मंत्रिमंडल ने ‘वीनस ऑर्बिटर मिशन’, चंद्रयान व गगनयान कार्यक्रमों के विस्तार को मंजूरी दी

नयी दिल्ली. अंतरिक्ष कार्यक्रम को बढ़ावा देते हुए सरकार ने बुधवार को ‘चंद्रयान-4’ मिशन को मंजूरी दे दी, जिसका उद्देश्य चंद्रमा की चट्टानों को पृथ्वी पर लाना है. साथ ही शुक्र ग्रह की कक्षा में अंतरिक्ष यान भेजने और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) बनाने के लिए गगनयान परियोजना के विस्तार कार्यक्रम को भी मंजूरी दी गई.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में अंतरिक्ष विभाग के एक प्रस्ताव को भी मंजूरी दी गई, जिसके तहत अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान बनाया जाएगा. यह यान कक्षाओं में भारी पेलोड स्थापित करने में सक्षम होगा. यह अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने और चंद्रमा पर भारतीय अंतरिक्ष यात्री को उतारने के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी महत्वपूर्ण हो सकता है.

मोदी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ”अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए बहुत अच्छी खबर. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गगनयान कार्यक्रम का विस्तार करते हुए भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) की दिशा में पहला कदम उठाने को मंजूरी दे दी है.” प्रधानमंत्री ने कहा, ”यह ऐतिहासिक निर्णय हमें 2035 तक एक आत्मनिर्भर अंतरिक्ष स्टेशन और 2040 तक मानवयुक्त चंद्र मिशन के करीब ले आएगा.” मंत्रिमंडल के फैसलों के बारे में पत्रकारों को जानकारी देते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि सरकार ने ‘चंद्रयान-4’ मिशन के लिए 2,104 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने कहा, ”चंद्रयान-3 का स्वाभाविक उत्तराधिकारी चंद्रमा के नमूने एकत्र करने और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने की क्षमता का प्रदर्शन है.” मंत्रिमंडल ने ‘वीनस ऑर्बिटर मिशन’ (वीओएम) के लिए 1,236 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं, जिसे मार्च 2028 में लॉन्च किए जाने की उम्मीद है.

अंतरिक्ष विभाग द्वारा संचालित ‘वीनस ऑर्बिटर मिशन’ में शुक्र ग्रह की कक्षा में एक अंतरिक्ष यान स्थापित करना शामिल होगा, ताकि इसकी सतह व उपसतह, वायुमंडलीय प्रक्रियाओं और शुक्र के वायुमंडल पर सूर्य के प्रभाव को बेहतर ढंग से समझा जा सके.
एक बयान में कहा गया कि शुक्र, जो पृथ्वी का सबसे निकटतम ग्रह है और माना जाता है कि इसका निर्माण पृथ्वी के समान परिस्थितियों में हुआ है, यह समझने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है कि ग्रहों का वातावरण किस प्रकार बहुत अलग तरीके से विकसित हो सकता है.

इसमें कहा गया है कि शुक्र ग्रह में हुए बदलाव के अंर्तिनहित कारणों का अध्ययन शुक्र और पृथ्वी दोनों ग्रहों के विकास को समझने में काफी सहायक साबित होगा. मंत्रिमंडल ने आंशिक रूप से पुन: प्रयोज्य अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान (एनजीएलवी) के विकास को मंजूरी दे दी, जिसकी पेलोड क्षमता (भार ले जाने की क्षमता) इसरो के लॉन्च व्हीकल मार्क-3 की तुलना में तीन गुना अधिक है. उसने एनजीएलवी के विकास, तीन विकासात्मक उड़ानों, आवश्यक सुविधा, कार्यक्रम प्रबंधन और प्रक्षेपण अभियान के लिए 8,240 करोड़ रुपये आवंटित किए.

एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि यह भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और संचालन तथा 2040 तक चंद्रमा पर भारतीय चालक दल के उतरने की क्षमता विकसित करने के भारत के लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा. इसमें कहा गया है कि एनजीएलवी में प्रक्षेपण यान मार्क-3 (एलवीएम3) की तुलना में तीन गुना अधिक पेलोड क्षमता होगी और लागत 1.5 गुना अधिक होगी. साथ ही कहा गया है कि आंशिक रूप से पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान अंतरिक्ष तक कम लागत में पहुंच प्रदान करेगा.

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