पुस्तक विवाद: महाराष्ट्र सरकार की भाषा सलाहकार समिति के प्रमुख, चार अन्य ने दिया इस्तीफा

पुरस्कार वापसी का महाराष्ट्र सरकार का निर्णय ‘अघोषित आपातकाल’ लगाने का प्रयास: अजित पवार

मुंबई. महाराष्ट्र सरकार द्वारा कथित माओवादी विचारक कोबाड गांधी के संस्मरण के मराठी अनुवाद को दिया गया पुरस्कार वापस लिए जाने के फैसले के विरोध में राज्य की मराठी भाषा समिति के प्रमुख और साहित्य संबंधी बोर्ड के चार सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया है.

कोबाड गांधी की ‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम: ए प्रीजन मेमॉयर’ के मराठी अनुवाद के लिए अनघा लेले को यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार 2021 देने की छह दिसंबर को घोषणा की गई थी, जिसे सोमवार को राज्य सरकार ने वापस लेने का फैसला करते हुए पुरस्कार चयन समिति को भंग कर दिया. कोबाड के माओवादियों से कथित संबंध होने के कारण पुरस्कार देने के फैसले की सोशल मीडिया पर आलोचना के बाद सरकार ने यह फैसला किया था.

लेखक एवं राज्य सरकार की भाषा सलाहकार समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने सरकार के फैसले के खिलाफ बुधवार को पद से इस्तीफा देने की घोषणा की. देशमुख ने विद्यालय शिक्षा एवं मराठी भाषा के मंत्री दीपक केसरकर को लिखे एक पत्र में कहा, ‘‘ महाराष्ट्र में साहित्य पुरस्कार में इतना राजनीतिक हस्तक्षेप कभी नहीं किया गया, केवल 1981 में विनय हार्दिकर की किताब को तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा इसी तरह अस्वीकृत किया गया था और इस कदम की भी काफी आलोचना की गई थी. इस सरकार ने भी एकतरफा फैसला किया है और इसके विरोध में, मैं राज्य सरकार की भाषा सलाहकार समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहा हूं.’’

उन्होंने कहा, ‘‘कोबाड की किताब माओवादियों का समर्थन या उनकी ंिहसात्मक कार्रवाईयों को बढ़ावा नहीं देती, लेकिन फिर भी राज्य सरकार ने एकतरफा फैसला किया.’’ महाराष्ट्र कैडर के एक पूर्व आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) अधिकारी देशमुख अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

पुरस्कार चयन समिति के तीन सदस्यों डॉ. प्रज्ञा दया पवार, नीरजा और हेरंब कुलकर्णी ने सरकार के फैसले को ‘‘लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का अपमान’’ बताते हुए मंगलवार को राज्य साहित्य एवं संस्कृति बोर्ड से इस्तीफा दे दिया. ये उस समिति के सदस्य थे, जिसने कोबाड गांधी की ‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम: ए प्रीजन मेमॉयर’ के मराठी अनुवाद के लिए अनघा लेले को यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार 2021 देने की घोषणा की थी. बोर्ड के एक और सदस्य विनोद शिरसाठ ने भी बाद में इस्तीफा देने की घोषणा की. शिरसाठ मराठी साप्ताहिक पत्र ‘साधना’ के संपादक हैं.

डॉ. पवार ने अपने बयान में कहा, ‘‘ महाराष्ट्र सरकार का चयन समिति को भंग करने का फैसला एकतरफा है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का अपमान है. मैंने महाराष्ट्र साहित्य एवं संस्कृति बोर्ड से इस्तीफा देने का फैसला किया है.’’ कुलकर्णी ने कहा, ‘‘कोबाड की किताब पर कोई प्रतिबंध नहीं है, तब भी महाराष्ट्र सरकार ने अनुवादित संस्करण को पुरस्कार देने का अपना फैसला वापस ले लिया. सरकार का यह रवैया भविष्य में ऐसी प्रक्रिया का हिस्सा बनने से लोगों को हतोत्साहित करेगा. अगर बोर्ड हमारा समर्थन नहीं कर रहा तो बेहतर यही है कि मैं इस्तीफा दे दूं. कृपया मेरा इस्तीफा स्वीकार करें.’’

