रेपो दर में 0.35 प्रतिशत की बढ़ोतरी, बढ़ जाएंगी मासिक किस्त

डिजिटल मुद्रा से निजता को लेकर मन में डर बैठाने की जरूरत नहीं: दास

मुंबई. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने महंगाई कम करने के इरादे से बुधवार को द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर रेपो में 0.35 प्रतिशत की एक और बढ़ोतरी कर इसे 6.25 प्रतिशत कर दिया. उम्मीद के अनुरूप नीतिगत दर में वृद्धि की रफ्तार धीमी पड़ी है और यह रेपो दर के अपने उच्च स्तर पर पहुंच जाने का संकेत देता है.

आरबीआई ने मई के बाद लगातार पांचवीं बार रेपो दर में वृद्धि की है. इस दौरान रेपो दर चार प्रतिशत से बढ़कर 6.25 प्रतिशत पर पहुंच चुका है. दर वृद्धि से मकान, वाहन और अन्य कर्जों की मासिक किस्त एक बार फिर बढ़ सकती है. रेपो दर वह ब्याज दर है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिये रिजर्व बैंक से कर्ज लेते हैं.

इसके साथ ही केंद्रीय बैंक ने चालू वित्त वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के वृद्धि दर अनुमान को सात प्रतिशत से घटाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया है. मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सोमवार से शुरू हुई तीन दिन की बैठक में किये गये निर्णयों की जानकारी देते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ‘‘मौजूदा आर्थिक स्थिति पर विचार करते हुए एमपीसी ने नीतिगत दर रेपो को 0.35 प्रतिशत बढ़ाकर 6.25 प्रतिशत करने का निर्णय किया है.’’ रेपो दर में इस वृद्धि दर के साथ स्थायी जमा सुविधा (एसडीएफ) दर समायोजित होकर छह प्रतिशत और सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर तथा बैंक दर 6.50 प्रतिशत हो गयी है.

हालांकि, रेपो दर में वृद्धि की यह गति पिछली चार बार की वृद्धि के मुकाबले कम है जो कि बाजार की उम्मीदों के अनुरूप ही है.
आरबीआई उच्च मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिये इस साल मई से लेकर अब तक कुल पांच बार में रेपो दर में 2.25 प्रतिशत की वृद्धि कर चुका है. इससे पहले, मई में रेपो दर 0.40 प्रतिशत तथा जून, अगस्त तथा सितंबर में 0.50-0.50 प्रतिशत बढ़ाई गयी थी.
केंद्रीय बैंक नीतिगत दर पर निर्णय करते समय मुख्य रूप से खुदरा महंगाई पर गौर करता है और यह पिछले करीब 11 महीने से रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर से ऊपर बनी हुई है. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति अक्टूबर महीने में 6.7 प्रतिशत रही थी.

आरबीआई को खुदरा मुद्रास्फीति दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर बरकरार रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है.
दास ने कहा कि भारत की आर्थिक वृद्धि मजबूत बनी हुई है और मुद्रास्फीति आने वाले समय में नरम होगी. ‘‘लेकिन महंगाई को लेकर कार्रवाई अभी खत्म नहीं हुई है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुद्रास्फीति की दर नरम हुई है. महंगाई का खराब दौर पीछे छूट चुका है, लेकिन अभी इस मोर्चे पर ढिलाई बरतने की कोई गुंजाइश नहीं है.’’ दास की अध्यक्षता में छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति ने बहुमत के आधार पर नीतिगत दर में वृद्धि का यह निर्णय किया.

आरबीआई के बयान के अनुसार, एमपीसी सदस्य डॉ. शशांक भिडे, डॉ. आशिमा गोयल, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. माइकल देबव्रत पात्रा और शक्तिकांत दास ने नीतिगत दर 0.35 प्रतिशत बढ़ाने के पक्ष में मतदान किया, वहीं प्रोफेसर जयंत आर वर्मा ने इसके खिलाफ वोट किया. इसके साथ एमपीसी ने मौद्रिक नीति को लेकर उदार रुख वापस लेने पर ध्यान देते रहने का भी निर्णय किया. आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को सात प्रतिशत से घटाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया है. इसके पहले सितंबर में भी आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 7.2 प्रतिशत से घटाकर सात प्रतिशत किया गया था.

