वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की जमानत को चुनौती देने वाली छत्तीसगढ़ सरकार की याचिका खारिज

नयी दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने भ्रष्टाचार मामले में छत्तीसगढ़ पुलिस अकादमी के निलंबित निदेशक गुरजिंदर पाल सिंह को मिली जमानत को चुनौती देने वाली छत्तीसगढ़ सरकार की याचिका मंगलवार को खारिज कर दी. न्यायालय ने कहा कि उच्चस्तरीय अधिकारी को संविधान में निहित अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता.

न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की अवकाशकालीन पीठ ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दाखिल राज्य सरकार की अपील खारिज करते हुए कहा कि यह याचिका राज्य की पूर्णतय: अनुचित कवायद है. पीठ ने कहा, ”जमानत याचिका पर विचार करते समय याचिकाकर्ता की हैसियत पर विचार नहीं किया जाता. जिस तरह एक सामान्य नागरिक संविधान में निहित अपने अधिकारों का हकदार हैं, ठीक उसी तरह एक उच्चस्तरीय अधिकारी को संविधान के तहत मिले अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.”

पीठ ने कहा, ”आय से अधिक संपत्ति के मामले में, अधिकांश सबूत दस्तावेजी हैं और ऐसे सबूतों के साथ छेड़छाड़ का कोई सवाल ही नहीं उठता. किसी भी मामले में, उच्च न्यायालय ने अभियोजन के हित में कड़ी शर्तें तय कर रखी हैं. इस याचिका का कोई आधार नहीं है और इसे खारिज किया जाता है.” राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और वकील सुमीर सोढ़ी पेश हुए.

रोहतगी ने कहा कि सिंह अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के रैंक के एक उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी हैं और सबूतों से छेड़छाड़ करने एवं गवाहों को प्रभावित करने में शामिल रहे हैं तथा उच्च न्यायालय ने इस बात की अनदेखी की है. उच्च न्यायालय ने सिंह को 12 मई को जमानत दी थी.

1994 बैच के आईपीएस अधिकारी सिंह भारतीय जनता पार्टी की सरकार के दौरान रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर के महानिरीक्षक रह चुके हैं. वह तीन आपराधिक मामलों में जांच का सामना कर रहे हैं. उन्हें छत्तीसगढ़ पुलिस अकादमी के निदेशक के पद से निलंबित कर दिया गया था और देशद्रोह, भ्रष्टाचार एवं जबरन वसूली से संबंधित तीन मामलों में आरोपी बनाया गया.

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