केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की सिफारिश स्वीकार की

'एक देश, एक चुनाव': 32 राजनीतिक दलों ने प्रस्ताव का समर्थन किया, 15 ने किया विरोध

नयी दिल्ली. अपनी “एक राष्ट्र, एक चुनाव” योजना पर आगे बढ़ते हुए सरकार ने बुधवार को देशव्यापी आम सहमति बनाने की कवायद के बाद चरणबद्ध तरीके से लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया. सरकार का कहना है कि कई राजनीतिक दल पहले से ही इस मुद्दे पर सहमत हैं. उसने कहा कि देश की जनता से इस मुद्दे पर मिल रहे व्यापक समर्थन के कारण वह दल भी रुख में बदलाव का दबाव महसूस कर सकते हैं जो अब तक इसके खिलाफ हैं.

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मिली मंजूरी की जानकारी हुए कहा कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों को आगे बढ़ाने के लिए एक क्रियान्वयन समूह का गठन किया जाएगा और अगले कुछ महीनों में देश भर के विभिन्न मंचों पर विस्तृत चर्चा की जाएगी. पत्रकारों द्वारा यह पूछे जाने पर कि सिफारिशें कब लागू की जा सकेंगी और क्या संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में कोई विधेयक लाया जाएगा, वैष्णव ने सीधा जवाब देने से परहेज किया लेकिन कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि सरकार अपने मौजूदा कार्यकाल में इसे लागू करेगी.

उन्होंने कहा कि विचार-विमर्श पूरा होने के बाद, कार्यान्वयन चरणों में किया जाएगा और सरकार का प्रयास अगले कुछ महीनों में आम सहमति बनाने का होगा. उन्होंने कहा कि एक बार परामर्श प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद सरकार एक विधेयक का मसौदा तैयार करेगी, उसे मंत्रिमंडल के समक्ष रखेगी और तत्पश्चात एक साथ चुनाव कराने के लिए उसे संसद में ले जाएगी.

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर गठित उच्च स्तरीय समिति ने लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले मार्च में रिपोर्ट सौंपी थी. समिति ने ह्लएक राष्ट्र, एक चुनावह्व को दो चरणों में लागू करने की सिफारिश की– पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने और उसके बाद दूसरे चरण में आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव. समिति ने भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा राज्य निर्वाचन प्राधिकारियों से विचार-विमर्श कर एक साझा मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र बनाने की भी सिफारिश की.

अभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की जिम्मेदारी भारत के निर्वाचन आयोग की है जबकि नगर निगमों और पंचायतों के लिए स्थानीय निकाय चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग कराते हैं. समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होगी. हालांकि, इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की आवश्यकता होगी जिन्हें संसद द्वारा पारित करने की जरूरत होगी.

एक मतदाता सूची और एक मतदाता पहचान पत्र के संबंध में कुछ प्रस्तावित संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी. इसके अलावा, विधि आयोग भी एक साथ चुनाव कराने पर अपनी रिपोर्ट जल्द ही पेश कर सकता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रबल समर्थक रहे हैं.

सूत्रों ने कहा कि विधि आयोग सरकार के तीन स्तरों – लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं तथा पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए 2029 से एक साथ चुनाव कराने और त्रिशंकु सदन जैसे मामलों में एकता सरकार बनाने के प्रावधान की सिफारिश कर सकता है.

देश में 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए थे, लेकिन उसके बाद मध्यावधि चुनाव सहित विभिन्न कारणों से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे. सभी चुनाव एक साथ कराने के लिए काफी प्रयास करने होंगे, जिसमें कुछ चुनावों को पहले कराना तथा कुछ को विलंबित करना शामिल है. इस वर्ष मई-जून में लोकसभा चुनाव हुए, जबकि ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी संसदीय चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव हुए. जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव प्रक्रिया अभी चल रही है, जबकि महाराष्ट्र और झारखंड में भी इस वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं. दिल्ली और बिहार उन राज्यों में शामिल हैं जहां 2025 में चुनाव होने हैं.

असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी की मौजूदा विधानसभाओं का कार्यकाल 2026 में समाप्त होगा, जबकि गोवा, गुजरात, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की विधानसभाओं का कार्यकाल 2027 में समाप्त होगा. हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और तेलंगाना में राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2028 में समाप्त होगा. वर्तमान लोकसभा और इस वर्ष एक साथ चुनाव में शामिल राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 में समाप्त होगा.

‘एक देश, एक चुनाव’: 32 राजनीतिक दलों ने प्रस्ताव का समर्थन किया, 15 ने किया विरोध 

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा बुधवार को स्वीकार की गई समिति की रिपोर्ट के अनुसार ‘एक देश, एक चुनाव” पर उच्च स्तरीय समिति ने 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया था जिनमें से 47 ने जवाब दिया. इनमें से 32 ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया और 15 ने इसका विरोध किया.