इस पर दास ने कहा, ‘‘ आर्थिक वृद्धि दर अनुमान को मामूली रूप से घटाकर 6.8 प्रतिशत करने के बावजूद भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है और वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था आकर्षक गंतव्य बनी हुई है.’’ वहीं आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिये मुद्रास्फीति अनुमान को 6.7 प्रतिशत पर बरकरार रखा है. साथ ही 2022-23 की चौथी तिमाही में इसके छह प्रतिशत की उच्च सीमा से नीचे आने का अनुमान जताया गया है.

दास ने कहा कि केंद्रीय बैंक ने कीमत स्थिति से निपटने के लिए तेजी से कदम उठाने के साथ लचीला रुख बनाए रखा है. एक्यूट रेंिटग्स एंड रिसर्च ने कहा कि आरबीआई का रुख आंशिक रूप से आक्रामक बना हुआ है और अगले साल फरवरी में होने वाली अगली द्विमासिक समीक्षा में एक बार फिर नीतिगत दर में वृद्धि हो. रेपो दर के 2023-24 की शुरूआत में 6.5 प्रतिशत तक जाने की संभावना है. मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक छह से आठ फरवरी, 2023 को होगी..

डिजिटल मुद्रा से निजता को लेकर मन में डर बैठाने की जरूरत नहीं: दास

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बुधवार को कहा कि हाल में पेश केंद्रीय बैंक डिजिटल रुपया (सीबीडीसी) नकद मुद्रा की तरह है और इसमें लेन-देन के बारे में बैंकों के पास कोई जानकारी नहीं रहेगी, लिहाजा निजता को लेकर लोगों के मन में डर बैठने की कोई जरूरत नहीं है.

दास ने मौद्रिक नीति की द्विमासिक समीक्षा के बाद एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सीबीडीसी के थोक उपयोग पर आरबीआई का पायलट परीक्षण बहुत संतोषजनक रहा है. इसके अलावा इस डिजिटल मुद्रा के खुदरा उपयोग के लिए हाल ही में किए गए पायलट परीक्षण से मिले सबक को भी आत्मसात करने की कोशिश की जाएगी.

आरबीआई ने सीबीडीसी के तौर पर ई-रुपये का पायलट परीक्षण किया है. नवंबर की शुरुआत में थोक इस्तेमाल का प्रायोगिक परीक्षण कुछ बैंकों के साथ किया था. वहीं इसके खुदरा इस्तेमाल का प्रायोगिक परीक्षण दिसंबर की शुरुआत में किया गया है. सीबीडीसी का इस्तेमाल करने वालों के जांच एजेंसियों की पकड़ में आने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर दास ने कहा, “आप किसी को नकदी मुद्रा में भुगतान करते हैं तो इसमें भी कुछ वैसा ही है. डिजिटल मुद्रा से भी लेनदेन करने के बारे में पता नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि यह जानकारी बैंक के पास नहीं रहती है. बैंक को भी पता नहीं होता है.”

उन्होंने कहा, “यह मेरे मोबाइल फोन से किसी दूसरे के मोबाइल फोन पर जाता है. ऐसे में हमें इसे लेकर मन में किसी तरह का संदेह नहीं बैठाना चाहिए.” इसके साथ ही उन्होंने यह स्पष्ट किया कि नकद भुगतान पर आयकर विभाग की तरफ से लगाई गई कुछ सीमाएं सीबीडीसी के मामले में भी लागू रहेंगी. उन्होंने कहा, “आयकर विभाग के नकद भुगतान संबंधी प्रावधान सीबीडीसी के मामले में भी लागू होंगे क्योंकि ये दोनों ही मुद्राएं हैं.”

दरअसल रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव समेत कई विशेषज्ञों ने डिजिटल मुद्रा के संबंध में निजता को लेकर आशंकाएं जताई हैं. उनका कहना है कि डिजिटल मुद्रा का इस्तेमाल करने वाले लोगों की जानकारी बैंक के पास दर्ज हो जाएगी जो उसकी निजता का उल्लंघन होगा.

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर टी रविशंकर ने एक हद तक इस आशंका को स्वीकार करने के साथ ही कहा कि केंद्रीय बैंक सीबीडीसी को भी कागजी मुद्रा की तरह अनाम बनाने के तरीके तलाशने में लगा हुआ है. उन्होंने कहा कि इसके लिए आरबीआई एक प्रौद्योगिकी एवं कानूनी समाधान निकालने की कोशिश में लगा हुआ है.

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