बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण:उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से उच्चतम न्यायालय का इनकार

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण को लेकर पटना उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश पर रोक लगाने से बृहस्पतिवार को इनकार करते हुए कहा कि यह पड़ताल करनी होगी कि क्या राज्य सरकार सर्वेक्षण की आड़ में जनगणना कर रही थी.

उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश पर शीर्ष न्यायालय के स्थगन आदेश जारी करने से इनकार के बाद राज्य में जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक बनी रहेगी. बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण का पहला दौर सात से 21 जनवरी के बीच किया गया था. दूसरा दौर, 15 अप्रैल को शुरू हुआ था और यह 15 मई तक जारी रहने वाला था. न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति राजेश ंिबदल की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने प्रथमदृष्टया प्राप्त निष्कर्षों को दर्ज किया है, ‘‘और हमें यह तय करना होगा कि यह केवल एक सर्वेक्षण है, या जनगणना.’’ न्यायमूर्ति ंिबदल ने सुनवाई के दौरान अपनी मौखिक टिप्पणी में कहा कि कई दस्तावेजों से पता चलता है कि यह कवायद जनगणना ही है.

पीठ ने कहा, ‘‘हम यह स्पष्ट कर रहे हैं, यह ऐसा मामला नहीं है जहां हम आपको अंतरिम राहत दे सकते हैं.’’ उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने मुख्य याचिका की सुनवाई तीन जुलाई के लिए स्थगित कर दी है. पीठ ने कहा, ‘‘हम निर्देश देते हैं कि इस याचिका को 14 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाये. यदि किसी भी कारण से, रिट याचिका की सुनवाई अगली तारीख से पहले शुरू नहीं होती है, तो हम याचिकाकर्ता (बिहार) के वरिष्ठ वकील की दलीलें सुनेंगे.’’ बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील दी कि उच्च न्यायालय का फैसला त्रुटिपूर्ण है. उन्होंने कहा कि मौजूदा कवायद जनगणना नहीं है, बल्कि केवल एक स्वैच्छिक सर्वेक्षण है.

दीवान ने दोनों के बीच के अंतर को समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि सर्वेक्षण एक खास तरह की गुणवत्ता का होता है जो एक निश्चित अवधि के लिए होता है. उन्होंने कहा, ‘‘जनगणना के लिए आपको जवाब देना होगा. सर्वेक्षण के लिए ऐसा नहीं है. राज्य की नीतियों के लिए मात्रात्मक आंकड़ों की जरूरत होती है. उच्चतम न्यायालय के फैसलों में ऐसा कहा गया है.’’

वरिष्ठ वकील ने कहा कि उच्च न्यायालय की ंिचताओं में गोपनीयता का एक मुद्दा शामिल था. उन्होंने कहा, ‘‘डेटा केवल बिहार सरकार के सर्वर पर संग्रहित किया जायेगा और किसी अन्य ‘क्लाउड’ पर नहीं. हम अदालत के सुझावों को मानने के लिए तैयार हैं.’’ उच्चतम न्यायालय ने हालांकि, दीवान से कहा कि उच्च न्यायालय पहले ही उन पहलुओं पर विचार कर चुका है. दीवान ने कहा कि संसाधन जुटाए जा चुके हैं और सर्वेक्षण का 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार से तीन जुलाई को उच्च न्यायालय के समक्ष मामले पर दलीलों को रखने के लिए कहा, जहां मामला अभी भी लंबित है.

पटना उच्च न्यायालय के चार मई के आदेश के खिलाफ शीर्ष न्यायालय में दायर याचिका में बिहार सरकार ने कहा है कि जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक से पूरी कवायद पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. राज्य सरकार ने यह भी कहा है कि जाति आधारित आंकड़ों का संग्रह अनुच्छेद 15 और 16 के तहत एक संवैधानिक विषय है.

संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत सरकार धर्म, नस्ल, जाति, ंिलग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के भी आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करेगी. वहीं, अनुच्छेद 16 के अनुसार राज्य सरकार के अधीन किसी भी कार्यालय में नियोजन या नियुक्ति के संबंध में सभी नागरिकों के लिए समान अवसर उपलब्ध होंगे.

याचिका में बिहार सरकार ने दलील दी है, ह्लराज्य ने कुछ जिलों में जाति आधारित जनगणना का 80 फीसदी से अधिक सर्वे कार्य पूरा कर लिया है. पूरा प्रशासनिक तंत्र जमीनी स्तर पर काम कर रहा है. विवाद में अंतिम निर्णय आने तक इस कवायद को पूरा करने से कोई नुकसान नहीं होगा.ह्व पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार के जाति आधारित सर्वेक्षण पर रोक लगा दी थी. अदालत ने साथ ही इस सर्वेक्षण अभियान के तहत अब तक एकत्र किए गए आंकडों को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था. उच्च न्यायालय ने सुनवाई की अगली तारीख तीन जुलाई तय की है.

उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘प्रथम दृष्टया हमारी राय है कि राज्य के पास जाति आधारित सर्वेक्षण करने की कोई शक्ति नहीं है और जिस तरह से यह किया जा रहा है वह एक जनगणना के समान है और इस प्रकार यह संघ की विधायी शक्ति का अतिक्रमण होगा.’’ अदालत ने ंिचता जताते हुए कहा था कि सरकार की मंशा राज्य विधानसभा में विभिन्न दलों के नेताओं के साथ सर्वेक्षण के आंकड़े साझा करना है.

उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘जनगणना और सर्वेक्षण के बीच आवश्यक अंतर यह है कि जनगणना में सटीक तथ्यों और सत्यापन योग्य विवरणों के संग्रह पर विचार किया जाता है. सर्वेक्षण का उद्देश्य आम जनता की राय और धारणाओं का संग्रह और उनका विश्लेषण करना है .’’ उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाएं सामाजिक संगठन और कुछ व्यक्तियों द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने पिछले महीने उच्चतम न्यायालय का रुख किया था. उच्चतम न्यायालय ने मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था और उन्हें इस निर्देश के साथ उच्च न्यायालय वापस भेज दिया था कि उनकी याचिका पर शीघ्र निर्णय लिया जाये.

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