देश की सामरिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए लगातार कर रहे हैं काम : राजनाथ

बेंगलुरू. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बृहस्पतिवार को कहा कि हाल के समय में देश की रक्षा जरूरतें काफी बढ़ी हैं और भारत अपनी सामरिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए लगातार काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक समीकरण बदल रहे हैं और वर्तमान समय में विश्व की प्रमुख शक्तियां आपस में उलझी हुई हैं.

रक्षा मंत्री ने कहा, ‘‘पहले की अपेक्षा हमारी रक्षा जरूरतें भी बढ़ी हैं और सशस्त्र बलों का निरंतर आधुनिकीकरण समय की मांग है. खुद को तैयार रखना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है और हम अपनी सामरिक एवं रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं.” सिंह ने कर्नाटक में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की प्रयोगशाला वैमानिकी विकास प्रतिष्ठान (एडीई) में सात मंजिला उड़ान नियंत्रण प्रणाली (एफसीएस) एकीकृत सुविधा केंद्र के शुभारंभ के अवसर पर यह बात कही. भारत के प्रमुख रक्षा अनुसंधान संस्थान डीआरडीओ ने रिकॉर्ड 45 दिनों में इस केंद्र का निर्माण किया है.

रक्षा मंत्री ने कहा कि यह न सिर्फ देश के लिए, बल्कि विश्व के लिए एक विशेष परियोजना है और नये भारत की नयी ऊर्जा की प्रतीक है. उन्होंने भरोसा जताया कि यह सुविधा केंद्र राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देने में एक लंबा सफर तय करेगी. उन्होंने कहा, ‘‘यह ऊर्जा सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और शिक्षाविदों के बीच प्रौद्योगिकी, प्रतिबद्धता, संस्थागत सहयोग है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा परिकल्पित ‘आत्मनिर्भर भारत’ का ही एक उदाहरण है. यह सुविधा केंद्र लड़ाकू विमानों के पायलटों को सिम्युलेटर प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराएगा.’’ राजनाथ सिंह ने इसे डीआरडीओ की प्रयोगशाला के सबसे अहम हिस्से में से एक बताया है. उन्होंने कहा कि सिम्युलेटर प्रशिक्षण से किसी प्रकार के नुकसान की संभावना के बिना गलतियों से सीखने का एक अवसर मिलता है.

हाइब्रिड प्रौद्योगिकी के विकास के लिए डीआरडीओ और लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) की सराहना करते हुए रक्षा मंत्री ने विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि इससे निर्माण प्रक्रिया की उत्पादकता बढ़ेगी और संसाधनों के उच्चतम उपयोग को प्रोत्साहन मिलेगा. बर्बादी के चलते नुकसान कम होगा और परियोजनाओं के तेज कार्यान्वयन में मदद मिलेगी. उन्होंने हाइब्रिड प्रौद्योगिकी को निर्माण क्षेत्र के लिए महत्­वपूर्ण बताया और उम्मीद व्यक्त की कि भारत आने वाले समय में निर्माण प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी देशों में से एक हो जाएगा.

सिंह ने सशस्त्र बलों, वैज्ञानिकों, उद्यमियों, शिक्षाविदों, छात्रों, किसानों और जनता की बेहतरी तथा एक खुशहाल व समृद्ध भविष्य की तलाश से जुड़ी कोशिशों में समर्थन देने के सरकार के संकल्प को दोहराया. उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूती देने में डीआरडीओ द्वारा निभाई जा रही अहम भूमिका के लिए सराहना करते हुए कहा, ‘‘दुनिया में आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक हालात बदल रहे हैं और बड़ी वैश्विक ताकतें आपस में जूझ रही हैं. हमारी रक्षा जरूरतें भी पहले की अपेक्षा काफी बढ़ गई हैं और सैन्य बलों का लगातार आधुनिकीकरण आज के समय की जरूरत हो गई है. खुद को तैयार रखना हमारी शीर्ष प्राथमिकता है और हम अपनी रणनीतिक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं.

चाहे यह तकनीक हो या उत्पाद, सेवाएं हों या सुविधाएं हों, उनका आधुनिकीकरण और तेज विकास समय की जरूरत है.’’ रक्षा मंत्री ने आशा व्यक्त की कि भले ही डीआरडीओ का काम भविष्य की प्रौद्योगिकियां विकसित करना है, लेकिन इनके अन्य लाभ नागरिक क्षेत्र को भी उपलब्ध होंगे.

उन्होंने कहा, ‘‘हमारा पारंपरिक निर्माण उद्योग सामान्य रूप से श्रम बहुल, ज्यादा जोखिम वाला और कम उत्पादकता वाला माना जाता है. लेकिन डीआरडीओ ने जिस तरह से हाइब्रिड प्रौद्योगिकी के माध्यम से एफसीएस परिसर का निर्माण किया है, उससे आने वाले समय में हमारी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं कम लागत और समयबद्ध तरीके से पूरी हो जाएंगी.’’ एफसीएस सुविधा केंद्र 1.3 लाख वर्ग फुट क्षेत्र में बनी एक इमारत है. 45 दिन में निर्माण पूरा करने के साथ, देश के निर्माण उद्योग के इतिहास में पहली बार हाइब्रिड निर्माण प्रौद्योगिकी के साथ एक स्थायी सात मंजिला भवन का निर्माण पूरा करने का एक अनोखा रिकॉर्ड बन गया है.

गौरतलब है कि हाइब्रिड निर्माण प्रौद्योगिकी में ढांचे के खंभे और बीम स्टील की प्लेटों से बनाए गए हैं. खंभे खोखले स्टील ट्यूबलर सेक्शन के रूप में हैं. स्लैब आंशिक रूप से प्रीकास्ट हैं और इन सभी को साइट पर असेंबल किया गया है. ढांचे को एक रूप देने के लिए कंक्रीट बनाया गया है, जिससे हर शुष्क जोड़ को खत्म कर दिया गया है, जैसा प्रीकास्ट निर्माण के मामले में होता है. कंक्रीट से भरे खोखले हिस्सों के मामले में, स्टील एक स्थायी ढांचा उपलब्ध कराता है, जिससे समय बचता है और नेशनल बिंिल्डग कोड के नियमों के तहत वीआरएफ एयर कंडीशंिनग सिस्टम के साथ इलेक्ट्रिकल सिस्टम और आग से सुरक्षा भी मिलती है. सभी संरचनागत डिजाइन के मानदंडों का भी पालन किया गया है.

इसके डिजाइन की जांच और तकनीकी सहायता भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास और आईआईटी रुड़की की टीमों द्वारा प्रदान की गई थी. इस अवसर पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई, रक्षा, आरएंडडी विभाग के सचिव और डीआरडीओ के प्रमुख डॉ जी सतीश रेड्डी और डीआरडीओ व राज्य सरकार के अन्य वरिष्ठ अधिकारी आदि अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे.

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