नीरजा ने भी इस्तीफे की यही वजह बतायी. उन्होंने कहा, ‘‘अगर बोर्ड हमारे साथ नहीं खड़ा है और हमारा समर्थन नहीं कर रहा है, तो बेहतर यही है कि हम इसकी सदस्यता से इस्तीफा दे दें. मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करती हूं और मैं सरकार के फैसले से बेहद दुखी हूं.’’ सरकार द्वारा सोमवार को जारी एक बयान के अनुसार, चयन समिति के निर्णय को ‘‘प्रशासनिक कारणों’’ से पलट दिया गया और पुरस्कार (जिसमें एक लाख रुपये की नकद राशि शामिल थी) को वापस ले लिया गया है.

पुरस्कार वापसी का महाराष्ट्र सरकार का निर्णय ‘अघोषित आपातकाल’ लगाने का प्रयास: अजित पवार

महाराष्ट्र सरकार द्वारा पूर्व माओवादी विचारक कोबाड गांधी के संस्मरण के मराठी अनुवाद को दिया गया पुरस्कार वापस लेने के फैसले को लेकर विवाद के बीच विपक्ष के नेता अजित पवार ने बुधवार को कहा कि सत्तारूढ़ सरकार साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है. पवार ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार संस्मरण के अनुवाद के लिए एक चयन समिति द्वारा तय किए गए साहित्यिक पुरस्कार को रद्द करके “अघोषित आपातकाल” लगाने की कोशिश कर रही है.

विधानसभा में विपक्ष के नेता पवार ने विवाद की पृष्ठभूमि में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार साहित्यिक पुरस्कारों के चयन में हस्तक्षेप कर रही है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को इन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.

कोबाड गांधी की पुस्तक के अनुवाद को पुरस्कार का अर्थ नक्सल आंदोलन को ‘स्वीकृति’ होता: मंत्री

महाराष्ट्र के मंत्री दीपक केसरकर ने पूर्व माओवादी विचारक कोबाड गांधी के संस्मरण के मराठी अनुवाद को दिया गया पुरस्कार वापस लेने के राज्य सरकार के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि पुरस्कार देने का मतलब नक्सलवाद को सरकार की ‘‘स्वीकृति’’ होता. विवाद उस समय उत्पन्न हुआ जब सरकार ने कोबाड गांधी की ‘‘फ्रैक्चर्ड फ्रीडम: ए प्रीजन मेमॉयर’’ के अनुवाद के लिए अनघा लेले को दिवंगत यशवंतराव चव्हाण साहित्य पुरस्कार 2021 देने के निर्णय को पलट दिया.

गांधी के कथित माओवादी संबंधों के कारण सोशल मीडिया पर इस फैसले की आलोचना हुई. सरकार द्वारा सोमवार को जारी एक बयान के अनुसार, चयन समिति के निर्णय को ‘‘प्रशासनिक कारणों’’ से उलट दिया गया, और पुरस्कार (जिसमें एक लाख रुपये की नकद राशि शामिल थी) को वापस ले लिया गया है. समिति को भी भंग कर दिया गया है.

मराठी भाषा मंत्रालय के अलावा अन्य प्रभार संभालने वाले केसरकर ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘गांधी की पुस्तक के अनुवाद के लिए भी एक पुरस्कार का मतलब नक्सल आंदोलन और उनके ंिहसक कृत्यों को सरकार की (स्वीकृति की) मुहर होता. नक्सली गतिविधियों के खिलाफ लड़ते हुए सैकड़ों जवान शहीद हुए हैं. मैं नक्सल आंदोलन को सरकार की ओर से किसी भी तरह की स्वीकृति नहीं दे सकता.’’

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