिवासी समूहों के साथ चर्चा करनी चाहिए तथा उन्हें विश्वास में लेना चाहिए.” उन्होंने कहा कि उनका संगठन मध्य भारत के अन्य राज्यों के आदिवासी समूहों के संपर्क में है जिससे वे ऐसे किसी भी कानून के खिलाफ सामूहिक रूप से आवाज उठा सकें जो उनके रीति-रिवाजों और परंपराओं के लिए खतरा है.

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