अपनी ह्लएक देश, एक चुनावह्व योजना पर आगे बढ.ते हुए सरकार ने बुधवार को देशव्यापी आम सहमति बनाने की कवायद के बाद चरणबद्ध तरीके से लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि पंद्रह राजनीतिक दलों ने कोई जवाब नहीं दिया.

राष्ट्रीय दलों में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने प्रस्ताव का विरोध किया जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने इसका समर्थन किया. रिपोर्ट में कहा गया है, ”47 राजनीतिक दलों से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं. पंद्रह राजनीतिक दलों को छोड़कर शेष 32 राजनीतिक दलों ने न केवल एक साथ चुनाव की प्रणाली का समर्थन किया, बल्कि सीमित संसाधनों को बचाने, सामाजिक सद्भाव की रक्षा करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए इसे अपनाने की वकालत भी की.” इसमें कहा गया है, ”एक साथ चुनाव का विरोध करने वालों ने आशंका जताई थी कि इसे अपनाने से संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन हो सकता है, यह लोकतंत्र और संघीय व्यवस्था विरोधी हो सकता है, इससे क्षेत्रीय दलों को हाशिए पर डाला जा सकता है और राष्ट्रीय दलों के प्रभुत्व को बढ.ावा मिल सकता है.”

मार्च में समिति द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार, ‘आप’, कांग्रेस और माकपा ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह लोकतंत्र और संविधान के मूल ढांचे को कमजोर करता है. बसपा ने इसका स्पष्ट रूप से विरोध नहीं किया, लेकिन देश के बड़े क्षेत्रीय विस्तार और जनसंख्या के संबंध में चिंताओं को उजागर किया, जिससे इसका कार्यान्वयन चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

समाजवादी पार्टी (सपा) ने कहा कि यदि एक साथ चुनाव कराए जाते हैं तो जहां तक ??चुनावी रणनीति और खर्च का सवाल है तो राज्य स्तरीय पार्टियां राष्ट्रीय पार्टियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगी, जिससे इन दोनों दलों के बीच मतभेद बढ. जाएगा.
राज्य की पार्टियों में एआईयूडीएफ, तृणमूल कांग्रेस, एआईएमआईएम, भाकपा, द्रमुक, नगा पीपुल्स फ्रंट और सपा ने प्रस्ताव का विरोध किया.

अन्नाद्रमुक, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, अपना दल (सोनेलाल), असम गण परिषद, बीजू जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी (आर), मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, शिवसेना, जनता दल (यूनाइटेड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल ने प्रस्ताव का समर्थन किया.

भारत राष्ट्र समिति, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, जनता दल (सेक्युलर), झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, तेलुगु देशम पार्टी और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी समेत अन्य दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

अन्य दलों में भाकपा (एमएल) लिबरेशन और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ने इसका विरोध किया. राष्ट्रीय लोक जनता दल, भारतीय समाज पार्टी, गोरखा नेशनल लिबरल फ्रंट, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जन शक्ति पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) इसका विरोध करने वालों में शामिल थे.

तीन उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने ‘एक देश, एक चुनाव’ का विरोध किया : कोविंद रिपोर्ट

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा विचार-विमर्श के दौरान ‘एक देश, एक चुनाव’ के विचार पर आपत्ति जताने वालों में तीन उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और एक पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त भी शामिल थे.
कोविंद समिति की रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने हालांकि उच्चतम न्यायालय के जिन चार पूर्व प्रधान न्यायाधीशों-न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोब्डे और न्यायमूर्ति यूयू ललित से परामर्श किया था, उन्होंने लिखित जवाब दिए जो एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में थे.

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह ने एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा का विरोध किया था और कहा था कि इससे लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति पर अंकुश लग सकता है, साथ ही विकृत मतदान पैटर्न और राज्य स्तरीय राजनीतिक बदलावों की चिंता भी बढ़ गई है. खबर में कहा गया, “इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से राजनीतिक जवाबदेही में बाधा आती है, क्योंकि निश्चित कार्यकाल प्रतिनिधियों को प्रदर्शन की जांच के बिना अनुचित स्थिरता प्रदान करता है, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों को चुनौती देता है.” कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गिरीश चंद्र गुप्ता ने एक साथ चुनाव कराने का विरोध करते हुए कहा कि यह विचार लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है.

रिपोर्ट में कहा गया, “मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव बनर्जी ने एक साथ चुनाव कराने का विरोध किया, क्योंकि उन्हें चिंता थी कि इससे भारत का संघीय ढांचा कमजोर होगा और क्षेत्रीय मुद्दों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.” इसमें कहा गया है, “उन्होंने अनुभवजन्य आंकड़ों का हवाला देते हुए राज्यों में बार-बार मध्यावधि चुनाव होने की बात कही और लोगों को उनकी पसंद का नेता चुनने की अनुमति देने के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने भ्रष्टाचार और अक्षमता से निपटने के लिए चुनावों को राज्य द्वारा वित्तपोषित किए जाने को अधिक प्रभावी सुधार बताया.” समिति ने जिन चार पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्तों से विमर्श किया, उन सभी ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया.

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